जबलपुर में इलाज के लिए अफसर पति को लेकर निजी अस्पतालों में भटकती रही पत्नी…….!

जबलपुर, कोविड-१९ की आड़ में एक निजी अस्पताल ने दोयम दर्र्जे की न केवल लापरवाही की बल्कि लाखों रुपये वसूलने के बाद मरीज को उसके हाल पर छोड़ दिया। एक वरिष्ठ अधिकारी के साथ ऐसा व्यवहार हुआ तो आम आदमी के साथ क्या व्यवहार होता होगा? इसकी कल्पना तक से रोंगटें खड़े हो जायेंगे। २० दिन मरीज को भर्ती रखने के बाद शैल्बी अस्पताल के डॉक्टर ने उसे यह कहकर छुट्टी दे दी कि तुम्हारी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव है मेट्रो अस्पताल में इलाज कराओं, जबकि बात कुछ हुई नहीं थी। मरीज के साथ अकेले उसकी पत्नी थी। लिहाजा महिला अकेले परेशान होती रही। अस्पताल वालों ने एंबुलेंस भी उपलब्ध नहीं कराई। काफी जद्दोजहद के बाद एंबुलेंस मिली तो एंबुलेंस तब तक रोकी गई जब तक की पूरा पैसा नहीं मिल गया, इसके बाद मरीज को लेकर मेट्रो अस्पताल पहुंचे। मेट्रो अस्पताल प्रबंधन ने बताया कि उनकी शैल्बी हॉस्पिटल से कोई बातचीत नहीं हुई है। बेड खाली नहीं है आप मेडीकल जायें। इसके बाद महिला मरीज को लेकर स्वास्तिक लाइफ मेडीसिटी हॉस्पिटल भी पहुंची, इस दौरान ५-६ घंटे खराब हुये, और किसी भी हॉस्पिटल ने मरीज को लेने से इंकार कर दिया। यह मामला कलेक्टर के संज्ञान में आया तो उन्होंने शैल्बी हॉस्पिटल के दो डॉक्टर को तलब कर उन्हें फटकार लगाई और दो टूक शब्दों में कहा कि २० दिन से मरीज भर्ती था, तब कोरोना नहीं हुआ, इसका मतलब है कि मरीज को अस्पताल में ही कोरोना हुआ और बिना इलाज के, बिना रिपोर्ट के मरीज को कोरोना बताकर डिस्चार्ज कर दिया। कलेक्टर ने पहले तो मरीज को मेडीकल अस्पताल में भर्ती कराया और शैल्बी के प्रबंधन को कड़ी चेतावनी दी कि यदि मरीज को कुछ हुआ तो अस्पताल में ताला लगवा दिया जायेंगा, और डॉक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जायेंगी।
बिना रिपोर्ट के बता दिया कोरोना पॉजिटिव
सूत्रों के मुताबिक उद्योग विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी जिनका ५-६ साल पहले लीवर ट्रांसप्लांट हुआ हैं उन्हें अस्वस्थ्य होने पर १४ से १५ अगस्त के बीच में शैल्बी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। २० दिन तक उनका वहां इलाज चला, हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। २०वें दिन २८ अगस्त की रात में मरीज को यह कहकर डिस्चार्ज कर दिया गया कि मरीज की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आई है, मरीज के अटेंडर को कहा गया कि मेट्रो अस्पताल में बातचीत हो गई है, आप वहां भर्ती करा दों, कोरोना का इलाज वहां हो जायेगा। मरीज के साथ उनकी पत्नी अकेली थी और रात में इधर-उधर भटक रही थी। शैल्बी प्रबंधन द्वारा एंबुलेंस भी उपलब्ध नहीं कराई गई थी। काफी जद्दोजहद के बाद जब एंबुलेंस मिली, तो तब तक रोके रखी, जबतक पूरा पैसा जमा नहीं हो सका।
४ अस्पतालों में भटकी महिला
