भोपाल/अगर मालवा,पिछले एक महीने में प्रदेश के आगर-मालवा में कडाके की सर्दी के कारण 500 से अधिक गायें काल के गाल में समा गई। इनमें से 90 फीसदी गायें लावारिस बताई जा रही है। इसके बावजूद पशुओं को लावारिस छोड दिया जा रहा है। आगर की गौशाला के प्रबंधन द्वारा गायों को ठंड के प्रकोप से बचाने के लिए 15 दिनों से गौशाला और शहर की लावारिस गायों को काढ़ा बनाकर पिलाया जा रहा है। पशु चिकित्सा विभाग भी खबर लगने के साथ बीमार गायों के उपचार के लिए पहुंच रहा है। नगर पालिका के प्रभारी स्वच्छता निरीक्षक चिंतामण व्यास ने बताया कि आमतौर पर दो-चार गाय तो आगर शहर में मरती रहती हैं, किन्तु करीब 1 माह में कम से कम 10 और अधिकतम 35 गाय तक एक दिन में मरी हैं। इनकी संख्या मिलाकर 500 से अधिक है। इनमें लावारिस गायों की संख्या करीब 85 से 90 प्रतिशत तक है। औसतन तीन गाय गौशाला की भी मरती हैं। मृत गायों को नगर पालिका आबादी क्षेत्र के बाहर गड्ढा खोदकर गड़वाया जाता है। बीमार होने की सूचना नगर पालिका अथवा गौशाला प्रबंधन को मिलने पर निकाय द्वारा संचालित पशु एंबुलेंस वाहन तुरंत भिजवाते हैं। गौशाला के कर्मचारी गंभीर स्थिति में गाय को सीधे पशु चिकित्सालय ले जाते हैं और आमतौर पर सामान्य बीमार गाय को गौशाला। स्थानीय माधव गौशाला के कार्यकारी अध्यक्ष ओमप्रकाश गोयल ने बताया कि गौशाला की करीब 700 से अधिक गायों को शेड में रखते हुए उनकी साज- संभाल ठंड के मद्देनजर कर्मचारी करते हैं। प्रतिदिन रात्रि को गुड़-अजवायन, हल्दी व लहसुन का करीब 400 लीटर काढ़ा गौशाला में 15-20 दिनों से तैयार किया जा रहा है। यह काढ़ा गौशाला की गायों के अलावा शहर के चौराहों पर लावारिस बैठी गायों को भी पिला रहे हैं।
शासन निर्देशानुसार गोशाला में गायों को आहार सामग्री में सुदाना खिलाया जा रहा है, यही वजह है कि सड़कों पर लावारिस गायों की तुलना में करीब 10 प्रतिशत औसतन 3 गाय गौशाला की मर रही है। वर्षाकाल में खरीफ की बोवनी के बाद से आसपास के गांवों से गायों को शहर में छोड़ दिए जाने का सिलसिला हर वर्ष चलता आया है। इन गायों की मौत शहर में स्वच्छंद विचरण के दौरान सड़ा-गला आहार खाने और ठंड हो या बरसात रात आसमान के नीचे खुले में गुजारना पड़ती है। होने को तो इस जिले में देश का एक मात्र और सबसे बड़ा गौ अभयारण्य सुसनेर के सालरिया में संचालित होता है। इसमें 6 हजार गायों को रखे जाने की व्यवस्था है। सूत्रों के अनुसार वर्तमान में करीब 4 हजार 500 गाय अभयारण्य में हैं। इधर आगर शहर में अनुमानत: 800 के करीब गाय लावारिस दशा में भटकती रहती हैं। ऐसे में इनको गौ अभयारण्य पहुंचाया जा सकता है। विकल्प के रूप में स्थानीय गौशाला प्रबंधन, जो लंबे समय से इस गौशाला को अतिरिक्त शासकीय भूमि आबंटन करने की मांग कर रहा है, यह भूमि उपलब्ध कराते हुए यदि शेड बनवा दिए जाएं तो इस समस्या से काफी राहत मिल सकती है, किन्तु इन दोनों ही दिशा में कोई गंभीर प्रयास जिम्मेदारों के स्तर पर नहीं किए जा रहे हैं।पशु चिकित्सकों के अनुसार ठंड के प्रकोप से बचाव के लिए ऊर्जा सबसे बड़ी जरूरत होती है। लावारिस गाय खुले में रहती हैं और जरूरत के अनुसार उन्हें आहार भी नहीं मिल पाता है।