रांची, झारखंड में 81 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव के वोटों की गिनती के बाद अब नतीजे आना शुरू हो गए है। जेएमएम के नेतृत्व में राज्य में सरकार का गठन होने जा रहा है, इस तरह राज्य में सत्ताधारी दल के फिर से सत्ता में वापस नहीं लौट पाने का रेकार्ड कायम रहेगा । वोटों की गिनती शुरू होने के बाद सभी सीटों पर रुझान सामने आए हैं, जिनमें से झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन 45 सीटों पर आगे है, जबकि भाजपा को 26 सीट पर बढ़त मिली है। आजसू 3 तो तीन सीट पर झारखंड विकास मोर्च आगे है। 81 सीटों पर कुल 1215 उम्मीदवार चुनावी समर में उतरे थे। बता दें कि सीएम के तौर पर 5 साल का कार्यकाल पूरा करने वाले भी रघुबर दास पहले मुख्यमंत्री हैं। जो जमशेदपुर पूर्व सीट पर पांच हजार मतों से भाजपा के विद्रोही उम्मीदवार सरयू राय पीछे चल रहे है। मुख्यमंत्री रघुबर दास ने शुरुआत में सरयू राय के मुकाबले बढ़त बना रखी थी, लेकिन सातवें राउन्ड के बाद अब स्थिति पलट गई। नौवें राउन्ड में रघुवर दास पांच हजार मतों से अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी सरयू राय से पिछड़ गए हैं। झारखंड के पूर्व मंत्री सरयू राय पहले मुख्यमंत्री रघुवर दास के मंत्रिमंडल के अहम हिस्सा थे, लेकिन विधानसभा चुनाव के लिए जब उनका टिकट काटा गया तो उन्होंने पार्टी से विद्रोह करते हुए निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में दास के खिलाफ पर्चा भर दिया। राय 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में जमशेदपुर (पूर्व) सीट से जीत कर विधायक बने थे।
बहुमत का आंकड़ा 42
सूबे में बहुमत का आंकड़ा 42 सीटों का है, ऐसे में एक-एक सीट काफी अहम हो गई है। 2014 में आजसू के साथ गठबंधन करने वाली बीजेपी इस बार अकेले ही मैदान में उतरी थी। दूसरी तरफ झारखंड मुक्ति मोर्चा, आरजेडी और कांग्रेस ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था। इसके अलावा बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा भी अहम प्लेयर है।
इस बार अकेले ही चुनाव में उतरी थी भाजपा
2014 में आजसू, जेडीयू और एलजेपी के साथ मिलकर चुनाव लडऩे वाली भाजपा इस बार अकेले ही चुनाव में उतरी थी। ऐसे में यह चुनाव उसके लिए अग्निपरीक्षा साबित हो सकता है।
पिछले चुनाव में पार्टियों का प्रदर्शन
2014 के पिछले झारखंड विधानसभा चुनाव में कुल 81 सीटों में से बीजेपी ने 37 पर जीत ( 31.3 प्रतिशत वोटशेयर) हासिल की थी। आजसू ने 3.7 प्रतिशत वोटशेयर के साथ 5 सीटें जीती थीं। झारखंड मुक्ति मोर्चा का वोटशेयर 20.4 प्रतिशत था और पार्टी की झोली में 19 सीटें आई थीं। बाबू लाल मरांडी के झारखंड विकास मोर्चा ने करीब 10 प्रतिशत वोटशेयर के साथ 8 सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि, बाद में उसके 6 विधायक भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस 10.5 प्रतिशत वोटशेयर के साथ 7 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। 6 सीटें अन्य के खाते में गई थीं। भाजपा के सामने सत्ता को बरकरार रखने की चुनौती है। हालांकि, भाजपा के लिए यह आसान नहीं है। वैसे तो लोकसभा चुनाव में बीजेपी-आजसू गठबंधन ने सूबे की 14 में से 13 सीटों पर परचम लहराया था लेकिन झारखंड में अलग-अलग चुनाव का वोटिंग पैटर्न अलग-अलग है। भाजपा के लिहाज से बात करें तो झारखंड में पार्टी अबतक कभी भी लोकसभा चुनाव में मिले वोटों को विधानसभा चुनाव तक पूरी तरह सहेज कर नहीं रख पाई है। 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 33 प्रतिशत वोट मिले थे लेकिन उसके बाद 2005 के विधानसभा चुनाव में उसका वोट शेयर गिरकर 23.57 प्रतिशत हो गया। इसी तरह 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 27.53 प्रतिशत वोट मिले थे तो उसी साल विधानसभा चुनाव में महज 20 प्रतिशत वोट मिले। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को झारखंड में 40 प्रतिशत वोट मिले थे लेकिन विधानसभा चुनाव में उसका वोट करीब 9 प्रतिशत घट गया।
महागठबंधन को उम्मीद
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने झारखंड में 51 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को विधानसभा चुनाव में न दोहरा पाने की बीजेपी की कमजोरी महागठबंधन के लिए उम्मीद की तरह है। महागठबंधन की पूरे दमखम और उत्साह के साथ चुनाव लड़ा। हेमंत सोरेन के साथ उनके पिता शिबू सोरेन ने भी चुनाव प्रचार का मोर्चा संभाला। चुनाव प्रचार के दौरान सोरेन लगातार बीजेपी सरकार पर हमलावर रहे और उसे आदिवासी विरोधी ठहराते रहे। आदिवासी समुदाय में कभी बेहद मजबूत पकड़ रखने वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा को इस बार इस समुदाय से काफी उम्मीदें हैं। सूबे की कुल आबादी में करीब 26 से 27 प्रतिशत आदिवासी हैं। कुल 81 में से 28 सीटें उनके लिए आरक्षित हैं। मुख्यमंत्री रघुबर दास गैर-आदिवासी हैं और जेएमएम चुनाव में इसको अपने पक्ष में भुनाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ा है।