नई दिल्ली, वस्तु सेवा कर (जीएसटी) में ई-बिलिंग को लेकर कारोबारियों में असमंजस की स्थिति बनी है। अगली जीएसटी काउंसिल की बैठक में बड़े कारोबारियों के लिए रियल टाइम बेसिस पर इलेक्ट्रॉनिक बिलिंग अनिवार्य होने की संभावना से थोक व्यापारियों में बेचैनी है। हालांकि इसकी शुरुआत 50-100 करोड़ या इससे भी ज्यादा टर्नओवर वालों से हो सकती है, लेकिन उनकी सप्लाई चेन के छोटे या मझोले सप्लायर्स के लिए भी यह काफी मायने रखेगी। दिल्ली में वैट रिजीम के आखिरी दिनों में ई-बिलिंग की पहल की गई थी जो कई पेचीदगियों के चलते कामयाब नहीं हुई थी। हालांकि, जीएसटी में पहले से अधिकांश तकनीकी ढांचा तैयार होने से अधिकारी अब इसे बड़ी चुनौती नहीं मानते।
दिल्ली जीएसटी विभाग में आगामी तकनीकी सुधारों पर स्टेकहोल्डर्स के साथ हालिया चर्चा में अधिकांश व्यापारियों ने मांग की कि ई-इनवॉइसिंग की अनिवार्यता की सीमा टर्नओवर के बजाय ट्रांजैक्शन वैल्यू के आधार पर तय हो। अगर प्रस्तावित 50 करोड़ टर्नओवर सीमा लागू होती है तो अधिकांश थोक व्यापारी इसके दायरे में आएंगे, जो छोटे ट्रेडर्स के साथ भी खरीद-बिक्री करते हैं और अपने सप्लायर्स या बायर्स की ओर से रियल टाइम ई-बिलिंग नहीं होने, माल नहीं बिकने पर लौटाने या बिल कैंसल होने की सूरत में उन्हें इनपुट क्रेडिट लेने सहित कई दिक्कतें हो सकती हैं। जीएसटी काउंसिल की सब-कमेटी में शामिल एक अधिकारी ने बताया, ‘ट्रांजैक्शन वैल्यू पर इसे अनिवार्य करने का प्रयोग हम देख चुके हैं और ट्रेडर इसकी काट निकाल लेते हैं। अगर 5000 रुपये से अधिक के ट्रांजैक्शन पर इसे अनिवार्य कर दें तो वे एक ही ट्रांजैक्शन पर 2500-2500 रुपये के दो बिल बनाने लगेंगे। टर्नओवर आधारित सीमा ही कारगर है, हालांकि यह कितनी होगी इस बारे में अभी कुछ भी तय नहीं है।’
अधिकारियों का कहना है कि ई-बिलिंग के दायरे में आने वाले बड़े कारोबारियों के छोटे बायर्स या सेलर्स को इससे फायदा ही होगा, क्योंकि वे रियल टाइम बेसिस पर अपना इनपुट टैक्स क्रेडिट ऑनलाइन देख सकेंगे। ऐसे में इंटरमीडियरीज को परेशानी की आशंका बेबुनियाद है। प्रस्तावित योजना के तहत यह व्यवस्था ई-वे बिल की जगह ले लेगी, लेकिन ट्रेडर्स सवाल उठा रहे हैं कि अगर ई-इनवॉइसिंग करने वालों को ई-वे बिल से छूट मिल जाती है तो उनके सेलर या बायर ई-बिल कैसे भर पाएंगे और अगर सभी पर लागू होने तक ई-बे बिल कायम रहता है तो बड़े व्यापारियों पर ई-वे बिल और ई-इनवॉइसिंग का दोहरा बोझ पड़ेगा। अधिकारियों का कहना है कि ई-इनवॉइसिंग में कई समस्याओं का पहले से हल तलाश लिया गया है, जिसकी आशंका ट्रेड-इंडस्ट्री की ओर से जताई जा रही है। इसमें बिल कैंसिलेशन भी शामिल है। चूंकि ई-इनवॉइसिंग डीलर के रिटर्न में भी ऑटोपॉपुलेट होगी, ऐसे में यह रिटर्न फाइलिंग का काम भी आसार कर देगी।