प्रयागराज, कुंभ में अपने शरीर पर भस्म लपेट कर दिखाई देने वाले नागा साधु इस महापर्व का सबसे बड़ा आकर्षण होते हैं। नागा साधु कुंभ के दौरान ही नजर आते हैं। अब सवाल यह है कि यह नागा कुंभ के बाद और पहले कहां निवास करते हैं। बहुत से लोग इस बारे में नहीं जानते हैं। लोगों के मन में यह जिज्ञासा रहती है कि ये नागा साधु केवल कुंभ के समय ही नजर आते हैं। बाकी समय ये कहां अपना जीवन व्यतीत करते हैं हालांकि अब कुछ नागा साधु अपने अखाड़ों के प्रशिक्षण केंद्रों में भी अपना समय देते हैं।
साधना में रहते हैं लीन
यह तो उत्सुकता का प्रश्न है कि कुंभ में ही नागा बड़ी संख्या में क्यों दिखते हैं और इसके बाद वे कहां चले जाते हैं। कुंभ के बाद कुछ नागा अपनी साधना के लिए कंदराओं में चले जाते हैं जबकि कुछ अपने अखाड़ों में। जबकि उनके जैसे युवा नागा समाज में दिगंबर (बिना वस्त्र) रूप छोड़कर एक वस्त्र में लोगों को धर्म और आध्यात्म से जोड़ने में लग जाते हैं। हालांकि साधना के दौरान धूनी के सामने वह दिगंबर रूप में ही रहते हैं। कुछ नागा हमेशा दिगंबर रूप में रहते हैं जबकि कुछ एक वस्त्र धारण करते हैं।
निवास स्थान के हिसाब से मिलती उपाधि
पर्वतों में रहने वाले नागाओं को गिरि, नगरों में भ्रमण करने वालों को पुरी, जंगलों में विचरण करने वालों को अरण्य, अधिक शिक्षित को सरस्वती और भारती का उपनाम दिया जाता है। इसी तरह नागाओं में कुटीचक, बहूदक, हंस और सबसे बड़ा परमहंस का पद होता है। नागाओं में शस्त्रधारी नागा अखाड़ों के रूप में संगठित हैं।
कौन बन सकता है नागा
नागा बनने के लिए वैसे तो कोई शैक्षिक या उम्र की बाध्यता नहीं है। नए नागाओं की दीक्षा प्रयाग, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन के कुंभ में होती है। प्रयाग में दीक्षा पाने वाले नागा को राजराजेश्वर, उज्जैन में दीक्षा पाने वाले को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा पाने वाले को बर्फानी नागा और नासिक में दीक्षा पाने वाले को खिचड़िया नागा कहा जाता है। नागा दीक्षा हमेशा जोड़े में दी जाती है। यानि दो व्यक्तियों को एक साथ दीक्षा एक ही गुरू देते हैं और उनकी उपाधियां अलग-अलग दी जाती हैं।
अखाड़े में सबसे बड़ा पद
किसी भी अखाड़े में सबसे बड़ा पद आचार्य महामंडलेश्वर का होता है लेकिन आचार्य महामंडलेश्वर नागा नहीं होते। आचार्य महामंडलेश्वर ही नागा संन्यासियों को दीक्षा देते हैं। इसके बाद महामंडलेश्वर का पद आता है। लेकिन यह अलंकृत पद है। यानि अखाड़े में होते हुए भी यह पद अखाड़े से बाहर होता है और महामंडलेश्वर किसी भी संत को बनाया जा सकता है। आचार्य महामंडलेश्वर के नीचे श्रीमहंत, कोतवाल और थानापति अखाड़े की व्यवस्था देखते हैं।
नागाओं में होते थे खूनी संघर्ष भी
देश में शैव मत के सात अखाड़े हैं जबकि तीन वैष्णव अखाड़े हैं। शैव और वैष्णव अखाड़ों में लंबे समय तक मतभेद रहे और खूनी संघर्ष भी हुए लेकिन नई पीढ़ी के आने के बाद मतभेद कम हुए हैं।
अखाड़ों में एक दूसरा बदलाव नशे से दूर रहने का भी आ रहा है। नागा संन्यासियों को धूनी के करीब बैठकर चिलम से कश लेते देखना आम बात है लेकिन नई पीढ़ी इससे दूरी बना रही है।