देवास, देवास जिले के ग्राम शुक्रवाशा में एक वट वृक्ष है। यह 5 एकड़ क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इसकी 500 भुजाएं हैं । मुख्य वटवृक्ष के स्थान पर अब उसकी शाखाओं से जो पेड़ बने हैं। वह यहां पर फैले हुए हैं। पुराना पेड़ जिस स्थान पर था । वहां पर एक चबूतरा बना दिया गया है। किवदंती है कि इस वटवृक्ष के नीचे दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने तपस्या की थी। इसी के कारण इस गांव का नाम शुक्रवासा पड़ा।
किसी वटवृक्ष का परिवार इतना बड़ा हो सकता है। हजारों सालों से वह एक ही स्थान पर निरंतर अपना फैलाव करता रहे । इसके उदाहरण बहुत कम मिलते हैं। देवास जिले का यह वटवृक्ष दुनिया का ऐसा वटवृक्ष है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी निरंतर विकास करता हुआ अपने अस्तित्व को बनाए हुए हैं। इसको जो भी दिखता है। अचंभित हो जाता है। यहां पहुंचते ही मन में एक असीम श्रद्धा का भाव उत्पन्न होता है।