भोपाल ननि की आर्थिक हालात खस्ता, पिछले तीन महीने से वेतन में हो रही देरी

भोपाल,राजधानी के नगर निगम के आर्थिक हालात बदतर हो चुके हैं। हालात यहां तक पहुंच चुके है कि अधिकारी-कर्मचारियों के वेतन के भी लाले पडने लगे हैं। बीते तीन महीने से वेतन में देरी हो रही है। वहीं, ठेकेदारों का बकाया भुगतान नहीं किए जाने से सभी तरह के प्रोजेक्ट बंद हो गए हैं। वित्तीय दिक्कतों के चलते न तो विकास कार्य हो पा रहे हैं और न ही समय पर निगम कर्मचारियों का वेतन हो पा रहा है। खराब वित्तीय हालात के लिए एक तो आय से अधिक निगम की फिजूलखर्ची करना वजह है। वहीं दूसरी वजह प्रदेश सरकार से मिलने वाला विभिन्न मदों में अनुदान में कटौती है। जिसके कारण निगम की हालत खराब हुई है। बताया जा रहा है कि अप्रैल से हर महीने मिलने वाले चुंगी क्षतिपूर्ति मद में 10 फीसदी बढ़ोत्तरी किया जाना था। लेकिन बढ़ाने के बजाए 7 करोड़ रुपए की कटौती कर दी गई। इस तरह सात महीने में 49 करोड़ की कटौती हो गई। इसी तरह स्टांप ड्यूटी के 126 करोड़ रुपए नगर निगम को नहीं मिले। बता दें कि बीते तीन दिनों से ठेकेदारों को दीपावली से पहले भुगतान करने के लिए निगम स्तर से लेकर मंत्रालय तक मथापच्ची चल रही है। बुधवार को भी बड़ी संख्या में ठेकेदार नगर निगम में अफसरों से जवाब मांगते रहे। लेकिन शासन से फंड नहीं आया। गत मंगलवार को नगरीय विकास मंत्री जयवर्धन सिंह ने आश्वासन दिया था कि भुगतान कर दिया जाएगा। फंड आने के इंतजार में निगम अफसरों ने 648 ठेकेदारों की सूची तैयार की है, जिनमें करीब दो-दो लाख रुपए का भुगतान करने की तैयारी है। अमृत योजना में शहर में पानी, सीवेज, स्टार्म वाटर से संबंधित एक हजार करोड़ रुपए के काम चल रहे हैं। इसमें निगम की हिस्सेदारी 17 फीसदी का अंशदान मिलाता है।
नगर निगम ने 175 करोड़ की व्यवस्था के लिए म्युनिसिपल बॉन्ड जारी किया है। इसके लिए हर महीने साढ़े तीन करोड़ रुपए भरना पड़ रहा है। इसी तरह हाउसिंग फार ऑल के तहत आवास बनाए जा रहे हैं। 51 हजार आवासों की डीपीआर स्वीकृत है, इसमें से करीब आठ हजार आवासों का काम चल रहा है। ईडब्ल्यूएस के लिए करीब 3.16 लाख रुपए की व्यवस्था निगम को करना है। इस तरह निगम को सवा दो सौ करोड़ की जरूरत है। इसके अलावा विभिन्न योजनाओं के लिए हुडको और एडीबी से लिए गए कर्ज की किश्त जा रही है। उधर नगर निगम द्वारा फिजूलखर्ची पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। निगम के पास 1200 से अधिक वाहन हैं, लेकिन इनका एवरेज तय नहीं किया गया। डीजल चोरी रोकने जीपीएस लगाए गए थे, लेकिन सुनियोजित तरीके से बंद कर दिए गए। जिससे डीजल चोरी पर रोक नहीं लग पाई। निगम के वाहनों में रोजाना एक टैंकर से अधिक डीजल की खपत हो रही है। एक टैंकर डीजल की कीमत 12 लाख रुपए है।स्वास्थ्य में 25 दिवसीय कर्मचारियों की संख्या 8 हजार से अधिक है, लेकिन फील्ड में काम कम ही करते हैं। लेकिन इनका वेतन करोड़ों में भुगतान किया जाता है।अपर आयुक्त के चार स्वीकृत पद हैं लेकिन इसके उलट निगम में छह अपर आयुक्त हैं। एक अफसर के मोबाइल खर्च, डीजल, गाड़ियों की सुविधा, वेतन आदि पर दो लाख खर्च होते हैं। जनप्रतिनिधियों के आयोजनों के भूमिपूजन, पंडालों आदि पर निगम ही खर्च उठाता है। इस बारे में एमआईसी मेंबर कृष्णमोहन सोनी का कहना है कि प्रदेश सरकार से निगम को मिलने वाला 198 करोड़ रुपए नहीं मिला है। जिसके कारण आर्थिक स्थिति खराब हुई है। चुंगी क्षतिपूर्ति निगम का हक है, इसमें कटौती की गई है। स्टांप ड्यूटी की रकम भी पेंडिंग है। बड़े प्रोजेक्ट में निगम को अंशदान मिलाना पड़ रहा है। सीएम इंफ्रा की बैंक गारंटी भी समय पर नहीं दी गई है।

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