नई दिल्ली, शोधकर्ताओं की माने तो मोटापे से बच्चों की याददाश्त भी कमजोर होती है। साथ ही सोचने और योजना बनाने में भी उन्हें मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ वेरमॉन्ट और येल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा अध्ययन के लिए 10,000 किशोरों के आंकड़े जुटाए गए। 10 साल चले अध्ययन के दौरान हर दो साल में उनकी जांच की गई और ब्लड सैंपल लिया गया। इस दौरान उनके दिमाग की स्कैनिंग भी की जाती रही। वैज्ञानिकों ने पाया कि जिन बच्चों का बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआइ) ज्यादा होता है, उनका सेरेब्रल कॉर्टेक्स पतला हो जाता है। सेरेब्रल कॉर्टेक्स एक परत है जो दिमाग के बाहरी हिस्से को ढकती है। कॉर्टेक्स पतला हो जाने से दिमाग की सोचने, याद रखने और परिस्थितियों को समझकर योजना बनाने जैसी क्षमताएं प्रभावित हो जाती हैं। बढ़ती उम्र के साथ नजर कमजोर होते जाने से जुड़ी बीमारी एज-रिलेटेड मैक्यूलर डीजनरेशन (एएमडी) के इलाज की दिशा में उम्मीद की नई किरण दिखी है। वैज्ञानिकों ने बताया कि रेटिना में कुछ लाइट रिसेप्टर होते हैं जो प्रकाश को सोखते हैं। फिर उस सूचना पर काम करते हुए संदेश दिमाग तक पहुंचाया जाता है। हालिया शोध में पाया गया है कि हमारा दिमाग सूचनाओं पर काम करते समय प्राकृतिक और कृत्रिम दृश्य के अंतर को आसानी से समझ लेता है। इससे कृत्रिम रेटिना की मदद से एएमडी के कारगर इलाज का रास्ता खुल सकता है।रेटिना का केंद्रीय भाग मैक्यूला आंख से दिमाग तक पहुंचने वाली ज्यादातर सूचनाओं पर काम करता है। देखना, पढ़ना और चेहरे पहचानने जैसी विभिन्न गतिविधियां इसी से संभव हो पाती हैं। बढ़ती उम्र के साथ मैक्यूलर में खराबी से एएमडी की समस्या होती है।