( छत्तीसगढ़ चुनाव 2018 विशेष ) प्रान्त के हृदय स्थल में हाथी की चाल और जोगी की रणनीति से कई विधानसभा क्षेत्रों में इस बार त्रिकोणीय और चतुष्कोणीय मुकाबले के आसार दिख रहे हैं। इस बार जोगी कांग्रेस और बसपा गठबंधन का दखल अत्यधिक दिखने लगा है। इसे छत्तीसगढ़ के दिल के रूप में देखा जाता है। ये कलचुरी राजवंश के महाराजा जांजवाल्य देव का शहर है। विष्णु मंदिर इस जिले के सुनहरे अतीत को दर्शाता है। विष्णु मंदिर वैष्णव समुदाय का एक प्राचीन कलात्मक नमूना है।इस जिले के तहत छह विधानसभा सीट आती हैं अकलतरा ,जांजगीर-चाम्पा,सक्ती, चन्द्रपुर, जैजेपुर और पामगढ। अकलतरा में कांग्रेस ,जांजगीर-चांपा में कांग्रेस, सक्ती विधानसभा सीट पर बीजेपी, चंद्रपुर में भाजपा, जैजैपुर में बसपा, मालखरौदा में भाजपा विधायक है।
जांजगीर-चांपा विधानसभा
जांजगीर-चांपा सीट से भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी पांचवीं बार आपस में टकरा रहे हैं। सीट पर कांग्रेस का कब्जा है, पिछले तीन चुनाव के नतीजे देंखे तो एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस वाले नतीजे सामने आते रहे हैं। इस समीकरण के लिहाज से इस बार बारी बीजेपी की है। लेकिन बसपा यहां पर दोनों पार्टियों को कांटे टक्कर देती रही है। ऐसे में त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना है।जांजगीर-चंपा विधानसभा चुनाव की सियासी लड़ाई बीजेपी के नारायण चंदेल और कांग्रेस के मोतीलाल देवांगन के बीच ही पिछले दो दशक से होती आ रही है। मौजूदा समय में कांग्रेस के मोतीलाल देवांगन विधायक हैं।बता दें कि छत्तीसगढ़ के गठन से पहले 1998 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के नारायण चंदेल और कांग्रेस के मोतीलाल देवांगन पहली बार चुनावी समर में उतरे थे। उस समय नारायण चंदेल ने 35 हजार 83 वोट पाकर विधायक बने थे। इस सीट पर पहली बार कमल खिला था। इसके बाद से दोनों के बीच मुकाबला होता रहा है।1998 के चुनाव में भाजपा के नारायण चंदेल और कांग्रेस के मोतीलाल देवांगन पहली बार चुनावी समर में उतरे। तब नारायण चंदेल ने 35 हजार 83 वोट पाकर अपनी जीत दर्ज की।वहीं कांग्रेस के प्रत्याशी मोतीलाल देवांगन 28 हजार 404 वोट पाकर दूसरे पायदान पर रहे, जबकि बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी सहसराम कर्ष को 19 हजार 511 मतों के साथ तीसरा स्थान मिला था।2003 के विधानसभा चुनाव में जीत का सेहरा माेतीलाल देवांगन के सिर पर बंधा और नारायण चंदेल पराजित हुए। इस चुनाव में बसपा को परंपरागत तीसरा स्थान मिला।इसके बाद 2008 के विधानसभा चुनाव में फिर से चंदेल को जीत मिली और मोतीलाल देवांगन पराजित हुए। 2013 के चुनाव में भी जनता ने अपनी परंपरा कायम रखते हुए मोतीलाल को फिर मौका दिया और चंदेल हार गए।इस तरह से 1998 से लेकर वर्ष 2013 तक के हुए चार चुनाव में जांजगीर-चांपा विधानसभा क्षेत्र की जनता ने भाजपा के चंदेल और कांग्रेस के मोतीलाल देवांगन को दो-दो बार प्रतिनिधित्व करने का मौका दिया है। 2013 के चुनाव में कांग्रेस के मोतीलाल देवांगन को 54291 वोट मिले थे।बीजेपी के नारायण चंदेल को 43914 मिले थे।और बसपा के अमर सिंह राठौर को 27487 वोट मिले थे। 2008 के चुनाव में बीजेपी के नारायण चंदेल को 41954 वोट मिले थे।कांग्रेस के मोतीलाल देवांगन को 40784 वोट मिले थे।बसपा के रविंद्र द्विवेदी को 18113 वोट मिले थे। 2003 के चुनाव में कांग्रेस के मोतीलाल देवांगन को 52075 वोट मिले थे।बीजेपी के नारायण चंदेल को 44365 वोट मिले थे।बसपा के उदल किरण को 15009 वोट मिले थे।