शैल्बी अस्पताल से निकलने के बाद उद्योग विभाग के अधिकारी की पत्नी अपने मरीज पति को लेकर सबसे पहले मेट्रो अस्पताल पहुंची, जहां यह जवाब मिला कि शैल्बी हॉस्पिटल से उनकी कोई भी बातचीत नहीं हुई है और फिलहाल मेट्रो में कोविड के कोई भी बेड खाली नहीं है। इसके बाद महिला अपने पति को लेकर स्वास्तिक अस्पताल, लाईफ मेडीसिटी हॉस्पिटल, पहुंची, लेकिन वहां भी उसे पेशेंट की सीरियस हालत देखकर अस्पतालोें ने लेने से इंकार कर दिया। सूत्रों के मुताबिक महिला ५-६ घंटे तक भटकती रही और उसी दिन शहर में घनघोर बारिश भी हो रही थी, अंतत: कलेक्टर कर्मवीर शर्मा के संज्ञान में यह मामला सामने लाया गया। उन्होंने पहले तो मरीज को मेडीकल अस्पताल में भर्ती कराया, जहां उसका इलाज शुरु हुआ।
कोरोना रिपोर्ट का अता-पता नहीं
जिस अधिकारी को कोरोना पॉजिटिव बताकर डिस्चार्ज किया, उसका कोरोना रिपोर्ट का अता-पता नहीं है। सरकारी आंकडों में उस अधिकारी के कोरोना रिपोर्ट होने का कोई उल्लेख नहीं है। न सरकारी लैब से न प्राईवेट लैब से, जबकि शैल्बी हॉस्पिटल से बंसल पैथालॉजी के रिपोर्ट का हवाला देकर मरीज को कोरोना पॉजिटिव होना बताया गया। यह वहीं लैब है जिसने निगेटिव को पॉजिटिव बता दिया गया था, और इस लैब को सैंपल लेने पर रोक लगा दी गई थी।
कलेक्टर ने लगाई जमकर फटकार
कलेक्टर के संज्ञान में जब यह मामला आया तो उन्होंने शैल्बी हॉस्पिटल के दो जिम्मेदार से तलब किया और जमकर फटकार लगाई। सूत्रों की मानें तो कलेक्टर ने दो टूक शब्दों में कहा कि प्रशासन के क्लास १ अफसर के साथ ये बर्ताव है तो आम आदमी के साथ क्या होता होगा? उन्होंने यह भी कहा कि मरीज को कुछ हुआ तो अस्पताल में ताला लगवा दिया जायेगा। कोरोना काल में एक-दो अस्पताल बंद हो जायेगे तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
पत्नी ने दी लिखित शिकायत
इस पूरे घटनाक्रम के बाद उद्योग विभाग के अधिकारी की पत्नी ने शैल्बी हॉस्पिटल के पूरे घटना क्रम की लिखित शिकायत कलेक्टर को सौंपी है। शिकायत जिला प्रशासन के पास जांच में है। प्रशासन इस पर क्या कार्रवाई करता है। यह तो समय बतायेगा।
शैल्वी अस्पताल में मरीज से मिलने पर २० रुपये का शुल्क
मरीजों के साथ-साथ आंगतुक टिकिट के नाम पर भी हॉस्पिटल में खुलेआम लूट जारी हैं। यदि कोई परिजन या रिश्तेदार अपने मरीज को देखने या मिलने के लिए इच्छुक हैं तो उसे प्रति व्यक्ति २० रूपये देना होंगा। यह बात किसी को नहीं पचेगी लेकिन शहर के शैल्बी हॉस्पिटल में आय बढाने का एक नया जरिया निकाल लिया हैं। अभी तक दवाईयों, वाहन के स्टैंड के नाम पर लूट की जाती रहीं हैं अब आंगतुक टिकिट के नाम पर अस्पताल में लूट जारी हैं।
यदि आपके पास आगंतुक टिकिट नही हैं तो आपको मरीज से मिलने तो छोड़िए देखने को भी नही दिया जाएगा। इस प्रकार की व्यवस्था से परिजन आंगतुक टिकिट लेने मजबूर हैं। अब प्रश्न यह उठता हैं कि कब तक इस प्रकार पैसे कमाने का खेल जारी रहेंगा।

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