राजकोषीय घाटे की चिंता के बीच संसद में कल पेश होगा आम बजट

नई दिल्ली,मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट कल पेश होगा। इस बजट को एक दशका का सबसे चुनौती पूर्ण बजट कहा जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि अर्थव्यवस्था के तमाम आंकड़े सुस्ती की ओर इशारा कर रहे हों और जीडीपी विकास दर के एक दशक के निचले स्तर पर जाने का अनुमान हो, ऐसी स्थिति में वित्त मंत्री के लिए बजट कितना चुनौतीपूर्ण होगा, यह आसानी से समझा जा सकता है। यही नहीं, नॉमिनल ग्रोथ के घटकर 42 साल के निचले स्तर पर जाने का अनुमान जताया गया और इस महीने की शुरुआत में सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी विकास दर 5 फीसदी पर रहने का अनुमान जताया है। इसके अलावा, अर्थव्यवस्था की रफ्तार में सुस्ती से केंद्र सरकार की आमदनी पर भी बड़ा प्रतिकूल असर पड़ा है और इस वित्त वर्ष में कुल आमदनी में 2 लाख करोड़ रुपए कम रहने की उम्मीद है। इन सबका यही अर्थ निकलता है कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए उम्मीदों का वास्तविकता के साथ संतुलन बनाने का काम बेहद मुश्किल साबित हो सकता है।
चिंता के मुख्य बिंदु
कई सूचकों के फिसलने का अनुमान
अग्रिम अनुमानों के मुताबिक, अर्थव्यवस्था से जुड़े कई सूचकों के कई सालों के निचले स्तर पर पहुंच जाने की उम्मीद है। इनमें से निवेश में वृद्धि भी शामिल है, जिसमें महज 1 फीसदी की गिरावट हो सकती है, लेकिन इसके साथ ही यह 17 साल के निचले स्तर पर पहुंच सकता है।
जीडीपी ग्रोथ रेट: 5 फीसदी (11 सालों में सबसे कम)
खपत: 5.8 फीसदी (7 सालों में सबसे कम)
निवेश: 1 फीसदी (17 सालों में सबसे कम)
मैन्युफैक्चरिंग: 2 फीसदी (5 सालों का निचला स्तर)
एग्रीकल्चर: 2.8 फीसदी (4 सालों में सबसे कम)
महंगाई में बढ़ोतरी बरकरार
दिसंबर में सीपीआई आधारित मंहगाई दर आरबीआई के लक्ष्य को पार कर 7.35 फीसदी पर पहुंच गई। ऐसा सब्जियों के महंगा होने की वजह से हुआ। उच्च महंगाई दर को देखते हुए रेट कट पर लगाम लगाने से पहले आरबीआई रीपो रेट में छह बार कटौती के जरिए नीतिगत ब्याज दर को 1.35 फीसदी घटा चुका है।
लक्ष्य पार कर सकता है राजकोषीय घाटा
सरकार ने अंदाजा लगाया है कि इस साल राजकोषीय घाटा लक्ष्य 0.5 फीसदी से चूक सकता है। राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.8 फीसदी पर पहुंच सकता है, जो बजट के 3.3 फीसदी के टारगेट से काफी अधिक है।
टैक्स कलेक्शन में गिरावट
टैक्स कलेक्शन में लगभग 2 लाख करोड़ रुपए की कमी आने का अनुमान है, जिसके कारण सरकार को खर्च में बढ़ोतरी से हाथ पीछे खींचने होंगे। इसके कारण किसी फिस्कल स्टिम्यूलस की संभावना भी नगण्य हो जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि व्यक्तिगत आयकर में किसी तरह की कटौती से खपत बढ़ाने में कोई लाभ नहीं मिलेगा, क्योंकि इसका असर बेहद कम लोगों पर पड़ेगा।
पूंजीखर्च में बढ़ोतरी की भी संभावना नगण्य
जब राजकोषीय घाटा बढ़ रहा है, ऐसे में भारी-भरकम खर्च कर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का दांव भी मुश्किल होगा। साथ ही, ज्यादा कर्ज लेने के टारगेट का भी इकॉनमी को नुकसान होगा, क्योंकि इससे निजी क्षेत्र के कर्ज में कमी आएगी।
वित्त वर्ष 2018-19 में सरकार की आमदनी: 3.17 लाख करोड़ रुपए
वित्त वर्ष 2019-20 में सरकार की अनुमानित आमदनी: 3.39 लाख करोड़ रुपए
वित्त वर्ष 2019-20 में नवंबर तक कुल राजस्व संग्रह: 2.14 लाख करोड़ रुपए
कर्ज प्रवाह रुका
खपत के प्रभावित होने के बाद साल 2019 में बैंकों द्वारा बांटे जाने वाले कर्ज में भारी गिरावट आई है। साल 2019 में बैंकों के कर्ज में 7.1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जो एक दशक में दूसरी सबसे सुस्त रफ्तार है।
संरचनात्मक सुधारों में लगेगा वक्त
केंद्र सरकार ने 44 श्रम कानूनों को एक संहित में संबद्ध कर संरचनात्मक सुधारों के प्रति अपना इरादा जता दिया है। इनमें से एक संहिता को पिछले साल संसद की मंजूरी मिल भी गई है। अन्य संरचनात्मक सुधारों में समय लग सकता है।

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