भोपाल में पिछले दो महीने में 27 मरीजों की स्वाइन फ्लू से मौत

भोपाल,चालू साल जनवरी-फरवरी में भोपाल में 120 मरीज स्वाइन फ्लू की चपेट में आए। इनमें 27 की मौत हो गई। बी कैटेगरी (कम गंभीर) होने पर ही इन्हें स्वाइन फ्लू रोकने की दवा टेमीफ्लू दी जाती तो हो सकता है उनकी हालत गंभीर नहीं होती। इंटीग्रेटेड डिसीज सर्विलांस प्रोग्राम (आईडीएसपी) भोपाल के आंकड़ बताते हैं बी कैटेगरी में मरीजों टेमी फ्लू नहीं दी जा रही है। 2015 में प्रदेश में स्वाइन फ्लू के 706 केस मिले थे। इस दौरान स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव प्रवीर कृष्ण ने साफ कहा था कि बी श्रेणी में ही मरीजों को टेमीफ्लू की दवा दी जाए। इसके बाद भी इसका पालन नहीं हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि जांच रिपोर्ट निगेटिव आने पर दवा देने से कोई नुकसान नहीं है। आगे भी दवा का शरीर में वैसा ही असर होता है। इसके बाद दवा देने में कोताही की जा रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक अन्य तरह के फ्लू में भी यह दवा बहुत कारगर है और इसका उपयोग किया जा सकता है। बता दें कि इस अवधि में फ्लू जैसे लक्षण वाले तीन मरीजों की मौत हुई थी, पर उन्हें स्वाइन फ्लू नहीं निकला था। स्वाइन फ्लू पर नियंत्रण के लिए डॉक्टर मरीजों की इसकी दवा देने में कोताही कर रहे हैं। मरीजों की हालत गंभीर हाने की यह भी वजह हो सकती है। दिल्ली में 17 मार्च तक 3464 मरीज स्वाइन फ्लू से संक्रमित मिले थे। इनमें सिर्फ 7 मरीजों की मौत हुई थी। तमिलनाडु में 304 मरीजों में 2 में दो की मौत हुई। इसकी वजह यह कि इन राज्यों ने मरीजों की बी कैटेगरी में स्वाइन फ्लू की जांच करा ली। साथ ही टेमीफ्लू भी ऐहतियातन दी गई। मप्र में 434 मरीजों में 90 की जान जा चुकी है।
इस बीमारी के लक्षणों में सर्दी-जुकाम, गले में दर्द, तेज बुखार, खांसी व कफ निकलना व सांस लेने में तकलीफ होना है। पांच साल से कम उम्र के बच्चे, बुजुर्ग, किडनी व हार्ट के पुराने मरीज, कैंसर के मरीज जिनकी कीमोथैरेपी चल रही है। गर्भवती महिलाएं, डायबिटीज के मरीज, जिसके घर में किसी को स्वाइन फ्लू हुआ हो, अस्थमा व खून के कमी वाले मरीज भी इस बीमारी के चपेट में आ जाते हैं। इस बारे में हमीदिया छाती एवं श्वांस रोग विभागाध्यक्ष डॉ. लोकेन्द्र दवे का कहना है कि स्वाइन फ्लू के ए श्रेणी के 85 फीसदी मरीज होते हैं। उन्हें सर्दी-जुकाम जैसे ही लक्षण दिखते हैं। इन्हें बुखार उतारने की दवा, आराम व पर्याप्त पानी पीने की जरूरत होती है। करीब 14 फीसदी मरीज बी कैटेगरी के होते हैं। इन्हे टेमीफ्लू दी जाए तो हालत गंभीर होने से बच सकती है। इसके लिए जांच रिपोर्ट का इंतजार भी नहीं करना चाहिए। मरीज भी दवा लेने को तैयार नहीं होते, जबकि रिपोर्ट निगेटिव होने पर भी दवा देने से कोई नुकसान नहीं है। पॉलीमर चेन रिएक्शन पीसीआर टेस्ट में जांच रिपोर्ट की सत्यता करीब 65 फीसदी ही रहती है, इसलिए रिपोर्ट पर निर्भर होने की जगह मरीज के लक्षण देखकर इलाज करना ज्यादा जरूरी है। वही आईडीएसपी के संयुक्त संचालक डॉ. अजय बरोनिया का कहना है कि बी कैटेगरी के मरीजों को टेमीफ्लू देने के लिए कहा गया है। खासतौर पर हाई रिस्क मरीजों को। अब डॉक्टर दवा नहीं दे रहें तो इसमें हम क्या कर सकते हैं। दवाओं की कोई कमी नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *