बीजापुर,नक्सल प्रभावित इलाके में हर दाल और हर प्रत्याशी चुनाव जितना चाहता है,लेकिन प्रचार की दहशत से वह समझ नहीं पा रहा है,कि प्रचार- प्रसार कहाँ से और कैसे शुरू किया जाए। दहशत भी है कि किस तरह अंदरूनी इलाकों में प्रचार – प्रसार करें। नक्सली घटनाओं के बाद किसी भी राजनीतिक दल का कार्यकर्ता, बैनर, पोस्टर अतिसंवेदनशील क्षेत्र में नहीं दिख रहा है और ना ही किसी की हिम्मत हो रही है। शुरू से ही नक्सलियों ने चुनाव बहिष्कार का एलान किया था और अपने इलाके में प्रचार – प्रसार का प्रतिबंध लगा दिया है। भाजपा के प्रत्याशी महेश गागड़ा , कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम मण्डावी स्वीकार करते हैं कि अंदरूनी इलाके में प्रचार-प्रसार करना जोखिम भरा काम है। इसलिए अब स्थानीय लोगों की मदद लेकर प्रचार किया जा रहा है। 12 नवंबर को प्रथम चरण के विधानसभा चुनाव को लेकर बस्तर के सभी सातों जिलों में चुनाव की तैयारियां जोरों पर है। दूसरी ओर किसी भी राजनीतिक दल के कार्यकर्ता अंदरूनी इलाकों में प्रचार करने नहीं जा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण नक्सलियों की वह धमकी है जिसमें साफ तौर पर कहा गया कि कार्यकर्ता अगर अंदर आए तो उन्हें जान से मार दिया जाएगा। पिछले दो हफ्तों के बीच हुई दो बड़े हमले भी राजनैतिक दलों को असमंजस के घेरे में ले लिया है। उसका ही नतीजा है कि बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा, कांकेर और नारायणपुर सहित संभाग के सातों जिलों में राजनीतिक दलों का प्रचार प्रसार कस्बाई इलाकों तक ही सीमित रह गया है। अंदरूनी इलाके में ना तो किसी पार्टी के झंडे और ना ही पंपलेट बांट रहे हैं हालांकि ग्रामीण यह कह रहे हैं नक्सलियों का खौफ उनके गांव में नहीं है। फिर भी राजनीतिक दल के सदस्य अभी तक उन तक क्यों नहीं पहुंच रहे इसका जवाब उनके पास भी नहीं है। दूसरी ओर राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता ग्रामीण इलाकों तक नहीं पहुंच पा रहे ऐसे में उन्हें भी यह डर है कि कहीं उन पर नक्सली हमला ना हो जाए। बीजापुर के अंदरूनी इलाकों में कार्यकर्ता जाने से डर रहे हैं।
कुल मिलाकर लगातार बस्तर में हो रहे नक्सली हमले को लेकर किसी भी राजनीतिक दल के कार्यकर्ता या प्रत्याशी उन इलाकों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं जहां नक्सलियों का एकछत्र राज है। नक्सलियों ने भी खुले तौर पर चुनाव बहिष्कार की घोषणा कर रखा है ऐसे में उन इलाकों में शत प्रतिशत मतदान की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। देखा जाए तो इन इलाकों में पिछले विधानसभा की तुलना में प्रचार नहीं हो रहा है। ऐसे में उन इलाकों के मतदाताओं को रिझाने के लिए राजनीतिक दलों के पास कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है। चुनाव आयोग ऐसे इलाकों में मतदाताओं को जागरूक करने में लगा है लेकिन जागरूकता वाहन या संबंधित फ्लेक्स या बैनर उन इलाकों तक नहीं पहुंच पाई है। लिहाजा मतदाताओं को उनके विवेक पर ही वोट डालने होंगें।
नक्सल प्रभावित इलाके में प्रचार की दहशत
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