नई दिल्ली,अयोध्या मामले में सुनवाई के ग्यारहवें दिन प्रधान न्यायाधीश ने निर्मोही अखाड़े की ओर से दलील रख रहे सुशील जैन को हिदायत दी कि अब वो लिमिटेशन के बजाए केस की मेरिट पर बात करें। सुशील जैन ने कोर्ट से कहा कि वो विवादित ज़मीन पर मालिकाना हक़ नहीं कर रहे, सिर्फ पूजा-प्रबन्धन और कब्जे का अधिकार मांग रहे है। उन्होंने कहा कि अयोध्या बहुत बड़ा है, पर प्रभु राम की तस्वीर सिर्फ रामजन्म भुमि में स्थापित की गई थी।
सुशील जैन ने कहा कि मेरे सेवादार के अधिकार को छीन कर मुझसे कब्जा लिया गया। सुशील जैन ने ये भी कहा कि रामलला की ओर से जो निकट सहयोगी देवकी नंदन अग्रवाल बनाये गए हैं, मैं उन्हें नहीं मानता। वो तो पुजारी भी नहीं हैं।
इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि जब आप किसी देवता के सेवादार/पुजारी के नाते अपना अधिकार मांगते हैं तो आप फिर उस देवता ( रामलला विराजमान) की ओर से दायर अर्जी का विरोध कैसे कर सकते हैं। मान लीजिए कि देवता( रामलला) की याचिका खारिज हो गई तो फिर तो अपने आप ही सेवादार होने का आपका दावा भी खारिज हो जाएगा।
सुशील जैन ने कहा, मैं रामलला और रामजन्मस्थान की याचिका के खिलाफ नहीं हूँ। मेरी दलील है कि देवकीनंदन अग्रवाल निकट मित्र की हैसियत नहीं रखते। सुशील जैन ने ये भी दावा किया सिर्फ निर्मोही अखाड़े का नाम गैजेटियर और ऐतिहासिक दस्तावेजो में अंकित है। सिर्फ मैं ही हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व कर सकता हूँ। जस्टिस बोबडे के पूछने पर सुशील जैन ने अदालत में वो बयान भी पढ़े जिनसे साबित हो कि निर्मोही अखाड़े के मंदिर के प्रबंधन पर कब्जा रहा है।
अपने पक्ष को मजबूती से रखते हुए सुशील जैन ने कहा मेरे पक्ष में स्थानीय लोग शामिल हैं। रामलला विराजमान की ओर से दावा पेश करने वाले सब बाहरी लोग हैं। हालाँकि रामलला विराजमान और मेरे बीच ज़्यादा अंतर नहीं है। वो भी एक तरह से मेरा समर्थन कर रहे है। एक अंतर ये है उनका पक्ष है कि बाबर ने यहां निर्माण किया, मैं ये कह रहा हूँ कि वहाँ हमेशा रहा मंदिर रहा है। वो 1949 में देवता स्थापित की बात कहते हैं, मैं ऐसा नहीं मानता।