नई दिल्ली, डायबीटीज की वजह से शरीर के कई अंग प्रभावित होते हैं जिसमें आंखें भी शामिल हैं। डायबीटीज के कारण रेटिना को रक्त पहुंचाने वाली महीन नलिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं जिससे रेटिना पर वस्तुओं का चित्र सही से या बिल्कुल भी नहीं बन पाता है। इसी समस्या को डायबीटिक रेटिनोपैथी कहते हैं। अगर सही समय से इसका इलाज न किया जाए तो रोगी अंधेपन का शिकार हो सकता है। इसका खतरा 20 से 70 वर्ष के लोगों को ज्यादा होता है। शुरू-शुरू में इस बीमारी का पता नहीं चलता। जब आंखें इस बीमारी से 40 फीसदी तक ग्रस्त हो जाती हैं उसके बाद इसका प्रभाव दिखने लगता है। डायबीटीज की वजह से शरीर का इंसुलिन प्रभावित हो जाता है। यही इंसुलिन ग्लूकोज को शरीर में पहुंचाता है। जब इंसुलिन नहीं बन पाता या कम बनता है तो ग्लूकोज कोशिकाओं में नहीं जा पाता और खून में घुलता रहता है। इसी कारण खून में शुगर का लेवल बढ़ता जाता है। यही खून शरीर के सभी हिस्सों तक पहुंचता है। डायबीटीज जितने लंबे समय तक रहता है, डायबीटिक रेटिनोपैथी की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाती है। लेजर तकनीक से इलाज के बाद अंधेपन को 60 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। हाई शुगर के साथ रक्त जब लगातार फ्लो करता है तो इससे रक्त नलिकाएं क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। आंखों की रक्त नलिकाएं शरीर में सबसे ज्यादा नाजुक होती हैं इसलिए ये सबसे पहले प्रभावित होती हैं। रक्त नलिकाओं के फटने से रिसने वाला रक्त कई बार रेटिना के आसपास इकट्ठा होता रहता है, जिससे आंखों में ब्लाइंड स्पॉट भी बन सकता है।