नई दिल्ली, भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज और उमा भारती को सरकारी बंगला खाली करना पड़ सकता है। चूंकि अब वे संसद के किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं, ऐसे में इन नेताओं के सामने आवास की समस्या आ खड़ी हुई है। चुनाव हार चुके या चुनाव नहीं लडऩे वाले सांसदों को एक माह के भीतर सरकारी घर खाली करना था। यह समय सीमा आज रविवार को खत्म हो रही है। अधिकतर निवर्तमान सांसदों ने बिजली बिल और किराया जैसे बकाये चुकाकर पहले ही घर खाली कर दिया है। कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया बंगला खाली कर पांच सितारा होटल में शिफ्ट हो गए हैं। वहीं नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भतीजे और तृणमूल कांग्रेस नेता प्रोफेसर सुगतो बोस भी सांसद नहीं रहने पर सरकारी घर छोड़ चुके हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आडवाणी, जोशी जैसे नेताओं को भी अब सरकारी बंगला छोडऩा पड़ेगा? सांसदों को मकान का आवंटन लोकसभा और राज्यसभा की आवास समितियां करती हैं। लेकिन अभी तक लोकसभा की समिति नहीं बनी है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने शुक्रवार को जल्द समिति गठन करने का आश्वासन दिया। जब तक समिति नवनिर्वाचित सांसदों को आवास आवंटित नहीं करतीं तब तक वे अपने अपने राज्यों के दिल्ली स्थित सरकारी भवनों में रुकेंगे।
अमित शाह को लेना है निर्णय
मंत्रियों को बंगला केंद्र सरकार के पूल से मिलता है और उसका फैसला केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली आवास मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीए) करती है। उमा भारती और सुषमा स्वराज ने लोकसभा सचिवालय से पूर्व सांसद का परिचयपत्र भी ले लिया है तो अब उन पर बंगले छोडऩे का दबाव बढ़ सकता है। यही हाल कलराज मिश्र, शांता कुमार और मेजर बीसी खंडूरी जैसे कुछ और नेताओं का है।
यह हो सकता है रास्ता
यदि किसी नेता की सुरक्षा को खतरा है तो प्रियंका गांधी की तरह उन्हें किसी सदन का सदस्य न होते हुए भी सरकारी बंगला आवंटित किया जा सकता है। जहां आडवाणी को एनएसजी के सुरक्षा गार्डों वाली जेट प्लस सुरक्षा मिली है, जोशी को आईटीबीपी के जवानों की सुरक्षा मिली है। संभवत: सुरक्षा कारणों की वजह से ही बसपा प्रमुख मायावती को भी अभी बंगला खाली करने के निर्देश नहीं हुए हैं, जबकि वे राज्यसभा से सवा साल पहले ही इस्तीफा दे चुकी हैं।