नई दिेल्ली,आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के 15 दिन पितरों के श्राद्ध कर्म के लिए निश्चित होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मृत्यु लोक के देवता यमराज पितृपक्ष में पितरों को मुक्त करते हैं ताकि वे श्राद्ध कर्म के समय दिए गए तर्पण को प्राप्त करें और अपने वंश की उन्नति, सुख-समृद्धि का अशीर्वाद दें। पितृपक्ष के समय प्रतिदिन पितरों को तर्पण दिया जाता है। इस समय में जो लोग तर्पण देते हैं, उनको कुछ बातों का ध्यान रखना होता है। ऐसे व्यक्ति को 15 दिनों तक पितृपक्ष में ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए। स्नान के समय तेल, उबटन का प्रयोग नहीं करना चाहिए और स्नान के बाद प्रतिदिन तर्पण करना चाहिए। पितरों का तर्पण करने के लिए पानी में दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिला लें, फिर उससे पितरों को तृप्त करना चाहिए।
ऐसी मान्यता है कि जल से तर्पण करने पर पितरों की आत्माएं तृप्त होती हैं। पितृलोक में पानी की कमी होती है, इसलिए पितृपक्ष के प्रत्येक दिन कम से कम जल से तर्पण देना चाहिए। पितृपक्ष में तिथि वाले दिन ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए और वस्त्र दान करना चाहिए। इससे पितरों को भोजन और वस्त्र प्राप्त होता है। पितृपक्ष के 15 दिनों में पितरों के लिए प्रतिदिन भोजन निकाला जाना चाहिए। गाय और कौए के लिए ग्रास निकालना चाहिए। पितृपक्ष के समय कोई भी मांगलिक या धार्मिक कार्य जैसे, गृह प्रवेश, शादी, मुंडन, 16 संस्कार वर्जित रहते हैं। नया वस्त्र खरीदने और पहनने की मनाही होती है। रात्रि एवं संध्या के समय भूलकर भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। पिता का श्राद्ध बेटा, उसी पत्नी, अविवाहित बेटी या विवाहित बेटी का पुत्र यानी नाती कर सकता है।