सक्ती विधानसभा
जांजगीर-चांपा जिले की सक्ती विधानसभा सीट पर बीजेपी की कब्जा है। यह सीट न तो बीजेपी का और न ही कांग्रेस का गढ़ रही है। दोनों पार्टियां यहां से चुनावी जंग जीत चुकी हैं। हालांकि इस बार बसपा और अजीत जोगी की पार्टी के बीच गठबंधन होने के बाद मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना है।सक्ती विधानसभा सीट पर 2003 में बीजेपी के मेघाराम साहू ने जीत दर्ज की तो 2008 में कांग्रेस की सरोजा राठौर ने जीत का परचम लहराया। इसके बाद 2013 में बीजेपी के डॉ. खिलावन साहू ने कांग्रेस की सरोजा राठौर को शिकस्त देकर विधायक बने। 2013 के चुनाव में बीजेपी के डॉ. खिलावन साहू को 51577 वोट मिले थे।कांग्रेस की सरोजा राठौर को 42544 वोट मिले थे।2008 के नतीजे में कांग्रेस की सरोजा राठौर को 47368 वोट मिले थे।बीजेपी के मेघाराम साहू को 37976 वोट मिले थे।2003 के चुनाव परिणाम में बीजेपी के मेघाराम साहू को 27680 वोट मिले थे।कांग्रेस के मनहारन राठौर को 24408 वोट मिले थे।यह विधानसभा क्षेत्र सक्ती रियासत की कर्मभूमि रही है। यहां के राज परिवार ने आजादी के बाद से लगातार 50 साल तक राज किया है। इस दौरान 1952 के पहले चुनाव में कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर भी निर्दलीय के रूप में लीलाधर सिंह चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे।इसके बाद से 1998 तक यहां राज परिवार के सदस्य विधायक बनते आए, जिनमें सर्वाधिक कार्यकाल सक्ती राजा सुरेन्द्र बहादुर का रहा। हालांकि इसके बाद 1998 के चुनाव में लवसरा गांव के सरपंच रहे बीजेपी उम्मीदवार मेघाराम साहू से कांग्रेस प्रत्याशी सक्ती राजा को पराजित होना पड़ा। इसके बाद मेघाराम लगातार दो बार विधायक बने।यह विधानसभा क्षेत्र सक्ती रियासत की कर्मभूमि रही है। यहां के राज परिवार ने आजादी के बाद से लगातार 50 सालों तक राज किया है। इस दौरान 1952 के पहले चुनाव में कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर भी सक्ती महाराज लीलाधर सिंह चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे।इसके बाद से 1998 तक यहां राज परिवार के सदस्य विधायक बनते आए, जिनमें सर्वाधिक कार्यकाल सक्ती राजा सुरेन्द्र बहादुर का रहा। हालांकि इसके बाद 1998 के चुनाव में लवसरा गांव के सरपंच रहे भाजपा उम्मीदवार मेघाराम साहू से कांग्रेस प्रत्याशी सक्ती राजा को पराजित होना पड़ा।इसके बाद मेघाराम लगातार दो बार विधायक बने और 2008 के चुनाव में उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी श्रीमती सरोजा राठौर से पराजित होना पड़ा। इसके बाद 2013 के चुनाव में जनता ने फिर से बाजी पलटी और तत्कालीन विधायक सरोजा राठौर भाजपा के नए चेहरे के रूप सामने डॉ. खिलावन साहू से पराजित हुई।इस तरह से 1998 तक राजा-रजवाड़ा के हाथों में रही सक्ती विधानसभा की कमान दो दशक से भाजपा और कांग्रेस के अलग-अलग लोगों के पास चली गई।
चंद्रपुर विधानसभा
