सतना में जाति VS विकास की लड़ाई में विकासवाद ने पैर पसारे, शहर की उपेक्षा से खफा हैं लोग

( मध्यप्रदेश चुनाव 2018 विशेष ) सतना,मध्यप्रदेश में विंध्य क्षेत्र के प्रवेश द्वार के रूप में पहचान अर्जित करने वाले सतना जिले में समाजवादियों का अर्से तक प्रभाव और दखल रहा है, इसे राज्य की छोटी व्यावसायिक राजधानी के तौर पर भी बीच -बीच में पेश किया जाता था,लेकिन समय रेल सुविधाओं को छोड़ कर प्रान्त के अन्य हिस्सों की तुलना में इस शहर का विकास नहीं हो पाया और यह पिछड़ता ही गया। भाजपा सरकार ने भी यहाँ की बेहद उपेक्षा धूल भरी सड़कों और गढ्ढों की वजह लोग बेहद निराश हैं। यहाँ सात विधानसभा सीट हैं कांग्रेस,बसपा और सपा भी यहाँ प्रभाव रखते है लेकिन यदि मतदताओं की बात की जाये तो वो जाति से ज्यादा विकास कार्यों को तवज्जो देते हैं पिछले चुनाव में 4 विधानसभा क्षेत्रो में कांग्रेस, 2 विधानसभा क्षेत्र में भाजपा एवं 1 विधानसभा क्षेत्र में बसपा ने जीत हासिल की थी । इनमे विधानसभा क्षेत्र चित्रकूट, नागौद और मैहर तथा अमरपाटन में कांग्रेस तथा सतना और रामपुर बघेलान विधानसभा क्षेत्र मे भाजपा तथा रैंगाव विधानसभा क्षेत्र मे बसपा के उम्मीदवार ने विजय हासिल की। विधानसभा क्षेत्र चित्रकूट से कांग्रेस के उम्मीदवार प्रेम सिंह के निधन के बाद हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस को जीत मिली। इस बार भाजपा यह कोशिश करेगी कि वो किसी भी तरह से जिले में भगवा रंग भरे।
सतना :
सतना विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के शंकरलाल तिवारी लगातार तीन बार से विधायक हैं। विधायक तिवारी ने 2003 में सर्वाधिक 42.18 प्रतिशत वोट पाकर कांग्रेस के प्रत्याशी सईद अहमद को हराकर जीत हासिल की थी। इसके बाद शंकरलाल तिवारी ने 2008 में 38.30 प्रतिशत वोट पाकर जीत हासिल की। 2013 के विधानसभा चुनाव में 41.59 प्रतिशत वोट पाकर चुनाव जीत लिया। वे तीन बार से विधायक हैं। 2013 में शंकरलाल तिवारी ने कांग्रेस के राजाराम त्रिपाठी को 15332 हराया था उससे पहले 2008 के चुनाव में कांग्रेस के सईद अहमद को 10022 वोटों से पराजित किया था जबकि 2003 के चुनाव में भी उनका मुकाबला सईद अहमद से था तब तिवारी ने अहमद को 27000 वोटों से शिकस्त दी थी।
रामपुर बघेलान:
उप्र से सटे होने होने के कारण यह माना जाता है कि बघेलखंड में भी जातिवादी राजनीति का जोर रहता है, अब जातिवाद के साथ विकासवाद भी हावी होता जा रहा है। कम से कम रामपुर बघेलान वह क्षेत्र है, जहां जातिवाद का फैक्टर एक सीमा तक ही काम करता है। जनता उसी का साथ देती है जो विकास के मुद्दे पर उनका साथ देता है। वर्तमान में रामपुर बघेलान सीट पर हर्ष सिंह भाजपा से विधायक हैं। वे सरकार में राज्यमंत्री भी हैं। 2013 के चुनाव में हर्ष सिंह ने बसपा के रामलखन सिंह की 24255 वोटों से शिकस्त दी थी। हर्ष सिंह को राजनीति विरासत में मिली है। इनके पिता स्व. गोविंद नारायण सिंह मप्र के मुख्यमंत्री थे, इसी वजह से क्षेत्र में उनका दबदबा कायम है। भाजपा को टक्कर देने के लिए बसपा आज भी एक मजबूत पार्टी मानी जाती है क्योंकि 2003 के चुनाव में बसपा ने भाजपा व कांग्रेस को पराजित कर 29.19 प्रतिशत वोट पाकर जीत हासिल की थी। इस सीट पर पटेल, ठाकुर, ब्राह्मण जाति के मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं, इसलिए कांग्रेस, भाजपा व बसपा प्रत्याशी का चयन इसी आधार पर करती है। 2008 में हर्ष सिंह को रामलखन पटेल (बसपा) 10718 मतों से मात देकर बसपा का कब्ज़ा बरक़रार रखा जबकि 2003 के चुनाव में हर्ष सिंह आरएसएमडी से चुनाव लड़े थे तब उंहोने बसपा के रामलखन सिंह को 6663 वोटों से हराया था।
