सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक है नागपंचमी

( आज 5 अगस्त : नाग पंचमी पर विशेष) भोपाल, हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार नाग देवता सारी धरती का भार अपने माथे पर संभाले हुए हैं। इसीलिए श्र्रावण शुक्ल पंचमी को नाग देवता की पूजा की जाती है। दूध, जल, फूल, चावल, नारियल आदि पूजन की सकल सामग्री के साथ नाग की पूजा कर दूध पिलाने का चलन हैं। कुछ लोग दीवार में नाग देवता का चित्र बनाकर पूजा करते हैं। शाम को बगीचे या पेड़ के नीचे घी और दूध रखकर क्षमा प्रार्थना की जाती हैं- हे प्रभु जहाँ हो वहीं रहियो, हमारी रक्षाकरियो, न आँखों दिखियो, न कानों सुनाइयो।
श्रावणमास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भारत में नागपंचमी के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन नाग पूजा करके नाग को दूध पिलाना चाहिए। इससे ‘नाग देवता’ हमारी रक्षा करते हैं तथा सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। कुछ हिन्दू परिवारों में नाग की छवि दीवार या कागज पर अंकित कर उसकी पूजा की जाती है। शाम को घर के बाहर आंगन में घी-दूध के दिये रखे जाते हैं।
इस संबंध में अनेक दंत कथायें प्रचलित हैं। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन सब्जी-फल आदि को काटना नहीं चाहिए ख्ल-बट्टे में कूटना नहीं चाहिए आदि। इस प्रकार की अनेक धारणाएं आज भी हमारे समाज में मानी जाती है। कोई तवा-कढ़ई चढ़ाने से परहेज करते हैं। तो कोई सुई-धागे के प्रयोग से। यदि एक प्रकार से देखा जाये तो ये बातें हमारी आस्था और भावनात्मक जुड़ाव तक ही सीमित होती है। कुछ लोग नाग देवता को अपने कुल का रक्षक मानते हैं। उनके अनुसार नाग उनके कुलदेवता है। इस कारण वे उनकी पूजा करते है।
वास्तविकता यह है कि बरसात के कारण सर्पों के बिल में पानी भर जाता है और वे आश्रय ढूढ़ने बगीचे और घरों की और चल पड़ते हैं। अत: अगस्त माह में प्राय: सर्प घुमते दिखाई पड़ जाते है। सर्पों के प्रति श्रद्धा और अपनी रक्षा के बारे में सोचकर ही लोगों ने उन्हें पूजना आरम्भ कर दिया।
सर्पों का राजा को बरा जाति के साँप का माना जाता है। इसका विवरण अनेक पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। नागराज वासुकी, शेषनाग, कालिया, शंखपाल, पिंगल तथा तक्षक आदि नाम हमें शास्त्रों के मध्य मिलते हैं।
भगवान नारायण की शयनसैया तो शेषनाग ही है। हम सभी जानते हैं कि क्षीरसागर में विष्णु जी उसी पर विश्राम करते हैं। इसी प्रकार श्रीकृष्ण के कालियादहन की कथा से भी सभी श्रद्धालु परिचित है कि किस प्रकार यमुना नदी के किनारे खेलते हुए जब कृष्ण की गेंद यमुना नदी में गिरकर कालिया नाग के घर में जा पहुंची और किस प्रकार से उन्होंने कालिया को अपने वश में किया। इसी प्रकार भगवान बुद्ध तथा जैन मुनी श्री पार्श्वनाथ के रक्षक श्री नाग देवता माने जाते हैं तथा पार्श्वनाथ जी की मूर्ति के साथ सर्प-पूजा के दृश्य भी गुफाओं में खोदे गये हैं।
यह एक पौराणिक आस्था है कि नागदेवता भगवान शिव को भी अति प्रिय हैं। शिव के गले में सदा ही सर्प लहराता हुआ दर्शाया जाता है। सभी शिव-भव्त सर्प की पूजा में विश्वास करते है। क्योंकि सर्प उनका विशेष आभूषण दूध से किया जाता है उसी प्रकार नागपूजा में भी दूध चढ़ाने का विशेष महत्व होता है। सर्प पूजा का विधान इस कारण भी माना जाता है कि सर्प विषैले होते हैं। उनकी पूजा करके लोग उनके प्रकोप से बचना चाहते हैं। सर्प की पूजा से व्यक्ति उनमें आस्था प्रकट करता है तथा उनसे एक वास्तविक दूरी बनाए रखता है।
‘सर्प-पूजा’ भारत देश में विशेषकर दक्षिण भारत, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में ‘‘नागपंचमी’’ के त्यौहार के रूप में मनाई जाती है। दक्षिण भारत के केरल, आंध्रप्रदेश, चैन्नई में नागराज मंदिर हैं। जहां इनकी नित्य पूजा की जाती है। ‘नागपंचमी पर्व’ पर यहां विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। मध्यप्रदेश में उज्जैन में नाग देवता का मंदिर है साल में केवल नागपंचमी के दिन पूजा होती है। इसी प्रकार जयपुर के हरदेव्जा मंदिर में भी नाग देवता की पूजा होती है। पश्चिम बंगाल के असम और उड़ीसा में भी नाग मंदिर बनाए गए हैं और नियमित पूजे जाते हैं।
महाराष्ट्र में नागपंचमी के दिन महिलाएं प्रात: स्नान करके ‘नववारी’ साड़ी पहनकर तैयार होती है। इस दिन सबेरे नाग को पिटारी में लेकर आते हैं। स्त्रियां नागदेवता कि दूध, चावल, फूल आदि चढ़ाकर पूजा करती हैं। वे हल्दी-कुमकुम लगाकर नागदेवता को ‘मीठा दूध’ पीने को देती है और प्रार्थना करती है कि उनके घर में सुख-समृद्धि रहे तथा उनकी रक्षा करना। कुछ घरों की वृद्ध माताएं पांच सर्पों की आकृति बनाकर उसकी पूजा करती हैं। पंजाब में ‘नागपंचमी’ का त्यौहार गुगानवमां कहलाता है। इस दिन यहां आटे को सानकर एक बड़े नाग का स्वरूप दिया जाता है। इसे बनाने के लिए मोहल्ले के सभी लोग एक स्थान पर आटा और घी या मक्खन इकट्ठा करते हैं। इसके बाद ‘नाग’ बनाते हैं और नाच-गाकर धूमधाम से इसकी पूजा करते हैं। दूसरे दिन उसे जमीन में गड्ढा करके गाड़ देते हैं। यह परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। कुछ स्थानों पर इस दिन नागदेवी ‘मन्सा’ की पूजा की जाती है। खासतौर पर बंगाल के स्थानों में नागदेवी की पूजा होती है। ‘नागपंचमी हमारे धार्मिक पर्वों में से एक है यह सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
( जया शर्मा द्वारा )

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