नई दिल्ली,मशहूर कारोबारी विजयपत सिंघानिया ने 3 साल पहले रेमंड ग्रुप का स्वामित्व अपने बेटे गौतम सिंघानिया के हाथों सौंप दिया। तब विजयपत ने सोचा था कि अरबों के टेक्सटाइल बिजनस परिवार के अधीन रह जाएगा। लेकिन, अब वह अपने फैसले बहुत पछता रहे हैं। उनका आरोप है कि उन्होंने जिस बेटे को इतना बड़ा कारोबारी साम्राज्य सौंप दिया, उसी ने उन्हें न केवल कंपनी के दफ्तरों से बल्कि अपने फ्लैट से भी निकाल दिया। लेकिन, विजयपत को एक कोर्ट के हालिया आदेश से न्याय की उम्मीद जगाने के बाद वह अपने बेटे को गिफ्ट की गई प्रॉपर्टी वापस लेने की लड़ाई लड़ना चाहते हैं। दरअसल,देश के कारोबारी घरानों में सत्ता-संघर्ष के इसतरह के विकृत रूप लेने की कई अन्य घटनाएं सामने आ चुकी हैं। पिता धीरूभाई अंबानी के निधन के बाद मुकेश अंबानी रिलांयस ग्रुप की कंपनियों पर नियंत्रण के लिए अपने छोटे भाई अनिल अंबानी से लंबे वक्त तक लड़ते रहे है। अब वह एशिया के सबसे धनी शख्सियत हैं। इसी तरह,शराब और रियल एस्टेट सेक्टर की बड़ी हस्तियों पॉन्टी चड्ढा और उनके भाई हरदीप की लड़ाई पर भी विराम लग सकता था। 2012 में दोनों भाइयों ने कंपनी पर नियंत्रण को लेकर हुए झगड़े में एक-दूसरे की जान गोली मारकर ले ली थी।
अभी एक ताजा मामला, फोर्टिस वाले सिंह ब्रदर्स का भी है। अरबपति भाइयों शिविंदर सिंह और मालविंदर सिंह ने हाल ही में एक-दूसरे पर मारपीट का आरोप लगाया था। एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत दुनियाभर की बड़ी-बड़ी कंपनियों पर कुछ परिवारों के नियंत्रण के लिहाज से चीन और अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर आता है। इसकारण विश्लेषकों का मानना है कि सत्ता-संघर्ष और कंपनियों पर नियंत्रण की नई पीढ़ी बढ़ती चाहत के बीच ऐसी कंपनियों के बेहतर संचालन के लिए भारत में ग्लोबल कॉर्पोरेट स्टैंडर्ड्स को ज्यादा तवज्जो देने की जरूरत भी बढ़ गई है। इससे सिंघानिया,अंबानी, सिंह जैसे कारोबारी घरानों में सत्ता संघर्ष को इसतरह के भयावह दौर में पहुंचने से रोका जा सकता है।