( छत्तीसगढ़ चुनाव 2018 विशेष ) महासमुंद, दिवंगत कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्ल की वजह महासमुंद ने देश भर में अपनी पहचान निर्मित की थी। यह जिला कभ एक से परिणाम नहीं देता है,कभी किसी को तो कभी किसी को यहाँ से सफलता मिलती रही है। महासमुंद ऐतिहासिक और राजनीतिक लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। महासमुंद जिला, महासमुंद लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है। महासमुंद जिले में कुल चार विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र क्रमशः सरायपाली, बसना ,खल्लारी तथा महासमुंद आते है। फिलहाल चार सीटों में से तीन पर भाजपा के विधायक हैं जबकि एक महासमुंद में निर्दलीय विधायक है। महासमुंद पहले कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था लेकिन पिछले चुनाव में भाजपा में अच्छा प्रदर्शन करके गढ़ में सेंध लगा ली है इस चुनाव में कांग्रेस से किसी करिश्मे का इंतजार है।
सराईपाली विधानसभा
छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले की सरायपाली विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। राज्य के गठन के बाद तीन बार हुए विधानसभा चुनाव में दो बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है। मौजूदा समय में यहां से बीजेपी के रामलाल चौहान विधायक हैं, लेकिन कांग्रेस वापसी के लिए हरसंभव कोशिश में जुटी है।सरायपाली के सियासी समीकरण की बात की जाए तो इस सीट को लंबे समय तक कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। हालांकि बीते पंद्रह साल से इस सीट पर कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी के प्रत्याशी को जीत मिलती रही है। इस विधानसभा सीट की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां से जीतने के बाद कोई भी विधायक दोबारा चुनकर नहीं आया।सरायपाली के सियासी इतिहास की बात की जाए तो सीट पर अब तक 10 बार कांग्रेस ने अपना कब्जा जमाया है, जबकि बीजेपी केवल तीन बार ही कांग्रेस के इस गढ़ को ढहाने में कामयाब हो पाई है। कांग्रेस के टिकट पर यहां राजपरिवार से जुड़े महेंद्र बहादुर और देवेंद्र बहादुर जीतते रहे हैं। लेकिन राज्य बनने के बाद 2003 के चुनाव में यहां बीजेपी के त्रिलोचन पटेल ने कांग्रेस के देवेंद्र बहादुर को हरा कर कांग्रेस को झटका दिया है।सरायपाली विधानसभा का अधिकतर इलाका जंगल से ढका हुआ है और गरियाबंद-छुरा से होते हुए रायगढ़ तक यह इलाका नक्सलियों के लिए सेफ कॉरिडोर भी है। ये गांड़ा समुदाय बहुल माना जाता है। हालांकि क्षेत्र में अघरिया और कोलता समुदाय भी बड़ी तादाद में है।क्षेत्र में मौजूद मतदाताओं और उनके जातिगत आंकड़ों पर नजर डालें, तो स्पष्ट है कि सरायापली विधानसभा में गांड़ा समुदाय की बाहुल्यता रही है। यहीं वजह है कि इस सीट को अजा वर्ग के लिए आरक्षित भी किया गया है।हालांकि क्षेत्र में अघरिया और कोलता बाहुल्यता भी है, लेकिन आरक्षित वर्ग की सीट होने के साथ महल के प्रभाव के चलते यहां की राजनीति महल पर ही केंद्रित रहती है। आरक्षण के बाद महल ने बसना की ओर रुख किया, लेकिन यहां अब भी महल का प्रभाव दिखता है। 2013 के विधानसभा चुनाव नतीजे में बीजेपी के रामलाल चौहान को 82064 वोट मिले थे।कांग्रेस के डॉ. हर्षवर्धन भारद्वाज 53232 वोट मिले थे।वहीँ 2008 के परिणाम में कांग्रेस के डॉ. हर्षवर्धन भारद्वाज 64456 वोट मिले थे।बीजेपी के नीरा चौहान को 48234 वोट मिले थे। 2003 के चुनाव नतीजे में बीजेपी के त्रिलोचन पटेल को 48234 वोट मिले थे कांग्रेस के देवेंद्र बहादुर सिंह 40942 वोट मिले थे।सरायपाली का जातीय समीकरण भी दिलचस्प है। यहां पर 24 फीसदी एसटी, 11 फीसदी एससी, 18 फीसदी अघरिया और 16 फीसदी वोटर कोलता समाज से हैं। इसके अलावा सामान्य के 2 फीसदी और अल्पसंख्यक वोटर 2 फीसदी हैं।