नागौद :
नागौद विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं की खासियत रही है कि उन्होंने घर के जोगी को ही सिद्ध माना है। यहां से वर्तमान में कांग्रेस के यादवेंद्र सिंह विधायक हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में अधिकांश स्थानीय प्रत्याशी ही चुनाव जीतता आया है और हमेशा से ही कांग्रेस और भाजपा में टक्कर रही है। यहां अन्य पार्टियों के प्रत्याशियों को मतदाताओं ने ज्यादा पसंद नहीं किया है। इसलिए आगामी विधानसभा चुनाव में भी भाजपा और कांग्रेस में ही टक्कर रहेगी। इस विधानसभा सीट पर ठाकुर जाति के मतदाता अधिक संख्या में होने के कारण निर्णायक भूमिका में रहते हैं। इसके आधार पर भी भाजपा और कांग्रेस अपने उम्मीदवारों का चयन करती हैं। वैसे तो भाजपा और कांग्रेस में बेहद रोचक मुकाबला होने की उम्मीद ज्यादा है लेकिन यदि तीसरी पार्टी की बात करें तो बसपा भी चुनौती दे रही है। आगामी चुनाव में भाजपा, कांग्रेस व बसपा में जीत-हार का अंतर कम ही रहेगा। 2013 के चुनाव में कांग्रेस के यादवेंद्र सिंह ने भाजपा प्रत्याशी गगनेंद्र प्रताप सिंह 10064 वोटों से हराया था जबकि 2008 के चुनाव में भाजपा के नागेंद्र सिंह के हांथो उन्हें 6982 मतों से हार मुहं देखना पड़ा था। 2003 के चुनाव में भाजपा के नागेंद्र सिंह ही चुनाव जीते थे उन्होंने कांग्रेस के यादवेंद्र सिंह को 12727 वोटों से हराया था।
मैहर :
मैहर विधानसभा क्षेत्र हमेशा से ही सुर्खियों में रहा है। यहां के मौजूदा विधायक नारायण त्रिपाठी ने दो बार अलग-अलग पार्टी का दामन थामा और जीत हासिल की। नारायण त्रिपाठी ने पहले सपा छोड़कर कांग्रेस से चुनाव लड़ा, फिर कांग्रेस छोड़कर भाजपा से हाथ मिलाया और जीत हासिल की। इस विधानसभा सीट पर ब्राह्मण, पटेल और कुशवाहा मतदाता जातिगत आधार पर निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। इसलिए भाजपा व कांग्रेस दोनों में ही पार्टियों में कोशिश यही रहती आई है कि उम्मीदवार इन तीनों जातियों में से किसी एक का जरूर हो। यहां भाजपा अधिकतर ब्राह्मण प्रत्याशी को मैदान में उतारती है तो वहीं कांग्रेस पटेल प्रत्याशी पर दांव लगाती आई है। यहां कांग्रेस-भाजपा दोनों को ही टक्कर देने के लिए क्षमता बसपा रखती है। चाहे 2013 का चुनाव हो या इसके बाद का उपचुनाव, दोनों ही चुनावों में बसपा ने कांग्रेस और भाजपा को अच्छी-खासी टक्कर दी थी। 2016 के उपचुनाव नारायण त्रिपाठी ने भाजपा से चुनाव लड़ा था और कांग्रेस प्रत्याशी मनीष पटेल को शिकस्त दी इससे पहले 2013 के चुनाव में त्रिपाठी कांग्रेस प्रत्याशी थे तब उन्होंने भाजपा के रमेश प्रसाद को 6975 मतों से हराया था। 2008 के चुनाव में भाजपा के मोतीलाल तिवारी ने मथुराप्रसाद पटेल 14459 वोटो शिकस्त दी थी वहीँ 2003 चुनाव में नारायण त्रिपाठी सपा के प्रत्याशी थे उन्होंने बसपा के वीरेंद्र कुशवाह को 13186 मतों से मात दी थी।
अमरपाटन :
