कानपुर,उत्तर प्रदेश पुलिस के नाक में दम करने वाला शातिर अपराधी विकास दुबे की मारे जाने की तकनीकी तौर पर पुलिस को कोर्ट में कोई रिपोर्ट नहीं देनी होगी। क्योंकि वह न्यायिक हिरासत में नहीं था। मध्य प्रदेश पुलिस ने भी उसे अधिकारिक तौर पर गिरफ्तार नहीं किया था। जानकारों के मुताबिक अगर कोई अपराधी न्यायिक हिरासत में हो और इस दौरान उसके साथ कोई अनहोनी हो जाए या वो एनकाउंटर में मारा जाए तो ऐसे हालात में संबंधित जिले की पुलिस को कोर्ट को पूरे मामले की रिपोर्ट देनी पड़ती है। कोर्ट को विस्तार से सब बताना पड़ता है। लेकिन विकास दुबे के मामले में यूपी पुलिस को कोर्ट में रिपोर्ट नहीं देनी होगी। क्योंकि एमपी पुलिस ने विकास दुबे को हिरासत में लिया था, लेकिन उसकी गिरफ्तारी नहीं दिखाई थी। बस इसी बात का फायदा यूपी पुलिस को आगे चलकर मिल सकता है। आपको बता दें कि शुक्रवार की सुबह साढ़े 6 बजे के करीब एसटीएफ की टीम ने कानपुर नगर के बाहर हाइवे पर विकास दुबे को उस वक्त मार गिराया, जब वो एसटीएफ की गाड़ी पलट जाने के बाद वहां से भागने की कोशिश कर रहा था। पुलिस के मुताबिक उसने एक पुलिसकर्मी की पिस्टल छीन ली थी और वो भाग रहा था। जब पुलिस ने उसे रोकने की कोशिश की तो उसने पुलिस पर फायरिंग कर दी। जवाबी कार्रवाई में विकास को गोली लगी।बाद में विकास को खून से लथपथ हालत में अस्पताल ले जाया गया। जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक इस दौरान मुठभेड़ में चार पुलिसकर्मियों के घायल होने की ख़बर थी। बाद में बताया गया कि दो पुलिसकर्मियों को गोली लगी है। पहले उन्हें सीसीएस कल्याणपुर में प्राथमिक उपचार दिया गया और उसके बाद कानपुर के अस्पताल में लाया गया। गौरतलब है कि एक दिन पहले ही विकास दुबे को मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकाल मंदिर से पकड़ा गया था। उसे कानपुर लाया जा रहा था। पकड़े जाने के बाद भी विकास चिल्ला-चिल्लाकर यह बता रहा था मैं विकास दुबे हूं कानपुर वाला। ऐसे में अब सवाल यह भी उठ रहे हैं कि ऐसा क्या हुआ कि एक दिन पहले ही जो अपराधी खुद चिल्ला-चिल्लाकर अपना परिचय बता रहा था, वह अपने इलाके में पहुंचते ही भागने की कोशिश करने लगा? पुलिस विभाग के अधिकारी सवालों पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।