जल्लाद न होने से मप्र में 40 बलात्कारियों की फांसी की सजा पर अमल अटका

भोपाल, मध्य प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां पर इतने कम समय में रेपिस्ट को फांसी की सजा सुनाई गई है। दतिया और कटनी में 3-5 दिन में रेपिस्ट को सजा सुनाई जा चुकी है। कटनी के केस में फांसी और दतिया में उम्रकैद की सजा हुई। प्रदेश में 2 साल पहले बनाए गए कानून के तहत 40 दोषियों को नाबालिग बच्चियों से दरिंदगी के मामलों में फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। लेकिन जल्लाद नहीं होने से इन्हें फांसी नहीं हो पा रही है। जानकारी के अनुसार जबलपुर केंद्रीय जेल में आखिरी बार फांसी दी गई थी। ये फांसी 1995 में बालकृष्ण बालकर ने रेप और हत्या के आरोपी उमाशंकर पांडे को दी थी। जल्लाद बालाकृष्ण बालकर की मौत 1997 में हो गई थी। प्रदेश में सिर्फ इंदौर केंद्रीय जेल में ही फांसी देने की व्यवस्था है। जेल मुख्यालय के अधिकारियों का कहना है कि फांसी की सजा मिलने के बाद आरोपियों के पास कई स्तर पर अपील करने का मौका रहता है। यदि आरोपी अपील करने में सक्षम नहीं भी रहता है, तो विधि प्रकोष्ठ उसकी सहायता करते हुए अपील करता है। इस कानूनी प्रक्रिया में सालों लग जाते हैं।
गंभीर प्रकृति के मामलों के दोषी इंदौर में
भोपाल और इंदौर की जेलों में फांसी की सजा पाए दोषी बंद हैं। इनमें सबसे ज्यादा फांसी की सजा पाए आरोपी इंदौर की जेलों में बंद हैं। बैतूल जेल से फांसी की सजा वाले आरोपी विजय धुर्वे को भी भोपाल सेंट्रल जेल में रखा गया है। इंदौर जिला और केंद्रीय जेल में फांसी की सजा वाले 12 से ज्यादा कैदी बंद हैं। 2005 में भोपाल के रोशनपुरा इलाके में 6 साल की बच्ची से रेप के बाद हत्या करने वाले आरोपी दिलीप को 19 मई 2017 को फांसी की सजा मिली थी। 2013 में भोपाल के 45 बंगले के पास 6 साल की बच्ची से रेप के बाद गला रेत कर हत्या करने वाले आरोपी नंदकिशोर को फांसी की सजा सुनाई गई थी।
बालकर थे मप्र में इकलौते जल्लाद
प्रदेश में एक मात्र जल्लाद बालकृष्ण बालकर थे, लेकिन जबलपुर जेल में रेप और हत्या के आरोपी को 1995 में फांसी के फंदे पर लटकाने के बाद उनकी मौत 1997 में हो गई। बताया जा रहा है कि यदि प्रदेश में फांसी देने की स्थिति बनती है, तो दूसरे राज्यों से जल्लाद को बुलाया जा सकता है। लेकिन कानूनी प्रक्रिया में लंबा समय बीत जाने की वजह से अभी तक किसी भी अपराधी को फांसी की सजा के बाद फंदे पर लटकाने की नौबत नहीं आई है। इनमें कई कैदी ऐसे हैं, जिनकी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से अपील खारिज हो गई है। अभी भी राष्ट्रपति के पास दया याचिकाएं लंबित हैं।

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