पंजाब में कोरोना काल में खेतों में काम करने को मजबूर एमए-बीए पास लड़कियां

चंडीगढ़, लुधियाना की रहने वाली रिम्पी कौर पंजाब सरकार द्वारा विज्ञापित मास्टर कैडर टीचर्स पदों के लिए होने वाली भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रही हैं। वह पंजाबी में पोस्ट ग्रेजुएट हैं और उन्होंने 2017 में शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) भी पास कर ली थी। लेकिन, रिम्पी अब अकबर खुडाल गांव में 10 लोगों के समूह के साथ धान रोपाई का काम कर रही हैं। इस समूह में उनके परिवार के दूसरे सदस्य भी हैं। इन सभी ने 50 एकड़ में धान की रोपाई का काम 3200 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से लिया है, जिससे कुल 1.6 लाख रुपये आएंगे। काम पूरा करने पर रिम्पी को मेहनताने के रूप में 16,000 रुपये मिलेंगे। पंजाब में बेरोजगारी का ये हाल है। रिम्पी के भाई कुलदीप खुडाल बताते हैं, ‘मैं एक निजी कॉलेज में क्लर्क हूं। मुझे काम की वजह से रोज घर से बाहर जाना पड़ता है। मेरे पिता रिक्शा चालक हैं, जबकि मां की तबीयत अच्छी नहीं रहती। लिहाजा घर में धान की रोपाई करने वाली रिम्पी एकमात्र महिला हैं।’
वहीं, रिम्पी कहती हैं, ‘जब आपके पास कोई नौकरी नहीं है और कोई बेरोजगारी भत्ता भी नहीं मिलता है, तो ऐसे में आप क्या करेंगे। रोजी-रोटी के लिए कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा? मेरी डिग्री मुझे नौकरी नहीं दे रही है, इसलिए मैं ऐसे काम करके पैसा कमा सकती हूं।’ संगरूर के भिंडर गांव की रहने वाली संदीप कौर की कहानी भी रिम्पी जैसी ही है। संदीप इसी गांव में कताई मिल में काम कर रही थी, नौकरी छूटने के बाद वह भी धान की रोपाई में लगी हुई है। संदीप कौर ने ह्यूमैनिटिज में ग्रैजुएशन किया है और खेती किसानी परिवार से ताल्लुक रखती हैं। कुछ यही हाल इसी गांव की रहने वाली बेअंत कौर का है। कोरोना के कारण बरनाला फैक्ट्री में उसकी नौकरी चली गई। वह बीए बीएड है और कंप्यूटर डिप्लोमा भी कर चुकी है, लेकिन बेरोजगार है। बेअंत कहती है, ‘नौकरी नहीं मिलने के कारण मैं कई महीनों से इस फैक्ट्री में काम कर रही थी। मेरे पिता एक खेत मजदूर हैं। इसलिए, मैं अब खेत में परिवार का हाथ बंटा रही हूं।’ ये सभी 3200 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से अन्य किसानों के खेतों में काम कर रहे हैं। गांव अकबर खुडाल की महिलाएं, कॉलेजों में पढ़ने वाली लड़कियां और बेरोजगार लड़के खेती में लग गए हैं।
एक टीम के रूप में काम कर रहे हैं कई मजदूर
पंजाब खेत मजदूर यूनियन के अध्यक्ष लछमन सिंह सेवेवाला ने कहा, ‘कताई मिलों, कपड़ा और बुनाई इकाइयों में काम करने वाली कई लड़कियों से कहा गया है कि वे घर पर रहें। लछमन सिंह बताते हैं, ‘कोरोना महामारी की वजह से पहले काम बंद था, लिहाजा प्रवासी मजदूर मजबूरन अपने घर लौट गए। ऐसे में अब मजदूर नहीं मिल रहे हैं। गांवों में रहने वाले कई खेतिहर मजदूर एक टीम के रूप में काम कर रहे हैं, ताकि परिवार के भीतर अधिक से अधिक पैसा आ सके। इस काम में कक्षा 10, 12 के छात्र भी जुट गए हैं।

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