अमरपाटन विस सीट से कांग्रेस नेता राजेंद्र सिंह वर्तमान में विधायक हैं। वे विधानसभा उपाध्यक्ष भी हैं। अमरपाटन विधानसभा क्षेत्र क्रमांक-66 दो बड़े कस्बों में बंटा हुआ है। पहला अमरपाटन, दूसरा रामनगर। दोनों ही नगर पंचायत हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में सदन के उपाध्यक्ष राजेंद्र कुमार सिंह का प्रभाव अर्से से चल रहा है। यहाँ पटेल, ठाकुर, अनुसूचित जाति के मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं। टिकट का बंटवारा जातिगत समीकरणों को देखकर ही किए जाने की संभावना है। 2013 के चुनाव में राजेंद्र सिंह भाजपा के रामखेलावन पटेल को 11739 मतों से हराया था जबकि छंगेलाल कोल – बसपा 35020 मत पाकर तीसरे स्थान पर रही। 2008 के चुनाव में रामखिलावन पटेल ने राजेंद्र सिंह को 4701 मतों से हराया था २००३ के चुनाव में राजेंद्र सिंह ने भाजपा के कमलकर को 3943 मतों शिकस्त दी थी।
रैगांव :
रैगांव विधानसभा क्षेत्र से 2003 व 2008 में दो बार भाजपा के विधायक चुने गए। लेकिन 2013 के चुनाव में क्षेत्र की जनता ने इस पार्टी से मुंह मोड़ लिया और बसपा की उषा चौधरी पर भरोसा जताते हुए उन्हें जीत दिलाई। पिछले चुनाव पर नजर डालें तो यहां पर सबसे मजबूत पार्टी के रूप में भाजपा कांग्रेस से आगे रही थी। उसे टक्कर देने के लिए बसपा ही एक मात्र सक्षम पार्टी है। कांग्रेस पार्टी लगातार तीन चुनावों में पीछे रही है। बागरी, चौधरी व ब्राह्मण जाति के मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं। जातिगत आधार पर ही यहां के मतदाता प्रत्याशी का चयन करते हैं।2013 के चुनाव में उषा चौधरी बसपा ने पुष्पराज बागरी भाजपा को 4109 वोटों से पराजित किया था जबकि गया प्रसाद बागरी – कांग्रेस 27708 मत पाकर तीसरे स्थान पर रहे। 2008 के चुनाव में भाजपा के जुगल किशोर बागरी ने कांग्रेस के प्रगेंद बागरी को 3851 मतों से हराया था। 2003 में जुगल किशोर ही चुनाव जीते उन्होंने बसपा की उषा चौधरी को 9988 वोटों से हराया था।
चित्रकूट :
चित्रकूट विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस विधायक प्रेम सिंह के आकस्मिक निधन के बाद 2017 में हुए उपचुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। . कांग्रेस के उम्मीदवार ने बीजेपी के उम्मीदवार को 14,333 मतों से हराया. यहां बीते 9 नवंबर को उपचुनाव के लिए वोटिंग हई थी। कांग्रेस ने उपचुनाव में जीत दर्ज की। इसके साथ ही पार्टी ने सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा कांग्रेस के उम्मीदवार नीलांशु चतुर्वेदी ने अपने निकटतम उम्मीदवार भाजपा की शंकरदयाल त्रिपाठी को 14,133 मतों के अंतर से हरा दिया। कांग्रेस उम्मीदवार को 66,810 मत हासिल हुए तथा भाजपा प्रत्याशी त्रिपाठी को 52,677 वोट मिले। 2455 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना। उत्तरप्रदेश की सीमा से लगी चित्रकूट सीट कांग्रेस की परम्परागत सीट मानी जाती है। कांग्रेस के कब्जे से यह सीट हथियाने के लिए सत्ताधारी भगवा पार्टी ने अपना पूरा जोर लगाया था लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली.2013 के चुनाव में चित्रकूट से कांग्रेस के उम्मीदवार प्रेम सिंह को 45913 मत मिले थे। भाजपा के उम्मीदवार सुरेन्द्र सिंह गहरवार को 34943 मत मिले तथा बसपा उम्मीदवार तीरथ प्रसाद कुशवाहा को 24275 मत प्राप्त हुये। इस प्रकार कांग्रेस के प्रेम सिंह 10970 मतो से विजयी हुये थे। 2008 में भाजपा के सुरेन्द्र गहरवार ने कांग्रेस के प्रेम सिंह को 722 वोटों से हराया था। 2003 के चुनाव में प्रेम सिंह जीते थे उन्होंने बसपा के बद्रीप्रसाद पटेल को 8799 वोटों से पराजित किया था।

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