आर्थिक समीक्षा में निजी क्षेत्र में नवोन्मेष को बढ़ाने पर विशेष ध्यान देना होगा

नई दिल्ली, आर्थिक समीक्षा में उच्च आर्थिक वृद्धि दर और देश को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए अन्य उपायों के अलावा विशेषकर निजी क्षेत्र में नवोन्मेष को बढ़ाने पर विशेष ध्यान देने को कहा गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसंद में 2020-21 की आर्थिक समीक्षा पेश करते हुए कहा, वर्ष 2007 में वैश्विक नवोमेष सूचकांक के अस्तिव में आने के बाद 2020 में पहली बार भारत 50 शीर्ष नवोन्मेषी देशों में शामिल हुआ। वर्ष 2020 में भारत 48 पायदान पर आ गया, जो 2015 में 81 पर था। उन्होंने कहा, भारत मध्य और दक्षिण एशिया में पहले नंबर पर और निम्न मध्यम आय वर्ग की अर्थव्यवस्था में तीसरे नंबर पर रहा। समीक्षा के अनुसार इसके लिए अनुसंधान और विकास पर कुल व्यय वर्तमान में जीडीपी के 0.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 2 प्रतिशत से अधिक करने की जरूरत है। इसमें आरएंडडी (अनुसंधान एवं विकास) कर्मियों और देश के अनुसंधानकर्ताओं खासतौर से निजी क्षेत्र के लोगों को उचित तरीके से शामिल करने का आह्वान किया गया है। अनुसंधान एवं विकास पर भारत का सकल घरेलू व्यय जीडीपी का 0.7 प्रतिशत (वास्तविक रूप से 0.65 प्रतिशत) है, जो विश्व की 10 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के व्यय (1.5 से 3 प्रतिशत) से कम है। समीक्षा में कहा गया है कि सरकारी क्षेत्र का कुल अनुसंधान एवं विकास पर सकल व्यय (जीईआरडी) में काफी बड़ा योगदान है जो अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के औसत का तीन गुना है। इसके अनुसार, लेकिन जीईआरडी में कंपनी क्षेत्र का योगदान भारत में सबसे कम है। कुल जीईआरडी में कंवपी क्षेत्र का योगदान वर्तमान 37 प्रतिशत से बढ़ाकर 68 प्रतिशत करने की आवश्यकता है। इसमें कहा गया है कि भारत को नवोन्मेष में अग्रणी रहने और 2030 तक 10 बड़ी अर्थव्यवस्था तक पहुंचने के लिए देश में दायर कुल पेटेंट आवेदनों में उसके निवासियों का हिस्सा संचयी आधार पर सालाना 9.8 प्रतिशत की दर से बढ़ना चाहिए जो फिलहाल 36 प्रतिशत है। पेटेंट में बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में योगदान 62 प्रतिशत है। पिछले साल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी को संसद में बजट सत्र के दौरान आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 पेश किया था। मौजूदा समय में मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन हैं। आर्थिक सर्वे देश की अर्थव्यवस्था पर एक तरह का आधिकारिक रिपोर्ट होती है। आमतौर पर इसे आम बजट से एक दिन पहले पेश किया।
इससे अर्थव्यवस्था की हालत के बारे में पूरी जानकारी विस्तार से दी जाती है। यह भी बताया जाता है कि भविष्य को लेकर क्या संभावनाएं हैं और आर्थिक मोर्चे पर कौन सी चुनौतियों का सामना करना होगा। इसमें विभिन्न सेक्टर्स की जानकारी होती है और उनमें रिफॉर्म्स व उपायों के बारे में भी बताया गया होता है। इस सर्वे के आउटलुक को देखते हुए ही भविष्य में नीतियां बनाई जाती हैं। आर्थिक सर्वेक्षण बुनियादी ढांचे, कृषि और औद्योगिक उत्पादन, रोजगार, कीमतों, निर्यात, आयात, विदेशी मुद्रा भंडार के साथ-साथ अन्य प्रासंगिक आर्थिक कारकों का विश्लेषण करता है, जिनका बजट में प्रमुख ध्यान होता है। यह दस्तावेज अर्थव्यवस्था की प्रमुख चिंताओं पर भी ध्यान केंद्रित करता है।
कोरोना महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था पर काफी गहरी चोट मारी है। 2020-21 के लिए आर्थिक सर्वेक्षण से यह अनुमान लगाया जा सकेगा कि कोविड-19 प्रेरित मंदी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान हुआ है। सर्वेक्षण में वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों पर विचार करने और समाधानों की पेशकश करने की अपेक्षा की गई है, जो देश को 5 ट्रिलियन डॉलर लक्ष्य प्राप्त करने में मदद करेगा। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, यह उम्मीद जताई जा रही है कि सरकार अर्थव्यवस्था पर महामारी की बारीकी से जांच करेगी। लोगों का मानना है कि आर्थिक सर्वेक्षण के आधार पर बजट तैयार होता है। लेकिन वास्तव में आर्थिक सर्वेक्षण बजट का मुख्य आधार है। इसमें प्रधानमंत्री के मुख्य आर्थिक सलाहकार की राय शामिल होती है। ऐसा जरूरी नहीं कि आर्थिक सर्वेक्षण की बातें बजट में हों।
आर्थिक सर्वे में अनुमान के अलावा यह भी बताया जाता है कि आखिर क्यों यह माना जाए कि इस अनुमान के मुताबिक अर्थव्यवस्था में ग्रोथ दिखेगी या गिरावट आएगी। इसमें कई बार यह भी बताया जाता है कि किन रिफॉर्म्स की वजह से आर्थिक ग्रोथ को बढ़ाया जा सकेगा। जब एक बार दस्तावेज तैयार हो जाता है तो उसे वित्त मंत्री द्वारा अनुमोदित कर दिया जाता है। पहला आर्थिक सर्वेक्षण 1950-51 में पेश किया गया था। बजट के समय ही इस दस्तावेज को पेश किया जाता है। 1964 से वित्त मंत्रालय बजट से एक दिन पहले सर्वेक्षण जारी करता आ रहा है।

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