छत्तीसगढ़ की सियासत के बेताज बादशाह रहे बीजेपी नेता दिलीप सिंह जूदेव की राजनीतिक विरासत उनके बेटे युद्धवीर सिंह जूदेव संभाल रहे हैं। वे चंद्रपुर विधानसभा से दूसरी बार विधायक हैं और इस बार हैट्रिक लगाने के मूड में हैं, कांग्रेस बीजेपी के इस मजबूत दुर्ग में सेंध लगाने की कोशिश में जुटी है।जांजगीर जिले के तहत आने वाली चंद्रपुर विधानसभा सीट पर पिछले पांच चुनाव में तीन बार बीजेपी, एक बार कांग्रेस और एक बार एनसीपी जीत हासिल करने में कामयाब रही है। युद्धवीर सिंह जूदेव बीजेपी से लगातार दूसरी बार जीतकर विधायक बने हैं। दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस की इस सीट पर हार की वजह बसपा बनती रही है।दिलचस्प बात ये है कि छत्तीसगढ़ के गठन से पहले चंद्रपुर सीट पर बसपा उम्मीदवार को अच्छे खासे वोट मिलते रहे हैं। 1998 के विधानसभा चुनाव में बसपा को 7087 और 1993 के चुनाव में 12527 वोट मिले थे। इस सीट पर बसपा की राजनीतिक ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है।चंद्रपुर में राजपरिवार का काफी प्रभाव है। इसके बावजूद पिछले 20 सालों से चंद्रपुर में कभी किसी एक पार्टी की सत्ता नहीं रही। भाजपा और कांग्रेस दोनों प्रमुख पार्टियों को जनता ने अवसर दिया।स्व दिलीप सिंह जूदेव के व्यक्तित्व का आज भी असर चंद्रपुर में बरकरार है। 1990 और 1998 के चुनाव में भाजपा ने राजपरिवार को प्रतिनिधित्व सौंपा और दोनों बार जीत मिली। 1998 में राजपरिवार की रत्नमाला ने जीत हासिल की और राज्य गठन के बाद रत्नमाला ने कांग्रेस का दामन थामा। इसके बाद 2003 में रत्नमाला को किसी भी पार्टी से टिकट नहीं मिला। जबकि 2003 में दोनों प्रमुख पार्टियों ने नए चेहरों को मौका दिया था।2003 में भाजपा ने कृष्णकांत चंद्रा को टिकट दिया। इस चुनाव से पहले कांग्रेस के नोबल वर्मा पार्टी छोड़कर एनसीपी से जुड़ गए। नोबल वर्मा कांग्रेस से विधायक रह चुके थे। इस चुनाव में नोबेल ने भाजपा के कृष्णकांत को शिकस्त दी। और प्रदेश के पहले एनसीपी विधायक बने। इसके बाद 2008 में भाजपा ने फिर राजपरिवार को प्रतिनिधित्व सौंपा।इस चुनाव में दिलीप सिंह जूदेव के बेटे युद्ध्वीर सिंह मैदान में उतरे। उनकी सीधी टक्कर सिटिंग विधायक नोबेल वर्मा से थी। युद्ध्वीर सिंह ये चुनाव जीते वहीं नोबेल वर्मा ने एनसीपी से नाता तोड़कर फिर कांग्रेस का दामन थाम लिया।2013 में भी भाजपा ने राजपरिवार के युद्ध्वीर सिंह को पार्टी की कमान सौंपी। कांग्रेस नोबेल वर्मा को टिकट दिया लेकिन वे जीत हािसल नहीं कर सके। युद्ध्वीर सिंह जूदेव ने उन्हें लगभग 7 हजार वोटों से शिकस्त दी। 2013 के चुनाव परिणाम में बीजेपी के युद्धवीर सिंह जूदेव को 51295 वोट मिले थे।कांग्रेस के राम कुमार यादव को 45078 वोट मिले थे।2008 में बीजेपी के युद्धवीर सिंह जूदेव को 48843 वोट मिले थे।कांग्रेस के नवल कुमार वर्मा को 31553 वोट मिले थे।बसपा के गोविन्द अग्रवाल को 25426 वोट मिले थे।2003 के चुनाव में एनसीपी के नवल कुमार वर्मा को 31929 वोट मिले थे।बीजेपी के कृष्णकांत चंद्रा को 19498 वोट मिले थे।बसपा उम्मीदवार को 13304 वोट मिले थे।
जैजैपुर विधानसभा
छत्तीसगढ़ की जैजैपुर विधानसभा बसपा का मजबूत गढ़ है। 2008 में परिसीमन के बाद वजूद में आई जैजैपुर राज्य की इकलौती सीट है जहां से बसपा के केशवचंद्र विधायक हैं। बसपा के इस किले में सेंधमारी के लिए भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के साथ-साथ अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस (JCCJ) पूरी ताकत के साथ लगी हुई हैं।राज्य में चंद महीनों के बाद होने वाले विधानसभा होने हैं। बसपा राज्य में अपने जनाधार को बढ़ाने के लिए पूरी टीम लगा रखा है। ऐसे में पार्टी अपनी सबसे मजबूत सीट जैजैपुर को हरहाल में बरकरार रखने की कोशिश में जुटी हुई है। बसपा से मौजूदा विधायक केशव चंद्रा का टिकट पक्का माना जा रहा है। जबकि कांग्रेस और बीजेपी में दावेदारों की लंबी फहरिश्त है।