नई दिल्ली, देश के अंदर सर्दी ने दस्तक देनी शुरू कर दी है। शाम होते ही मौसम में ठंडक का एहसास होने लगता है।दिल्ली में अक्टूबर में अंत में रात का तापमान 58 साल में महीने में सबसे ठंडा दर्ज किया गया। वहीं इस बार मौसम विभाग का कहना है कि अल नीनो और ला नीना से मौसम चक्र में परिवर्तन देखने को मिल सकता है। इंडोनेशिया और आसपास के देशों में ला नीना के असर से इस बार बारिश औसत से अधिक हुई।इसका असर नवंबर में देखने को मिलेगा। और दिसंबर में कोल्ड डे और सीवियर कोल्ड डे रहने वाले है। मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय मोहापात्रा ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी एनडीएमए की तरफ से ‘शीत लहर के खतरे में कमी’ पर आयोजित वेबिनार में कहा कि यह नहीं समझना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन से तापमान में बढ़ोतरी होती है। सच्चाई यह है कि तापमान में बढ़ोतरी की वजह से मौसम अनियमित हो जाता है।
मोहापात्रा ने कहा कि शीत लहर की स्थिति के लिए ला नीना अनुकूल होता है जबकि अल नीनो की स्थिति इसके लिए सहायक नहीं होता। ला नीना प्रशांत महासागर में सतह के जल के ठंडा होने से जुड़ा हुआ है जबकि अल नीनो इसकी गर्मी से जुड़ा हुआ है। समझा जाता है कि दोनों कारकों का भारतीय मॉनसून पर भी असर पड़ता है। दिल्ली के सफदरजंग वेधशाला ने अक्टूबर में औसत 17.2 डिग्री दर्ज किया। जम्मू और कश्मीर में, श्रीनगर में 27 अक्टूबर को शून्य के करीब तापमान दर्ज किया गया। जम्मू और कश्मीर की ठंडी हवाओं ने उत्तर के कुछ हिस्सों में तापमान सामान्य से नीचे चला गया। मध्य महाराष्ट्र के उत्तरी हिस्सों जैसे पुणे और नासिक में, ला नीना सामान्य से नीचे तापमान का कारण हो सकता है। शनिवार को लुधियाना में पुणे जैसा ही तापमान दर्ज किया गया, जबकि देहरादून में तापमान 14.3 डिग्री सेल्सियस था।
ला नीना और अल नीनो एक समुद्री प्रक्रिया है। ला नीना के तहत समुद्र में पानी ठंडा होना शुरू हो जाता है। समुद्री पानी पहले से ही ठंडा होता है, लेकिन इसके कारण उसमें ठंडक और बढ़ती है जिसका असर हवाओं पर पड़ता है। जबकि, अल नीनो में इसके विपरीत होता है यानी समुद्र का पानी गरम होता है और उसके प्रभाव से गर्म हवाएं चलती हैं। दोनों ही क्रियाओं का असर सीधे तौर पर भारत के मॉनसून पर पड़ता है। अल नीनो का अर्थ होता है शिशु या बालक, जो स्पैनीश भाषा से लिया गया है। यह समुद्र में होने वाली उथल-पुथल है और इससे समुद्र के सतही जल का ताप सामान्य से ज्यादा हो जाता है। वहीं ला-निना इसके ठीक विपरित है, इसके कारण समुद्री सतह का तापमान पूर्वी प्रशांत महासागर के सामान्य तापमान से कम होना होता है। इसका प्रभाव भी भूमध्य रेखीय एवं उप भूमध्य रेखीय क्षेत्र में पड़ता है।