अहमदाबाद, अंबाजी समेत गुजरातभर में “चुनरी वाली माताजी” के नाम से विख्यात प्रहलाद जानी का 91 साल की आयु में निधन हो गया। सोमवार की रात 2.45 बजे प्रहलाद जानी ने अपने पैतृक गांव चराडा में अंतिम सांस ली। देर रात जानी को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी और कुछ देर बाद उनका निधन हो गया। पिछले काफी समय से प्रहलाद जानी की तबियत नादुरुस्त थी। कुछ दिन पहले उनका कोरोना टेस्ट भी किया गया था, जिसकी रिपोर्ट नेगेटिव आई थी। प्रहलाद जानी का पार्थिव देह अंतिम दर्शन के लिए अंबाजी स्थित गब्बर में रखा जाएगा और 28 मई की सुबह 8 बजे उनके आश्रम में ही उन्हें समाधी दी जाएगी। चुनरी वाली माताजी के निधन की खबर से उनके श्रद्धालुओं में शोक की लहर दौड़ गई। अंतिम दर्शन को आनेवाले श्रद्धालुओं को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने होगा। बता दें कि प्रह्लाद जानी का जन्म 13 अगस्त 1929 को हुआ था और महज 10 वर्ष की आयु में ही उन्होंने अध्यात्मिक जीवन के लिए अपना घर छोड़ दिया था। एक साल तक वह माता अंबे की भक्ति में डूबे रहे, जिसके बाद वह साड़ी, सिंदूर और नाक में नथ पहनने लगे। वह पूरी तरह से महिलाओं की तरह श्रृंगार करते थे। पिछले 50 वर्ष से जानी गुजरात के अहमदाबाद से 180 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर अंबाजी मंदिर की गुफा के पास रहते थे।
चराडा गांव के मूल निवासी प्रह्लाद जानी के क्रियाकलापों ने वैज्ञानिकों को चक्कर में डाल रखा था। देश-विदेश के डॉक्टर सहित इसरो के वैज्ञानिक भी प्रह्लाद जानी के राज को जानना चाहते थे और इसके लिए देश की जानी-मानी संस्था डीआरडीओ के वैज्ञानिकों की टीम ने सीसीटीवी कैमरे की नजर में 15 दिनों तक 24 घंटे निगरानी में रखा। डॉक्टरों का पैनल भी हैरान था कि बिना खाए पिए कोई इंसान इतने वर्षों तक कैसे जीवित रह सकता है। प्रह्लाद जानी का दावा था कि उन्होंने 80 साल से कुछ भी नहीं खाया। उनके इर्द-गिर्द वैज्ञानिकों की एक टीम लगी रहती है। वह टॉइलट भी नहीं जाते थे और बिना खाए-पिए इतने सालों तक ‘भूखे’ लेकिन जिंदा थे। प्रहलाद जानी का दावा था कि हजार बरस इसी तरह जिएंगे।
“चुनरी वाली माताजी” से विख्यात प्रहलाद जानी का 91 साल की आयु में देवलोकगमन
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