नई दिल्ली,सत्रहवीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव अब तक के सबसे महंगे चुनाव साबित हुए हैं। इन चुनावों में प्रत्याशियों और चुनाव आयोग, दोनों की ओर से कुल मिलाकर करीब 70,000 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि 17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनावों में प्रत्याशियों की ओर से करीब 60,000 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। चुनाव आयोग ने भी इस राशि के 15-20 प्रतिशत के बराबर राशि खर्च की है। ऐसे में कुल 70,000 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। इस तरह प्रति लोकसभा क्षेत्र औसतन 100 करोड़ रुपए से भी अधिक राशि खर्च हुई है। यह रिपोर्ट एक कार्यक्रम में जारी की गई। इस अवसर पर सीएमएस के अध्यक्ष एन. भास्कर राव ने कहा कि खर्च का यह स्तर हमारे डर का कारण होना चाहिए। हमें चुनाव सुधारों के कदम उठाते हुए और मजबूत लोकतंत्र की दिशा में काम करना चाहिए। इस अवसर पर पैनल डिस्कशन भी हुआ, जिसमें पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी भी उपस्थित रहे।
हर लोकसभा क्षेत्र में 100 करोड़ रुपए खर्च
सेंटर फॉर मीडिया स्टटडी (सीएमएस) की स्टडी के मुताबिक इस चुनाव के दौरान एक वोट पर औसतन 700 रुपए खर्च किए गए। अगर लोकसभा क्षेत्र के लिहाज से बात करें तो इस चुनाव में हर लोकसभा क्षेत्र में 100 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। सीएमएस की रिसर्च में पता चला है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में 30 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे जो इस बार बढ़कर दोगुना हो गया। इस तरह से भारत का 2019 का लोकसभा चुनाव अबतक का सबसे महंगा चुनाव हो गया है। सीएमस का दावा है कि यह अब तक दुनिया का सबसे महंगा चुनाव है।
12 से 15 हजार करोड़ मतदाताओं पर खर्च
इस रिपोर्ट को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर दिल्ली में जारी किया गया। इस दौरान देश के पूर्व चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी भी मौजूद रहे. रिपोर्ट के मुताबिक 12 से 15 हजार करोड़ रुपए मतदाताओं पर खर्च किए गए, 20 से 25 हजार करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च हुए, 5 हजार से 6 हजार करोड़ रुपए लॉजिस्टिक पर खर्च हुए। 10 से 12 हजार करोड़ रुपये औपचारिक खर्च था, जबकि 3 से 6 हजार करोड़ रुपए अन्य मदों पर खर्च हुए। इस रकम को जोडऩे पर 55 से 60 हजार का आंकड़ा आता है। यहां यह बताना जरूरी है कि चुनाव आयोग से मान्यता प्राप्त खर्च की वैध सीमा मात्र 10 से 12 हजार करोड़ रुपए थी।
6 से 7 गुना की बढ़ोतरी
सीएमएस ने इस रिपोर्ट को चुनाव खर्च 2019 के चुनाव नाम से जारी किया है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 1998 से लेकर 2019 के बीच लगभग 20 साल की अवधि में चुनाव खर्च में 6 से 7 गुना की बढ़ोतरी हुई। 1998 में चुनाव खर्च करीब 9 हजार करोड़ रुपये था जो अब बढ़कर 55 से 60 हजार करोड़ रुपये हो गया है।