नई दिल्ली, इस रोग की पहचान वर्ष 1947 में ज़ीका वनक्षेत्र यूगांडा में हुई थी। 1952 में पहली बार यह रोग मनुष्य को हुआ और यह रोग उष्णकटिबंधीय अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और प्रशांत द्वीप में पाया गया। 2007 के पहले ज़ीका से संक्रमित 14 रोगी मिले थे। इस रोग के लक्षण अन्य रोगों से मिलते जुलते होने से अधिक नहीं मिल पाए। यह रोग मुख्यतः मच्छर के काटने से होता हैं। गर्भवती महिला के द्वारा गर्भस्थ शिशु को प्रभावित करता हैं, यौन सम्बन्ध बनाने से होता हैं और रक्तदान से भी होता हैं। इस रोग के लक्षण सामान्यतः ज्वर, चकत्ते, सर दर्द, संधि शूल, लालआँखेँ होना मांसपेशियों में दर्द का होना। ये लक्षण कुछ दिनों से सात दिनों में समाप्त हो जाते है। इस कारण अधिकांश रोगी इलाज कराने डॉक्टर के पास नहीं जाते। और कभी कभी रोग के उपद्रव के कारण मौत तक हो जाती हैं एक बार संक्रमित होने पर बचाव कठिन होता हैं क्योकि इसके लक्षण चिकिनगुनिया और डेंगू जैसे होते हैं
रक्त परिक्षण समय पर कराना लाभदायक होता हैं। गर्भवती महिला को होने से गर्भस्थ शिशु का शिर छोटा हो जाता हैं और अन्य मष्तिष्क जन्य बीमारियां होने लगती हैं गर्भपात होना और अन्य जन्मजात रोगो से पीड़ित हो जाता हैं। कभी कभी गुइलिन बार्रे सिंड्रोम जो स्नायुतंत्र पर आशिक प्रभाव डालता हैं।
मच्छर से काटने से बचने के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करे। शरीर खुला न रखे पूरी बाँहों, फुल पेण्ट और मौजों का उपयोग करे। इसके अलावा पेर्मेथ्रिन नमक रसायन से युक्त पोषक पहने। रेपेलेंट जैसे डी इ इ टी, पिकार्डिन, आई आर 3535, यूकेलिप्ट्सु का तेल, या परमेन्थेन डिओल लाभकारी होते हैं। इन रसायनों का उपयोग गर्भवती स्त्री और स्तनपान करने वाली स्त्रियों को लाभकारी तो होते हैं पर सावधानी बहुत जरुरी हैं। दो माह से लेकर तीन साल के बच्चो को उपयोग न करे कारण उनके द्वारा मुँह में रसायन जाने से गंभीर खतरा हो सकता हैं। मच्छरों से बचाव हेतु जालीदार दरवाजे का होना, सोते समय मच्छरदानी का उपयोग जरुरी, यौन सम्बन्ध न बनाये या सुरक्षा का उपयोग करे। जैसे ही लक्षण मिले वैसे ही मरीज़ की यात्रा की जानकारी, और जाँच जरूर कराये खून और पेशाब की जाँच कराये। इसके लक्षण अन्य रोगों से मिलते जुलते होने के कारण संदिग्ध स्थिति बन जाती हैं।
रोगी को पूर्ण आराम करने दे। अधिक पानी पिए जिससे पानी की कमी शरीर में न हो पाए। टेबलेट अस्टमीनोफेन गोली से दर्द और बुखार कम होता हैं। एक बात जरूर ध्यान रखे जब गोली खाये तब पंखा कूलर आदि का उपयोग न करे और न ही खुले स्थान पर रहे। शरीर से पसीना निकलने से बुखार जल्दी उतरता हैं। अभी तक इसका कोई विशेष इलाज नहीं निकला हैं या माल हैं। मात्र लाक्षणिक चिकित्सा के अनुसार चिकित्सा का प्रावधान हैं।
इसके अलावा एक बात का ध्यान जरूर रखे की आयुर्वेद के अनुसार यदि चिकित्सक या वैद्य कोई नाम नहीं दे पा रहा हैं रोग का तो वह दोष -दुष्य के आधार पर चिकित्सा कर सकता हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह रोग विषम ज्वर के अंतरगत माना जा सकता हैं।
स्वेदावरोध संतपः सर्वाङ्गगृहम तथा !
युगपद्यत्र रोगे च स ज्वरो व्यपदिश्यते !!
स्वेद का अवरोध, संताप और सर्वांग में पीड़ा ये लक्षण एक साथ जिस रोग में हो उसे ज्वर कहते हैं।
विषमो विषमरामभ क्रियाकालोअनुषंगवान
जिसका आरम्भ। क्रिया तथा काल विषम हो वह विषम ज्वर कहलाता हैं।
विषमज्वर के भेद –संतत ज्वर, सततकज्वर, अनयेदयूषक ज्वर,तृतीयक ज्वर, चतुर्थक ज्वर होते हैं इसके अलावा अन्य रोग भी होते हैं।
सामान्यतः विषमज्वर में चिकित्सा सिद्धांत उदर शोधन यानि। कब्ज को दूर करना या एनीमा भी दे सकते हैं। इसके बाद सहदेवी,, पीत दारू, त्रियमाना, कारबेल्लक। कर्कोटक, सप्तपर्ण, कारंजा, द्रोणपुषी,तुलसी और किरात तिक्त को सामान मात्रा में लेकर या किसी एक द्रव्य को चार गुना पानी में लेकर उबालेऔर एक चौथाई होने पर दो से तीन बार पिए। अश्वकंचुँकि रस पेट साफ़ करने में लाभकारी होता हैं। इसके अलावा ज्वरमुरारी रस, पित्त ज्वारान्तक वटी, गुडूचायादि क्वाथ संसमनी वटी,पुटपकाव-विषमज्वरांतक लौह, सप्तपरनाघन वती, महाज्वारान्तक रस, लोहासव, कुमारीआसव अमृतारिष्ट, सुदर्शन चूर्ण, गोदन्ती मिश्रण। गुडुची, निम्बादि चूर्ण आदि दवाइयां वैद्य के परामर्श से ले।
खाना में हल्का खाना जैसे मखाना, धान की ले, मुरमुरा, मुनक्का, उबला पानी, बुखार ख़तम होने के बाद मूंग की दाल का पानी, दाल, मूंग की दाल की पतली खिचड़ी,खिचड़ी रोटी की पपड़ी, रोटी ले तो अधिक जल्दी लाभ की संभावना होतीहैं।
आराम अधिक से अधिक ले और इसके अलावा कोई अन्य चारा नहीं हैं कारण इसके बाद भूख न लगना, कमजोरी का होना स्वाभाविक हैं।
बचाव ही इलाज हैं, मच्छरदानी लगाओ
मच्छरों को पनपने मत दो।
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