गैस पीडितों की 35 साल बाद फिर से जांच, पांच हजार लोगों पर ढाई साल होगा अध्ययन

भोपाल, गैस त्रासदी के 35 साल बाद एक बार फिर गैस पीडितों के स्वास्थ्य की जांच की जाएगी ताकि यह पता लगाया जा सके कि उन्हें गैस के कारण कौन-कौन सी बीमारी हुई है। करीब पांच हजार मरीजों की स्वास्थ्य जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला जाएगा। करीब ढाई साल तक यह अध्ययन चलेगा। अभी तक गैस पीड़ितों व गैस पीड़ित संगठनों की तरफ से यह दावा किया जाता रहा है कि गैस की वजह से पीड़ितों के फेफड़े, किडनी, तंत्रिका-तंत्र समेत कई अंगों से जुड़ी बीमारियां हो रही हैं। इसका असर दूसरी और तीसरी पीढ़ी पर भी आ रहा है। इसी आधार पर मुआवजे की मांग की जा रही है। गैस पीड़ितों के दावों को पुख्ता करने के लिए यह स्टडी की जा रही है। पीड़तों की स्वास्थ्य जांच का काम शुरू हो गया है। कमला नेहरू गैस राहत अस्पताल व बीएमएचआरसी में उनकी हार्ट, किडनी, लिवर समेत सभी अंगों की सामान्य जांचें की जी रही हैं। उनकी सोनोग्राफी और एक्सरे भी किया जा रहा है। सभी की जांच रिपोर्ट आने के बाद विशेषज्ञों का पैनल यह पता करेगा की कौन सी बीमारी सामान्य है और कौन सी गैस की वजह से हो सकती है। गैस पीड़ितों में होने वाली सभी बीमारियां गैर गैस पीड़ितों में भी हैं। लिहाजा, डॉक्टरों की टीम यह निष्कर्ष निकालेगी कि बीमारी की असली वजह गैस है या फिर सामान्य बीमारियां हैं। हमीदिया अस्पताल परिसर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरणीय स्वास्थ्य संस्थान (नीरे) द्वारा यह रिसर्च की जा रही है।
नीरे के डायरेक्टर डॉ. अनिल प्रकाश ने कहा कि इस पर करीब 50 लाख रुपए खर्च आएगा। यह राशि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की तरफ से दी जा रही है। 25 हजार गैस पीड़ितों में से बिना प्राथमिकता के 5 हजार नमूने लिए गए हैं। इसमें सिर्फ गैस पीड़ितों को लिया गया है उनकी पीढ़ी के लोगों को नहीं लिया गया। घर से अस्पताल लाकर उनकी किडनी, लिवर, हार्ट, फेफड़े, आंख व गायनी संबंधी जांच कराई जा रही है। इसके लिए ब्लड व खून के सैंपल, सोनोग्राफी व एक्सरे कराया जा रहा है। जिस तरह की बीमारियां ज्यादा हो रही हैं, उनसे जुड़ी सुविधाएं गैस राहत अस्पतालों में बढ़ाई जाएंगी।गैस पीड़ितों के लिए मुआवजा व अन्य तरह की सुविधाएं देने का एक आधार तैयार होगा।इसके आधार पर दूसरी रिसर्च आसान हो जाएगी।रिसर्च के आधार पर सरकारी नीतियां बनाई जा सकेंगी।
जांच के लिए जिन पांच हजार मरीजों का चयन किया गया है। उनमें ज्यादातर जांच के लिए अस्पताल आने को तैयार नहीं हैं। पहले तो फोन पर ही आने से मना कर देते हैं। किसी तरह समझाकर लाया जाता है तो अस्पताल से भाग जाते हैं। लगभग 60 फीसदी का यही कहना होता है कि उन्हें कोई तकलीफ नहीं है फिर क्यों जांच कराएं। जांच में उनका जो समय बेकार हो रहा है, उसकी भरपाई कौन करेगा।

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