नई दिल्ली, निचली अदालतों में चेक बाउंस के बढ़ते मामलों को देखते हुए समन और नोटिस को इलेक्ट्रानिक तरीके से भेजने और उसे मान्यता देने की सिफारिश की गई है। सिफारिश मामले में नियुक्त किए गए एमाइकस क्यूरी वकील सिद्धार्थ लूथरा ने की है। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश की कोर्ट को बताया कि अधिकतर मामलों में समन सर्व नहीं होने से केस लटकते रहते हैं। आजकल हर चीज आधार से जुड़ी हुई है। ऐसे में इलेक्ट्रानिक समन को प्रामाणिक रूप से भेजने में कोई समस्या नहीं है। अपनी रिपोर्ट में लूथरा ने कहा कि ऐसा मामला जहां अभियुक्त फरार है और उसके खिलाफ वारंट जारी हो गया है, ऐसे मामले में उस अभियुक्त का बैंक खाता फ्रीज किया जा सकता है। यह खाता फ्रीजिंग चेक बांउस की रकम के स्तर तक ही की जानी चाहिए और ऐसा आदेश सीआरपीसी की धारा 83 के तहत दिया जा सकता। एक ही लेनदेन से जुड़े विभिन्न चेकों के केसों का (सीआरपीसी की धारा 218, 219 और 220 के तहत) संयुक्त ट्रायल एक साथ कर देना चाहिए। धारा 219 कहती है कि एक व्यक्ति के खिलाफ तीन केसों को एक साथ किया जा सकते है, लेकिन कोर्ट व्यवस्था दे तो इस सीमा को बढ़ाया जा सकता है। लूथरा ने कहा कि कोर्ट सीआरपीसी की धारा 202 के कारण इस भ्रम को भी दूर करे, जिसमें कोर्ट तक तब समन जारी नहीं कर पाता है, जब तक वह यह तय नहीं कर लेता कि आरोपी उस कोर्ट के क्षेत्राधिकार में रहता है या नहीं। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने एक मामले में इस सवाल को खुला छोड़ दिया था, लेकिन इसका निपटारा जरूरी है, क्योंकि इसके कारण देश में हजारों ट्रायल स्थगित हुए पड़े रहते हैं। लूथरा ने कोर्ट को सलाह दी कि चेक बाउंस के केसों में संज्ञान लेने के बाद मध्यस्थाता का विकल्प देना आवश्यक किया जाए। इसके बाद यह विकल्प अपील और पुनरीक्षा की अवस्था में भी दिया जाए। ऐसी कोई वजह नहीं है, जिसमें ये केस मध्यस्थता के जरिए न सुलझाए जा सकते हों।