बारिश के रूप में पिघलकर ब्रह्मांड में गिर रहे हैं शनि के चमकदार छल्ले

नई दिल्ली, नासा के वैज्ञानिक मानते हैं कि शनि ग्रह के आसपास बने चमकदार छल्ले काफी नए हैं, लेकिन तब भी ये तेजी से गायब होते जा रहे हैं। इनके गायब होने की रफ्तार को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि ये रिंग्स 10 करोड़ से 30 करोड़ सालों तक पूरी तरह से गायब हो जाएंगे। नासा के स्पेसक्राफ्ट कैसिनि ने भी इसपर डाटा जमा किए, जो यही बताता है। शनि ग्रह के चारों ओर उसे घेरे रहने वाली ये रिंग्स धूल, गैसों और छोटे-छोटे पत्थरों से मिलकर बने हैं। हालांकि देखने में ये काफी चमकदार लगते हैं। ये अपनी परिधि में रहते हुए लगातार शनि के चारों ओर घूमते रहते हैं। हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि शनि के ये छल्ले जल्द ही गायब हो जाएंगे। आकार के लिहाज से बृहस्पति के बाद सबसे बड़े ज्ञात ग्रह शनि को सबसे पहले 1610 में देखा गया। इसके बाद 1656 में क्रिश्चियन हाइगन्स ने इसके छल्लों को देखा। ये बर्फ और चट्टानों के छोटे-छोटे कणों से बने हैं, जो कुछ सेंटीमीटर से लेकर कई मीटर तक के आकार वाले हैं। ये छल्ले अपनी परिधि में रहते हुए लगातार शनि की परिक्रमा करते रहते हैं।
वैज्ञानिक जर्नल इकैरस में छपी स्टडी के अनुसार शनि के छल्ले पिघलकर बारिश के रूप में ब्रह्मांड में गिर रहे हैं। इनके बर्फ से पानी होने की गति इतनी ज्यादा है कि लगभग आधे घंटे में एक पूरा ओलंपिक साइज स्विमिंग पूल भर सकता है। वैज्ञानिक इसे रिंग रेन कहने लगे हैं। पहले ये माना गया कि रिंग रेन के कारण 30 करोड़ सालों में शनि के छल्ले पूरी तरह से गायब हो जाएंगे। हालांकि हाल ही में कैसिनी स्पेसक्राफ्ट ने शनि के इन छल्लों के आसपास का चक्कर लगाया और निष्कर्ष कहता है कि इन छल्लों को खत्म होने में सिर्फ 10 करोड़ साल ही लगने वाले हैं। शनि के इन छल्लों की उम्र अब तक जांची नहीं जा सकी है, लेकिन माना जा रहा है कि ये हाल ही में कुछ सौ करोड़ सालों के दौरान बने हैं, यानी ब्रह्मांड की बाकी चीजों की अपेक्षा ये ज्यादा नए और युवा हैं। ऐसा माना जा रहा है कि दूसरे बड़े ग्रहों जैसे बृहस्पति, यूरेनस और नेप्च्यून के आसपास भी इसी तरह के छल्ले रहे होंगे जो वक्त के साथ गायब हो गए। वैज्ञानिकों का मानना है कि ये छल्ले डायनोसोर के वक्त में और भी ज्यादा चमकदार और ज्यादा बड़े रहे होंगे, जो किसी वजह से धीरे-धीरे बारिश बनकर बहने लगे हैं। ऐसा ही दूसरे ग्रहों के छल्लों के साथ भी हुआ होगा, हालांकि ये छल्ले अब भी वैज्ञानिकों के लिए रहस्य बने हुए हैं।

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