भोपाल, बाघों की मौत के मामले में मध्य प्रदेश पिछले दो साल से देश में अव्वल रहा है। बाघों की मौत के मामले में मध्य प्रदेश के बाद महाराष्ट्र का नंबर आता है। प्रदेश में जहां दो माह में सात बाघों की मौत हुई है, तो महाराष्ट्र में तीन बाघ मरे हैं। जबकि देश में सबसे ज्यादा 406 बाघ रखने वाले कर्नाटक में पिछले दो माह में सिर्फ एक बाघ की मौत हुई है। इस मामले में महाराष्ट्र पिछले सालों में भी दूसरे ही नंबर पर रहा है। प्रदेश में बाघों की मौत का सिलसिला बदस्तूर जारी है। नए साल के शुरुआती दो माह (जनवरी-फरवरी) में सात बाघ-बाघिन की मौत हो चुकी है। इनमें शावक भी शामिल हैं। यह आंकड़ा अब तक देशभर से आ रहे आंकड़े से कहीं ज्यादा है। पिछले साल भी इस अवधि में चार बाघों की मौत हुई थी। बाघों की मौत के मामले में इस साल देश का सर्वश्रेष्ठ कान्हा टाइगर रिजर्व आगे है। पार्क में जनवरी माह में ही दो बाघिनों की मौत हुई है। दोनों बाघिनों की मौत को लेकर पार्क के अफसरों का तर्क था कि वर्चस्व की लड़ाई के चलते बाघों ने बाघिनों को मार डाला। दरअसल, पांच जनवरी को पार्क के किसली परिक्षेत्र की खटिया बीट में चार वर्षीय बाघिन का क्षत-विक्षत शव मिला था। पार्क के अफसरों का दावा था कि बाघिन की मौत वर्चस्व की लड़ाई में हुई है और उसे मारकर बाघ ने खा लिया। यह अप्रत्याशित घटना थी। इस घटना के 14 दिन बाद 19 जनवरी को पार्क की कान्हा रेंज में ठीक इसी तरह की दूसरी घटना घटी। दूसरी घटना में भी बाघ ने दो वर्षीय बाघिन को मारकर खा लिया। पार्क के मैदानी अमले को बाघिन के सिर्फ पैर, सिर और हड्डियां मिली थीं। जानकारों के मुताबिक आमतौर पर ऐसी घटनाएं कम ही सामने आती हैं। जिनमें बाघ ने बाघिन को मारा हो। जबकि इन घटनाओं में बाघों ने सिर्फ मारा ही नहीं, उन्हें खा भी लिया। जनवरी में ही बालाघाट के जंगल में एक शावक की मौत हुई। जबकि फरवरी में पांच बाघ-बाघिन की मौत हो चुकी है। इनमें भी दो शावक शामिल हैं। इनमें से दो बाघों की मौत संरक्षित क्षेत्र (सतपुड़ा और पेंच टाइगर रिजर्व) में हुई है। जबकि उमरिया में दो शावक और डिंडोरी में एक बाघ मरा है। वन विभाग के अफसर सभी मौतों को स्वभाविक बता रहे हैं।