जमात-ए-इस्लामी के बड़े नेता हिरासत में, साढ़े चार सौ करोड़ की संपत्ति की छानबीन

श्रीनगर, कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी अटैक के बाद बिगड़े हालातों के चलते भारत ने पाकिस्तान पर नकेल कसने के साथ ही कट्टरपंथी और अलगाववादी संगठनों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। जमात-ए-इस्लामी के खिलाफ केंद्र सरकार ने बड़ी कार्रवाई करते हुए गुरुवार को इस संगठन पर प्रकिबंध लगा दिया था। शुक्रवार के बाद शनिवार को भी जमात के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्रवाई चल रही है और उसके कई नेताओं को हिरासत में ले लिया गया है। उनके खिलाफ यूएपीए (अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेन्शन एक्ट) के तहत कार्रवाई की जा रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक अकेले श्रीनगर में संगठन के 70 बैंक खातों को सील कर दिया गया है। श्रीनगर के बाद किश्तवाड़ में भी जमात-ए-इस्लामी के बड़े नेताओं को गिरफ्तार किया गया है। छापेमारी में 52 करोड़ रुपये जब्त किए गए हैं। ज्ञात हो कि गुरुवार को गृह मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी करते हुए जमात-ए-इस्लामी पर पांच साल का प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया था। मंत्रालय ने अपनी अधिसूचना में यह कहा था कि जमात-ए-इस्लामी ऐसी गतिविधियों में शामिल रहा है जो कि आंतरिक सुरक्षा और लोक व्यवस्था के लिए खतरा हैं। ऐसे में केंद्र सरकार इसे एक विधि विरुद्ध संगठन घोषित करती है।
कार्रवाई के दौरान अब्दुल हामिद फयाज, जाहिद अली, मुदस्सिर अहमद और गुलाम कादिर जैसे जमात-ए-इस्लामी के बड़े नेताओं को गिरफ्तार किया गया है। इसके अलावा दक्षिण कश्मीर के त्राल, बडगाम और अनंतनाग से जमात के कई नेताओं की गिरफ्तारी हुई है। सरकार ने शुक्रवार को इंस्पेक्टर जनरल और जिला मैजिस्ट्रेटों को जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेने की इजाजत दे दी थी। 350 से ज्यादा सदस्यों को शुक्रवार को गिरफ्तार किया गया था। ज्ञात हो कि संगठन घाटी में 400 स्कूल, 350 मस्जिदें और 1000 सेमिनरी चलाता है। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि संगठन के पास 4,500 करोड़ की संपत्ति होने की संभावना है जिसकी जांच के बाद यह पता चलेगा कि यह वैध है या अवैध।
केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में जमात-ए-इस्लामी के अलगाववाद और देश विरोधी गतिविधियों में भी शामिल होने की बात कही गई है। इसके अलावा इसको नफरत फैलाने के इरादे से काम करने वाला एक संगठन भी बताया गया है, जिसके बाद मंत्रालय ने सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के लिहाज से संगठन को प्रतिबंधित करने के आदेश दिए हैं। जमात-ए-इस्लामी कश्मीर घाटी में अलगावादियों और कट्टरपंथियों के प्रचार-प्रसार के लिए जिम्मेदार मुख्य संगठन है और वह हिज्बुल मुजाहिदीन को रंगरूटों की भर्ती, उसके लिए धन की व्यवस्था, आश्रय और साजो-सामान के संबंध में सभी प्रकार का सहयोग देता आ रहा है। अधिकारियों के मुताबिक खास तौर पर दक्षिण कश्मीर क्षेत्र में जमात-ए-इस्लामी जम्मू-कश्मीर (जेईएल (जेएंडके) के बड़ी संख्या में कार्यकर्ता हैं और हिज्बुल मुजाहिदीन पाकिस्तान के सहयोग से प्रशिक्षण देने के साथ ही हथियारों की आपूर्ति कर रहा है। जमात-ए-इस्लामी पर कश्मीर घाटी में आतंकवादी गतिविधियों की सक्रिय अगुआई करने का आरोप है।
हिज्बुल मुजाहिदीन प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन जम्मू-कश्मीर के पाकिस्तान में विलय का समर्थन करता है। माना जाता है कि फिलहाल पाकिस्तान में छिपा सलाहुद्दीन पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों के गठबंधन यूनाइटेड जेहाद परिषद का अध्यक्ष भी है। जेईएल(जेएंडके), जमात -ए-इस्लामी हिंद के अंग के तौर पर 1945 में बना था और वह अपने मूल संगठन के साथ राजनीतिक विचारधारा में मतभेद को लेकर 1953 में उससे अलग हो गया। इस संगठन पर उसकी गतिविधियों को लेकर अतीत में दो बार प्रतिबंध लगाया गया। पहली बार 1975 में जम्मू-कश्मीर सरकार ने दो साल के लिए और दूसरी बार अप्रैल 1990 में केंद्र सरकार ने तीन साल के लिए प्रतिबंध लगाया था। दूसरी बार प्रतिबंध लगने के समय मुफ्ती मोहम्मद सईद केंद्रीय गृह मंत्री थे। जेईएल (जेएंडके) के कार्यकर्ताओं का एक बड़ा तबका आतंकवादी संगठनों खासकर हिज्बुल मुजाहिदीन के लिए प्रत्यक्ष रूप से काम करता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *