नई दिल्ली, देश में कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन से एक तरफ जहां सभी आर्थिक गतिविधियां बंद थी। वहीं, इस दौरान नए जन धन खाता की संख्या में काफी इजाफा हुआ। एसबीआई की इकोरैप रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना महामारी के दौरान इस साल 1 अप्रैल के बाद से करीब 3 करोड़ नए जनधन खाते खुले हैं, इनमें कुल 11,600 करोड़ रुपए जमा किए गए हैं। यानी कोरोना महामारी के दौरान जनधन खाता खुलवाने के रेट में 60 फीसदी की तेजी आई।एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, 14 अक्टूबर तक देश में जनधन खातों की कुल संख्या 41.05 करोड़ तक पहुंच गई और इन बैंक अकाउंट्स में लगभग 1.31 लाख करोड़ रुपए डिपॉजिट हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 3 करोड़ जनधन अकाउंट कोरोना महामारी के दौरान खुले हैं। 41 करोड़ से ज्यादा खुले अकाउंट हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इन खातों में औसत बैंक बैलेंस अप्रैल में 3400 रुपए था जो सितंबर में घटकर 3168 रुपए रह गया, लेकिन अक्टूबर में फिर मामूली बढ़ोतरी के साथ 3185 रुपए पर पहुंच गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी की वजह से शुरूआत में लोग शहरों से गांव लौटे। ये लोग खर्च को लेकर ज्यादा सतर्क थे,इसकारण उनके बैंक अकाउंट में बचत के रूप में पैसे बढ़े। महामारी के दौरान बहुत से मजदूर शहरों से गांवों की ओर शिफ्ट हुए और कमाई नहीं होने से उनमें बचत करने की प्रवृत्ति बढ़ी, लेकिन जैसे ही लॉकडाउन खुला, वे वापस शहर लौटने लगे इसके बाद जनधन खातों का औसत बैंक बैलेंस कम हो गया।
रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल सितंबर में लेबर रेमिटेंस बढ़ा है, यानी मजदूरों द्वारा घर से बाहर या किसी दूसरे शहर में रहकर वहां कमाए गए पैसों में से बचत करके घर भेजने की राशि बढ़ी है।कोरोना के कारण लेबर रेमिटेंस अप्रैल और मई में काफी कम रही। लेकिन जून के बाद बढ़ी और सितंबर में लेबर रेमिटेंस कोरोना काल से पहले के स्तर पर पहुंच गया। अक्टूबर में इसके और बढ़ने की उम्मीद है। इसका मतलब यह है कि जो मजदूर शहरों से गांव की ओर लौटै थे, अब वे वापस शहर आकर फिर से काम जुट गए है।
लेबर रेमिटेंस बढ़ने के साथ अप्रैल से अगस्त के दौरान लगभग 25 लाख नए ईपीएफओ सब्सक्राइबर्स बने। इनमें 12.4 लाख सब्सक्राइबर पहली बार पेरोल पर आए थे और पहली बार उनका पीएफ कटा था। यानी 12.4 लाख लोगों उनका पहली नौकरी मिली थी। हालांकि,चिंता की बात यह है कि डिग्री ऑफ फॉर्मलाइजेशन यानी इन्फॉर्मल सेक्टर से फॉर्मल सेक्टर में आने वाले एम्प्लॉई की संख्या वित्त वर्ष 2021 में 6 फीसदी तक गिर गई है जो पिछले कुछ वर्षों में औसतन 11 फीसदी थी। एसबीआई की रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि सरकार को तीसरे राजकोषीय प्रोत्साहन के रूप में जनधन खातों में और अधिक पैसा डालना चाहिए।