नई दिल्ली,मधुमेह, शुगर या फिर डायबिटीज के प्रति जागरूकता को लेकर 14 नवंबर को “वर्ल्ड डायबिटीज डे” मनाया जा रहा है। इसको लेकर चिकित्सा विशेषज्ञों ने कहा कि अगर मां बनने वाली महिला डायबिटीज से पीड़ित है और अगर उसकी डायबिटीज कंट्रोल में नहीं है तो मां और गर्भस्थ शिशु दोनों के लिए कई समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। इसके कारण गर्भपात हो सकता है। इस पर विशेषज्ञों ने कहा कि ऐसी स्थिति में अगर जन्म लेने वाले बच्चे का आकार सामान्य से बड़ा है तो उसके लिये सी-सेक्शन आवश्यक हो जाता है। इसके अलावा बच्चे के जन्मजात विकृतियों की आशंका बढ़ जाती है। वहीं, मां और बच्चे दोनों के लिए संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है। इस पर विशेषज्ञों का मानना हैं कि “अपने देश में यह बीमारी खानपान, जेनेटिक और हमारे इंटरनल आर्गन्स में फैट की वजह से होती है। गर्भवती महिलाओं को ग्लूकोज पिलाने के दो घंटे बाद ओजीटीटी किया जाता है, ताकि जेस्टेशनल डायबिटीज का पता चल सके।” जो गर्भावस्था के 24 से 28 हफ्तों के बीच होती है। बताया जाता है कि दो हफ्ते बाद पुन: शुगर की जांच की जाती है। जिसमें 10 फीसदी अन्य महिलाओं में जेस्टेशनल डायबिटीज ठीक नहीं हुई थी। हालांकि इन महिलाओं को इंसुलिन देकर बीमारी कंट्रोल कर ली जाती है। ऐसा कर मां के साथ ही उनके शिशु को भी इस बीमारी के खतरे से बचाया जा सकता है” उन्होंने आगे बताया कि “डायबिटीज के टाइप वन में इंसुलिन का स्तर कम हो जाता है और टाइप टू में इंसुलिन रेजिस्टेंस हो जाता है और दोनों में ही इंसुलिन का इंजेक्शन लेना जरूरी होता है। जिससे शरीर में ग्लूकोज का स्तर सामान्य बना रहता है। गर्भधारण के लिए इंसुलिन के एक न्यूनतम स्तर की आवश्यकता होती है और टाइप वन डायबिटीज की स्थिति में इंसुलिन का उत्पादन करने वाली कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। इस स्थिति में गर्भधारण से मां और बच्चे दोनों के लिए खतरा हो सकता है। दोनों की सेहत पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है।”