देहरादून, उत्तराखंड में सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व को लेकर मचा सियासी तूफान के बाद उन्होने आज अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष से भेंट कर यहाँ लौटने पर आज दोपहर बाद राज्यपाल से भेंट कर इस्तीफा सौंपा। 2017 में पूर्ण बहुमत से बनी भाजपा की सरकार में इन चार सालों में ऐसा क्या हुआ कि अचानक त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ पार्टी में बवंडर मच गया। विधायकों के बीच से उठते विरोध के स्वर हाईकमान तक पहुंचने लगे और आखिरकार सीधे सूबे के मुखिया को इस्तीफा देना पड़ा। इसके साथ ही यूपी, बिहार के बाद डिप्टी सीएम का प्रयोग उत्तराखंड में भी लागू करने के पीछे भाजपा नेतृत्व की क्या रणनीति है? उत्तराखंड के सियासी गलियारों में आने वाले कुछ दिनों तक ऐसे तमाम सवाल तैरते रहेंगे लेकिन पूरे तौर पर इनका जवाब पाने के लिए शायद हमें अगले चुनाव के नतीजों तक इंतजार करना पड़े। देखते हैं कि उत्तराखंड में ताजा सियासी संकट की शुरुआत कब और कैसे हुई और सिंहासन के इस संघर्ष में अभी तक क्या-क्या हो चुका है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 2017 केे मार्च महीने में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।18 मार्च को उनकी सरकार के चार साल पूरे होने वाले हैं। लेकिन उसके पहले ही देहरादून में उन्हें हटाने की कवायद शुरू हो गई। विधायकों के विरोध के स्वर हाईकमान को सुनाई पड़े तो केंद्रीय नेतृत्व ने पर्यवेक्षक को देहरादून भेजकर और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को अचानक दिल्ली तलब कर प्रदेश के सियासी माहौल को गरमा दिया। इसके बाद से सीएम के चेहरे को बदलने की चर्चा तेज हो गई। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत दिल्ली में थे।दिन भर पार्टी हाईकमान के बीच भी उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर विचार विमर्श चलता रहा। दिल्ली में राजनीतिक घटनाक्रम देर रात तक चलता रहा। संसद भवन में गृहमंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जे.पी.नड्डा और राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष के बीच विचार विमर्श हुआ। दिल्ली से विशेष तौर से भेजे गए पर्यवेक्षक व छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने देहरादून में आयोजित कोर कमेटी की बैठक की रिपोर्ट भी केंद्रीय नेतृत्व को सौंपी है। सूत्रों की मानें तो इस रिपोर्ट में उत्तराखंड में असंतुष्ट भाजपा नेताओं, आपसी तालमेल की कमी सहित बेलगाम होती ब्यूरोक्रेसी सहित मंत्रिमंडल विस्तार में देरी बातों को प्रमुखता से उजागर किया गया हैै।पार्टी हाईकमान के साथ मुलाकात नहीं होने के बाद सीएम त्रिवेंद्र ने सोमवार देर शाम राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी के घर मुलाकात के लिए पहुंचे थे। करीब डेढ़ घंटे तक चली बैठ में दोनों नेताओं ने उत्तराखंड में चल रही राजनीतिक उथल-पुथल पर चर्चा की। बैठक के बाद सीएम रात में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलने पहुंचे। मंगलवार की सुबह दस बजे वह देहरादून लौट आए। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि जौलीग्रांट एयरपोर्ट से लेकर घर तक कोई विधायक उनसे मिलने नहीं पहुंचा। उधर, सीएम हाउस पर सुबह से ही त्रिवेंद्र सिंह रावत के समर्थकों की भीड़ जुटी है। बीच-बीच में सीएम आवास से समर्थकों की नारेबाजी भी सुनाई पड़ रही है।