बालाघाट,मध्यप्रदेश में इन दिनों हो रहे तेजी से तबादले और पोस्टिंग को लेकर राजनीतिक सरगर्मी जारी है जिससे बालाघाट भी अछूता नहीं रह गया है। ट्रांसफर, पोस्टिंग का असर देखना है तो मंत्री, विधायकों के घरों और दफ्तरों में रोज लगने वाले मेला जैसा नजारे से असर का आंकलन किया जा सकता है। दो माह के अंदर होने जा रहे लोकसभा चुनाव में ट्रांसफर, पोस्टिंग का कितना असर पड़ेगा, किसको लाभ होगा और किसको इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा इस बात की चर्चा अब आम हो चली है। प्रदेश में सरकार बदलने के साथ ही जिले की सियासत ने भी करवट ली है। जिस तरह से अधिकारियों के थोक तबादले हुए हैं और उसके बाद विभिन्न विभागों में कर्मचारियों के तबादले को लेकर जो परिस्थिति निर्मित हुई है उसका कहीं न कहीं लोकसभा चुनाव में असर पड़ेगा। भाजपा शासनकाल में भी तबादले और पोस्टिंग होते थे परंतु उसकी शोर सुनाई नहीं देती थी। कांग्रेस शासन आने के बाद इन दिनों जिले में तबादलों का शोर ही सर्वाधिक सुनाई दे रहा है। इसकी बानगी जिले में कांग्रेस के विधायकों, मंत्री और विधानसभा उपाध्यक्ष के घर और दफ्तरों में देखी जा सकती है।
फायदा या नुकसान
तबादलों का नये स्वरूप में लोकसभा चुनाव के ऐन वक्त पर सामने आना क्या कांग्रेस को इसका फायदा मिलेगा या इससे उसे नुकसान होगा इस बात की भी चर्चा राजनीतिक गलियारों में चल रही है। कांग्रेस का सबसे प्रभावशाली मुद्दा किसानों का कर्ज माफ और युवाओं को 100 दिन का रोजगार जैसे प्रमुख दो मुद्दों को कांग्रेसी जनता के बीच ले जाने में पूरी तरह नाकाम हुए। इसकी सबसे बड़ी वजह सारा ध्यान तबादले और पोस्टिंग में आकर टिक गया है और इसका असर कहीं न कहीं लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस की तैयारियों पर भी पड़ा है।
कांग्रेसी लोकसभा चुनाव को लेकर कितने गंभीर है उसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि गत दिनों मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने जिले के चुनिंदा कांग्रेसियों को लोकसभा चुनाव को लेकर भोपाल आमंत्रित किया था इस बैठक में लोकसभा प्रत्याशी और चुनाव जीतने की रणनीति पर चर्चा कम तबादलों और पोस्टिंग पर ज्यादा थी। जनप्रतिनिधि और पार्टी के पदाधिकारी तबादलों और पोस्टिंग के आवेदन मुख्यमंत्री को देने में उतावले दिखे जिस पर मुख्यमंत्री को कहना पड़ा कि जिले की तमाम तबादले संबंधी आवेदन विधानसभा उपाध्यक्ष को आप लोग सौंप दे उनकी सिफारिश पर तबादले हो सकेंगे। इसके बावजूद दूसरे दिन एक विधायक के साथ पुन: कुछ कांग्रेसी तबादलों का आवेदन लेकर मुख्यमंत्री के पास पहुंच गए। यह सच है कि पूर्व की सरकार के कार्यकाल के दौरान तबादले पोस्टिंग का हल्ला कभी इतना नहीं हुआ जितना अभी हो रहा है। कर्मचारियो, अधिकारियों की भी आस जगी है उन्हें भी लगता है कि उनके गृह जिले या गृह ग्राम में उनकी पोस्टिंग या तबादले हो जाएंगे। क्या लोकसभा चुनाव के पूर्व बड़े स्तर पर तबादले और पोस्टिंग संभव है और यदि उनके कार्य नहीं हुए तो कांग्रेस को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है।
कुछ जवाबदार कांग्रेसियों ने आफ द रिकार्ड बताया कि तबादले और पोस्टिंग का कार्य लोकसभा चुनाव के बाद किया जाना था। 15 साल के अंतराल के बाद सत्ता में आए कांग्रेसी यह समझ नहीं पा रहे हैं कि सत्ता का लाभ कितने जल्दी उठाया जा सके। इसी आपाधापी में लोकसभा चुनाव की तैयारियों में कांग्रेस पूरी तरह से पिछड़ गई है।