मां शबनम से मुलाकात करने रामपुर की जेल पहुंचा उसका बेटा

रामपुर,उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के बावनखेड़ी में 14/15 अप्रैल 2008 में परिवार के सात सदस्यों को प्रेमी सलीम के साथ मिलकर मौत के घाट उतारने वाली शबनम से मुलाकात करने रविवार की दोपहर उसका बेटा रामपुर पहुंचा। उसके साथ उसकी देखभाल करने वाले उस्मान भी हैं। दोनों शबनम से मुलाकात करने के लिए दोपहर 12.10 बजे रामपुर जिला कारागार के अंदर गए। परिजनों की हत्या में शबनम को फांसी की सजा मिली है। जुलाई 2019 से वह रामपुर की जेल में है। इन दिनों उसकी फांसी की तैयारी मथुरा जेल में चल रही है। हालांकि अभी उसका डेथ वारंट जारी नहीं हुआ है।
उधर, शबनम मामले में राष्ट्रपति को दूसरी दया याचिका भेजी गई है। अगर राष्ट्रपति इस दया याचिका को खारिज करते हैं तो इसे कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है। इसके अलावा कोर्ट के फैसले पर रिव्यू पिटिशन भी दाखिल की जा सकती है।
शबनम का केस निर्भया कांड की तरह बहुत पेचीदा तो नहीं है, लेकिन कानूनी दांव-पेच के मुताबिक शबनम की फांसी भी निर्भया के दोषियों की तरह आगे बढ़ती रहेगी। कानून के विशेषज्ञों का दावा है कि अभी शबनम के पास कुछ ऐसे कानूनी विकल्प खुले हुए हैं, जिनसे उसकी फांसी की तारीख आगे बढ़ सकती है। कानून के जानकारों का कहना है कि इन विकल्पों के आधार पर शबनम को कुछ दिन के लिए राहत तो मिल सकती है लेकिन फांसी तय है।
एक बार फिर से राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल की है। ऐसे में अब इस मामले में भी डेथ वारंट की न सिर्फ तारीखें बढ़ेंगी, बल्कि शबनम की फांसी में देरी होगी। कानून के जानकार और तिहाड़ जेल के पूर्व लॉ ऑफिसर सुनील कुमार गुप्ता कहते हैं कि अभी शबनम के पास कई कानूनी विकल्प खुले हुए हैं।
पहले विकल्प के तौर पर राष्ट्रपति को दया याचिका दाखिल करना था। जो शबनम की ओर से शनिवार को ही कर दी गई है। अब जब तक इस मामले में राष्ट्रपति की ओर से कोई फैसला नहीं आ जाता तब तक डेथ वारंट नहीं जारी नहीं किया जा सकता। यानी शबनम को फांसी पर चढ़ाने की कोई भी नई तारीख मुकर्रर नहीं हो सकती। सुनील गुप्ता के मुताबिक इसके बाद अगर राष्ट्रपति इस दया याचिका को खारिज कर देते हैं तो उसको कोर्ट में चैलेंज करने का रास्ता भी खुला है। कोर्ट में जाने पर फांसी की तारीख फिर तय नहीं हो सकती।
इसके बाद भी एक और विकल्प शबनम के पास होगा। इस विकल्प के तौर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में रिव्यू पिटिशन भी दाखिल की जा सकती है। सुनील कहते हैं कि अगर इन कानूनी रास्तों को अख्तियार किया गया तब भी अगले कई महीनो का वक्त लग सकता है और शबनम को होने वाली फांसी टल सकती है। सुनील गुप्ता कहते हैं जिस तरीके से शबनम के वकीलों ने राज्यपाल और अब राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल की है। उससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि कानून के बचे हुए सभी रास्तों को शबनम और उसके वकील अपनाएंगे।
2014 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है अगर राष्ट्रपति ने दया याचिका खारिज की है तो 14 दिन की मोहलत मिलना जरूरी है। इसके अलावा दया खारिज करने पर उसको चुनौती देने का अधिकार भी है। कानून के जानकार कहते हैं इस पूरी प्रक्रिया में कुछ महीनों का वक्त भी लग सकता है।
इसलिए थोड़ा अलग है शबनम का केस
निर्भया के दोषियों को फांसी दिए जाने की प्रक्रिया और शबनम को फांसी पर लटकाए जाने की प्रक्रिया में कानूनी दांव-पेच का खेल एकदम अलग है। तिहाड़ जेल के पूर्व लॉ ऑफिसर ने कहा दरअसल निर्भया के दोषियों की संख्या ज्यादा थी। इसलिए उनके पास कानूनी दांव पेचों से खेलना और उसके आधार पर राहत मिलने का अधिकार ज्यादा बार मिलता था। चार लोगों में से किसी भी एक का मामला अगर कोर्ट में या राष्ट्रपति के पास विचाराधीन होता था तो सभी लोगों को राहत मिल जाती थी। दिसंबर 2012 में निर्भया कांड हुआ था और उसके करीब आठ साल बाद मार्च 2020 में दोषियों को फांसी दी गई थी। हालांकि शबनम के मामले में ऐसा नहीं है। शबनम को एक बार जरूर कानूनी दांवपेच का फायदा फांसी को कुछ दिनों तक आगे बढ़वाने के तौर पर मिल सकता है।

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