नई दिल्ली,हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के पुत्र ओलंपियन अशोक ध्यान चंद ने कहा है कि पिता नहीं चाहते थे कि उनका कोई बेटा हॉकी खेले। अशोक ने एक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर खुलासा किया है कि उनके पिता एक समय हॉकी से इतना ऊब गए थे कि अपने बेटों को हॉकी से दूर रहने की सलाह देने लगे थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि लगातार तीन ओलंपिक स्वर्ण जीतने के बाद भी भारतीय टीम को वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसकी वह अधिकारी थी। इस किताब में कहा गय है कि भारतीय खिलाड़ी इसलिए पीछे हैं क्योंकि देश में स्पोटर्स साक्षरता मात्र बीस प्रतिशत है और खेलों को किसी भी स्तर पर गंभीरता से नहीं लिया जाता।
उदासीन और उपेक्षापूर्ण माहौल खिलाडिय़ों को आगे बढऩे से रोकता है। इस किताब में महिला खिलाडिय़ों की समस्याओं और उनकी राह में आनेवाली बाधाओं को भी बताया गया है हालांकि लेखक कभी खिलाड़ी या कोच नहीं रहे फिर भी उन्होंने खिलाडिय़ों की बुनियादी जरुरतों और समस्याओं को उद्घाटित किया है। सभी अतिथियों और वक्ताओं ने माना कि यह पुस्तक खेल पत्रकारिता के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालती है और स्कूल कालेज के खिलाड़ी छात्र छात्राओं का सही मार्गदर्शन करने में सक्षम है। इस दौरान अशोक ध्यान चंद ने हॉकी की बदहाली के लिए, फेडरेशन और हॉकी इंडिया को भी दोषी माना लेकिन यह भी कहा कि देश में खेलों को लेकर कुछ भी सराहनीय नहीं हो रहा।