2008 में परिसीमन में मालखरौदा, पामगढ़, सक्ती के क्षेत्र को मिलाकर जैजैपुर विधानसभा सीट बनी। 2008 का पहला चुनाव हुआ तो पामगढ़ छोड़कर चुनाव लड़ रहे कांग्रेस प्रत्याशी राजेश्री महंत रामसुंदर दास ने यहां जीत दर्ज की। उन्होंने मालखरौदा के तत्कालीन विधायक निर्मल सिन्हा को पराजित किया था। दिलचस्प बात ये है कि बसपा दूसरे नंबर पर रही।कांग्रेस के मंहत रामसुंदर दास को 43346 वोट मिले थे।बसपा के केशवचंद्र को 33907 वोट मिले थे।2013 के विधानसभा चुनाव में जैजैपुर की जनता ने आश्चर्यजनक परिणाम दिया। बसपा दूसरे नंबर से पहले नंबर पर आ गई। इसी का नतीजा था इस सीट पर केशवचंद्र ने जीत दर्ज करते हुए बसपा खा खाता खोला। वे प्रदेश में बसपा के इकलौते विधायक हैं। कांग्रेस पहले नंबर से तीसरे नंबर पर पहुंच गई।बसपा के केशवचंद्र को 47188 वोट मिले थे।बीजेपी के डॉ. कैलाश शाहू को 44609 मिले थे।
मालखरौदा विधानसभा
मालखरौदा विधानसभा क्षेत्र के विलोपित होने के बाद मालखरौदा, पामगढ़, सक्ती के क्षेत्र को मिलाकर बनाए गए जैजैपुर विधानसभा क्षेत्र में वर्ष 2008 का पहला चुनाव हुआ तो पामगढ़ छोड़कर चुनाव लड़ रहे कांग्रेस प्रत्याशी राजेश्री महंत रामसुंदर दास ने यहां जीत दर्ज की।उन्होंने मालखरौदा के तत्कालीन विधायक निर्मल सिन्हा को पराजित किया, लेकिन इसके बाद वर्ष 2013 के चुनाव में क्षेत्र की जनता ने आश्चर्यजनक परिणाम दिया और नए बने जैजैपुर विधानसभा क्षेत्र में दूसरे बार के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का खाता खुला। यहां से केशव चंद्रा चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे जो प्रदेश में बसपा के इकलौते विधायक है। छत्तीसगढ़ की पामगढ़ विधानसभा सीट फिलहाल बीजेपी के पास है, लेकिन यहां बसपा का अच्छा खासा जनाधार है। इसी का नतीजा है कि राज्य गठन के बाद बसपा 2008 में जीत हासिल करने में जहां कामयाब रही। वहीं बाकी चुनाव में दूसरे नंबर पर रही है। इससे ‘हाथी’ की ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है।पामगढ़ विधानसभा सीट पर बीजेपी के अंबेश जांगड़े विधायक हैं। 2013 में बीजेपी ने इस सीट पर पहली बार जीत हासिल करने में कामयाब रही है। इससे पहले बसपा और उससे पहले कांग्रेस का कब्जा रहा है। ऐसे में इस बार का मुकाबला काफी दिलचस्प होने की उम्मीद है।2013 के चुनाव में बीजेपी के अंबेश जांगड़े को 45342 वोट मिले थे।बसपा के दुजराम बुद्ध को 37217 वोट मिले थे।2008 में बसपा के दुजराम बुद्ध को 39534 वोट मिले थे।बीजेपी के अंबेश जांगड़े को 33579 वोट मिले थे।2003 के चुनाव में कांग्रेस के महंत राम सुंदर दास को 42780 मिले थे।बसपा के दौराम को 36046 को वोट मिले थे।
अकलतरा विधानसभा
अकलतरा विधानसभा सीट पर वर्तमान में भले कांग्रेस का कब्जा हो लेकिन इस बार कांग्रेस को जीत इतनी आसान नहीं होगी।।क्योंकि बीजेपी और बीएसपी के साथ इस बार चुनौती जोगी कांग्रेस की होगी। अकलतरा विधानसभा सीट पर बीजेपी और कांग्रेज तो काबिज रही है बीएसपी ने भी जीत का परचम लहरया है।सियासी इतिहास में झांकें तो 1993 और 1998 में बीजेपी के छतराम देवांगन ने जीत हासिल की।2003 में कांग्रेस के रामाधार कश्यप ने बीजेपी के छतराम देवांगन को शिकस्त दी, लेकिन रामाधार कश्यप के राज्यसभा में जाने से 2004 में उपचुनाव में बीजेपी ने फिर कब्जा जमाया। इसके बाद 2008 में बसपा से सौरभ सिंह ने जीत दर्ज की।और फिर 2013 के विधानसभा में चुनाव में कांग्रेस के चुन्नीलाल साहू ने बीजपी के दिनेश सिंह को शिकस्त दी।