SC का धार्मिक चढ़ावे पर कड़ा रुख, कहा इसके पैसों का कसीनो के लिए हुआ इस्तेमाल तो खैर नहीं

नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि धार्मिक स्थलों पर चढ़ावा चढ़ाना धार्मिक परंपरा हो सकती है लेकिन अगर इसका उपयोग ‘आतंकवाद या ‘कसीनो चलाने के लिए किया जा रहा हो तो इस धनराशि को कानून के जरिए नियंत्रित किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘मानव बलि देना और ‘सती जैसी प्राचीन प्रथा कानून के तहत हत्या है और आवश्यक धार्मिक परपंरा के आधार पर इसे बचाया नहीं जा सकता है। चीफ जस्टिस एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने धार्मिक स्वतंत्रता के दायरे से संबंधित मुद्दों के साथ ही अलग-अलग धार्मिक पंथों की ‘आवश्यक धार्मिक परंपराओं की न्यायिक समीक्षा पर सोमवार को सुनवाई शुरू की। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एम एम शांतानागौदर, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत शामिल हैं।
धार्मिक परंपराओं पर सवाल गलत नहीं
कोर्ट इस मुद्दे पर भी विचार कर रहा है कि क्या कोई व्यक्ति किसी आस्था विशेष से संबंधित नहीं होने के बाद भी उस धर्म की धार्मिक परंपराओं पर सवाल उठाते हुए जनहित याचिका दायर कर सकता है। ये सवाल सबरीमाला मामले में शीर्ष अदालत के फैसले से उठे हैं। संविधान पीठ धार्मिक मामलों में न्यायिक अधिकार के दायरे पर भी विचार कर रही है और उसने इस संबंध में मंदिरों में आने वाले चढ़ावे या दान देने की परपंरा का उदाहरण दिया और कहा कि यह धार्मिक परपंरा का हिस्सा है।
‘दान, सफाई और स्वास्थ्य पर लग सकता है नियंत्रण
पीठ ने यह भी कहा, ‘लेकिन अगर इस धन का इस्तेमाल आतंकवाद या कसीनो चलाने आदि के लिए होता है तो यह धर्म का पंथनिरपेक्ष हिस्सा है और इसे कानून द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। पीठ ने यह भी कहा कि किसी धार्मिक न्यास की ‘दान, सफाई और स्वास्थ्य से संबंधित गतिविधयों को भी कानून से नियंत्रित किया जा सकता है। केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने बहस शुरू करते हुए कहा, ‘भले ही यह अनिवार्य धार्मिक परंपरा हो, इसे नियंत्रित किया जा सकता है अगर यह संविधान के अनुच्छेद 26 में प्रदत्त तीन आधारों (लोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य) पर असर डालती हो।

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