महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश का मामला अब सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच को भेजा

नई दिल्ली,केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में सभी आयु श्रेणी की स्त्रियों के प्रवेश देने को लेकर चल रहे मामले में शीर्ष कोर्ट ने अपने फैसले पर पुनर्विचार के मामले को 5 जजों की बेंच ने गुरुवार को बड़ी बेंच को भेज दिया है। अब सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की बेंच इस मामले पर अंतिम फैसला देगी। 2 जजों की असहमति के बाद मामले को बड़ी बेंच को भेजने का फैसला लिया गया। आपको बता दें कि इस मामले को महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के तौर पर देखा जा रहा है। पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को लिंग आधारित भेदभाव माना था।
28 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हिंसक विरोध के बाद 56 पुनर्विचार याचिकाओं सहित कुल 65 याचिकाओं पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह फैसला लिया है। संविधान पीठ ने इन याचिकाओं पर इस साल 6 फरवरी को सुनवाई पूरी की थी और कहा था कि इन पर फैसला बाद में सुनाया जाएगा। इन याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली संविधान पीठ के सदस्यों में जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इन्दु मल्होत्रा शामिल हैं। फैसले से पहले ही केरल में हाई अलर्ट है। केरल पुलिस ने सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए हैं। पूजा फेस्टिवल के लिए सबरीमाला के आसपास 10 हजार जवानों की तैनाती की गई है। 307 महिला पुलिस भी सुरक्षा संभाल रही हैं। सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने संबंधी व्यवस्था को असंवैधानिक और लैंगिक तौर पर पक्षपातपूर्ण करार देते हुए 28 सितंबर, 2018 को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से फैसला सुनाया था। इस पीठ की एकमात्र महिला सदस्य जस्टिस इन्दु मल्होत्रा ने अल्पमत का फैसला सुनाया था।
केरल में इस फैसले को लेकर बड़े पैमाने पर हिंसक विरोध हुए। इसको लेकर दायर याचिकाओं पर संविधान पीठ ने खुली अदालत में सुनवाई की। याचिका दायर करनेवालों में नायर सर्विस सोसायटी, मंदिर के तंत्री, त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड और राज्य सरकार भी शामिल थी। सबरीमाला मंदिर की व्यवस्था देखने वाले त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड ने अपने रुख से पलटते हुए मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने की कोर्ट की व्यवस्था का समर्थन किया था। बोर्ड ने केरल सरकार के साथ मिलकर संविधान पीठ के इस फैसले पर पुनर्विचार का विरोध किया था। बोर्ड ने बाद में सफाई दी थी कि उसके दृष्टिकोण में बदलाव किसी राजनीतिक दबाव की वजह से नहीं आया है। कुछ दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि बोर्ड ने केरल में सत्तारूढ़ वाममोर्चा सरकार के दबाव में न्यायालय में अपना रुख बदला है। इस मसले पर केरल सरकार ने भी पुनर्विचार याचिकाओं को अस्वीकार करने का अनुरोध किया है। केरल सरकार ने महिलाओं के प्रवेश के मामले में विरोधाभासी रुख अपनाया था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *