रायपुर, छत्तीसगढ़ी लोक गायक और गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया को आज राजधानी रायपुर में अंतिम विदाई दी गयी। जीवन भर माटी-महतारी की महिमा का बखान करने वाला छत्तीसगढ़िया माटी का सपूत पंचतत्व में विलीन हो गया। उनका कल निधन हो गया था। खारुन नदी के किनारे महादेव घाट स्थित कबीरपंथियों के मुक्ति धाम में उनके सामाजिक-धार्मिक रीति-रिवाज के अनुसार आज दोपहर उन्हें समाधि दे दी गई।
इस गमगीन माहौल में आम नागरिक, दिवंगत कवि के परिजन, कबीर पंथ के अनुयायी और साहित्यिक-सांस्कृतिक बिरादरी के लोग बड़ी संख्या में मौजूद थे। समाधि स्थल के पास कबीर भवन में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में भिलाई नगर से आए साहित्यकार रवि श्रीवास्तव ने लक्ष्मण मस्तुरिया के जीवन-संघर्ष के अनेक अनछुए पहलुओं की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मस्तूरी से जांजगीर होते हुए लक्ष्मण के सफर का तीसरा पड़ाव राजिम था, जहाँ सन्त कवि पवन दीवान के आश्रम स्थित संस्कृत विद्यालय में दीवान जी की पहल पर वह अध्यापक बन गए। साथ ही अतिरिक्त आमदनी के लिए राजिम से लगे नवापारा में टेलरिंग का भी काम करते थे। रवि श्रीवास्तव ने लक्ष्मण के बारे में एक नयी बात यह भी बतायी कि वे श्रमिक नेता भी बन गए थे। उन्होंने नवापारा राजिम के समीप पारागांव में बीड़ी कारखाने के श्रमिकों का कुशल नेतृत्व किया था। फिर रायपुर के लाखेनगर के स्कूल में भी अध्यापन किया। कांकेर के जंगल विभाग में भी कुछ समय तक नौकरी की। बाद में वह अध्यापक के रूप में रायपुर के राजकुमार कॉलेज से रिटायर हुए।