भोपाल, प्रदेश के 350 से अधिक प्रोफेसरों (प्राध्यापक) का मन अब पढ़ाने में नहीं लग रहा है। इस कारण उन्होंने शासन से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की मांग की हैं। इनमें ज्यादातर वह प्रोफेसर हैं, जिनकी सेवा के एक-दो साल ही बची हैं। यह आवेदन पिछले एक साल में आए हैं। इसमें राजधानी के भी पांच प्रोफेसर शामिल हैं। इस संबंध में प्रोफेसरों का कहना है कि अब एक या दो साल के अंदर शासन पदोन्नति नहीं देने वाला है। साथ ही करीब दस साल से पदोन्नति नहीं दी गई। इस कारण अब घर में रहकर पेंशन लेना ही सही है। वहीं कॉलेज में प्रोफेसरों की कमी के कारण हर शिक्षक पर कार्य का बोझ बढ़ता जा रहा है। यह भी एक बड़ा कारण सेवानिवृत्ति लेने का है। जहां एक तरफ कॉलेजों में प्रोफेसरों की कमी है। वहीं दूसरी तरफ प्रदेश के 350 अधिक प्रोफेसर सेवानिवृत्ति मांग रहे हैं।
दस साल से नहीं मिली पदोन्नति
कॉलेजों में 2010 के बाद प्रोफेसरों को पदोन्?नति नहीं दी गई है। इसका कारण यह है कि आरक्षण और एकेडमिक ग्रेड पे को लेकर प्रकरण न्यायालय में लंबित है। इस कारण भी एक-दो साल में सेवानिवृत्त होने वाले प्रोफेसरों का मन अब पढ़ाने में नहीं लग रहा है। साथ ही प्रोफेसरों के एरियर्स के भुगतान में भी देरी हो रही है, जबकि यह ग्रांट 31 मार्च के बाद लैप्स हो जाएगा।
सेवानिवृत्ति के बाद दस साल से दे रही हैं सेवाएं
वहीं दूसरी तरफ एक प्रोफेसर सेवानिवृत्ति के बाद करीब दस साल से सेवाएं दे रही हैं। नूतन कॉलेज से सेवानिवृत्त होने के बाद हिंदी की प्रोफेसर डॉ.आभा वाजपेयी करीब आठ साल तक इसी कॉलेज में पढ़ाती रहीं। इसके बाद 2018 से सत्यसाई कॉलेज में स्वशासी सलाहकार के पद पर कार्यरत हैं। उनका कहना है कि उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद घर में खाली बैठे रहना अच्छा नहीं लगा। वे कहती है की एकेडमिक से जुड़ी हूं तो कार्य में लगे रहना पसंद है। सत्यसाईं कॉलेज में परीक्षा कराने की पूरी जिम्मेदारी इनके ऊपर है। डॉ. वाजपेयी इन कार्यों के लिए बस आने-जाने का खर्च लेती है।