पटना,उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) ने भले ही लंबा राजनीतिक सफर तय नहीं किया हो, लेकिन कुशवाहा का राजनीतिक सफर काफी लंबा रहा है। उपेंद्र कुशवाहा बिहार विधानसभा में विधायक, नेता प्रतिपक्ष, राज्यसभा सांसद और लोकसभा सांसद के रूप में लंबा सफर तय कर चुके हैं। हालांकि, उनके राजनीतिक जीवन में काफी उतार-चढ़ाव भी आए हैं।
नीतीश कुमार ने कभी उन्हें बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया था, लेकिन बाद में जेडीयू से उनकी तल्खी इतनी बढ़ गई कि कुशवाहा को आरएलएसपी का गठन करना पड़ा। 55 वर्षीय उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी राजनीतिक जीवन की शुरुआत सन 1985 से की थी। 1988 में उन्हें युवा लोकदल का राज्य महासचिव बनाया गया था। जिसके बाद 1993 में वह राष्ट्रीय महासचिव बने थे। वहीं, 1994 में वह समता पार्टी से महासचिव बनाए गए। जिसके बाद से उन्हें राजनीति में काफी महत्व मिलने लगा था। वह 2002 तक इस पद पर रहे थे।
कुशवाहा ने लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के साथ लंबे समय तक काम किया है। वह लालू यादव के सामाजिक राजनीति के बड़े प्रशंसक और सहयोगी रहे थे। कुशवाहा कांग्रेस के हमेशा से विरोधी रहे हैं। जब लालू यादव की नजदीकियां कांग्रेस से बढ़ने लगीं, तो उन्होंने लालू यादव से दूरी बना ली। उपेंद्र कुशवाहा साल 2000 में पहली बार बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए थे। वह 2005 तक विधानसभा सदस्य रहे। कुशवाहा को जेडीयू नेता नीतीश कुमार के करीबी सहयोगियों में से एक माना जाता था। इसलिए ऐसा माना जाता है कि साल 2004 में उन्हें जब नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था तो नीतीश कुमार ने उन्हें समर्थन दिया था। हालांकि बाद में दोनों के संबंधों में खटास आ गई थी।
सन 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में आरएलएसपी एनडीए का हिस्सा बनी और 3 सीटों सीतामढ़ी, काराकाट और जहानाबाद पर चुनाव लड़ा और पार्टी ने तीनों ही सीटें जीत ली। लोकसभा चुनाव में आरएलएसपी को मिली जीत के बाद पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो गए। केंद्र सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया। जेडीयू की एनडीए में वापसी के बाद उपेंद्र कुशवाहा का राजनीतिक जीवन एक बार फिर अस्थिर हो गया।
कुशवाहा के कभी नीतीश से थे अच्छे संबंध, तल्ख हुए रिश्ते तो बनाई अपनी पार्टी
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