जबलपुर, मेरे पिता जीवित हैं और उनका आयुर्वेदिक पद्धति से उपचार चल रहा है। यह बात एडीजीपी आर के मिश्रा ने अपनी माँ के साथ दायर याचिका में कही। ज्ञात हो कि पिता की मौत के संबंध में प्रकाशित खबर पर संज्ञान लेते हुए मानव अधिकार आयोग द्वारा नोटिस जारी किया गया। यही नहीं जांच के लिए डॉक्टर की टीम गठित किये जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी। याचिका में कहा गया था कि मानव अधिकार आयोग ने ऐसा कर मौलिक अधिकार तथा निजता के अधिकार का उल्लंघन किया है। याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के जस्टिस अतुल श्रीधरन ने आदेश सुरक्षित रखने के निर्देश जारी किये हैं।
भोपाल 74 बंगला निवासी शशिमणि मिश्रा तथा उनके पुत्र एडीजीपी आर. के. मिश्रा की तरफ से उक्त याचिका दायर की गयी थी। याचिका में कहा गया था कि उनके पिता के. एम. मिश्रा का उपचार घर पर आयुर्वेदिक पद्धति से चल रहा है। एक अखबार में उनके पिता की मौत होने के बाद लाश घर पर रखने संबंधित खबर प्रकाशित की गयी थी। जिस पर मानव अधिकार आयोग ने संज्ञान लेते हुए, उन्हें नोटिस जारी किया था। जिसका जवाब उन्होंने मानव अधिकार आयोग को भेज दिया था।
इसलिए वे जिन्दा हैं
इसके बाद मानव अधिकार आयोग ने तीन आयुर्वेदिक डॉक्टर तथा तीन एलोपैथिक डॉक्टर की टीम गठित कर पुलिस अधीक्षक से उच्च स्तरीय अधिकारी के साथ जाकर परीक्षण के राज्य सरकार को पत्र लिखा था। याचिका में यह भी कहा गया था कि डॉक्टर ने उनके पति को जनवरी में क्लीनिकल मृत करार दिया था। चार माह का समय गुजर जाने के बावजूद भी उनका शरीर डिकंपोज नहीं हुआ, जिसका मतलब है कि वे जिन्दा है।
एक्ट 1983 का हवाला दिया
याचिका में कहा गया था कि मानव अधिकार आयोग को शिकायत तथा संज्ञान पर किस तरह से कार्यवाही करनी है, इसका उल्लेख एक्ट 1983 में है। व्यक्तिगत मामले में आयोग को हस्तक्षेप करना मौलिक व निजता के अधिकार का उल्लंधन है। आयोग की तरफ से कहा गया कि जिस तरह व्यक्ति को जीवन का अधिकार प्राप्त है, उसी तरह मृत व्यक्ति को अंतिम संस्कार का अधिकार प्राप्त है। याचिका की सुनवाई के बाद एकलपीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रखने के आदेश जारी किये। याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ अधिवक्ता अंकित मिश्रा ने पैरवी की।