बसना विधानसभा
छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले की बसना विधानसभा सीट अपने आप में काफी खास है। ये राज्य की उन सीटों में से एक है, जहां लगातार दो बार कोई पार्टी चुनाव नहीं जीतती है। यानी यहां की जनता हर बार अपने नेता को बदलती है।अभी तो ये सीट भारतीय जनता पार्टी के पास है, लेकिन बीजेपी के सामने भी मुश्किल इतिहास की है। 2013 में इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी की रुपकुमारी चौधरी ने कांग्रेस के पूर्व विधायक देवेंद्र बहादुर सिंह को करीब 7000 वोटों से मात दी थी।2013 के चुनाव में रुपकुमारी चौधरी, बीजेपी, कुल 77137 वोट मिले थे देवेंद्र बहादुर सिंह, कांग्रेस, को कुल 70898 वोट मिले थे। 2008 में देवेंद्र बहादुर सिंह, कांग्रेस, कुल वोट मिले 52145 प्रेमशंकर पटेल, बीजेपी, कुल वोट 36238 मिले थे। पिछले पांच चुनाव के इतिहास को देखें तो ये साफतौर समझ आता है कि इस सीट परिवर्तन तय है, भाजपा के सामने यही मुश्किल है। साल 1993 से वर्ष 2013 के बीच हुए 5 चुनावों में भाजपा ने 4 बार प्रत्याशी बदला और कांग्रेस ने एक बार ही प्रत्याशी बदला है। कांग्रेस के महेन्द्र बहादुर सिंह ने 1993 में यह सीट निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीता, 1998 में कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे और भाजपा के डॉ. त्रिविक्रम भोई को हराकर लगातार दूसरी बार सदन में पहुंचे। साल 2003 के चुनाव में भाजपा के त्रिविक्रम भोई ने कांग्रेस के महेंद्र बहादुर सिंह को 2400 वोट से हराकर पिछली हार का हिसाब चुकता कर दिया। वर्ष 2008 में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने प्रत्याशी बदले, भाजपा के प्रेमशंकर पटेल को कांग्रेस के देवेंद्र बहादुर सिंह ने करीब 16 हजार मतों के अंतर से हराया। वर्ष 2013 में भाजपा ने पुन: प्रत्याशी बदलकर रूपकुमारी चौधरी को टिकट दिया, चौधरी ने कांग्रेस के देवेंद्र बहादुर सिंह पर 7000 हजार वोटों से जीत दर्ज कर पिछली हार का हिसाब बराबर किया।
खल्लारी विधानसभा
छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों में से एक खल्लारी विधानसभा चुनावों के हिसाब से भी काफी अहम सीट मानी जाती है। महासमुंद जिले की इस सीट पर अभी भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है, बीजेपी की कोशिश होगी कि वह इस जीत के सिलसिले को कायम रख पाए।2013 में इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के चुन्नी लाल साहू विधायक हैं, उन्होंने इस चुनाव में पूर्व विधायक परेश बगबहरा को सीधी मात दी थी।खल्लारी विधानसभा का सियासी समीकरण बेहद दिलचस्प रहा है। चुनावी आंकड़े भी बताते हैं कि यहां किसी एक दल या नेता का दबदबा लंबे समय तक नहीं रहा है। यही नहीं आदिवासी बाहुल्य इलाका होने के बावजूद यहां किसी आदिवासी नेता विधायक नहीं रहा। खल्लारी के सियासी इतिहास की बात की जाए तो यहां के मतदाताओं का सियासी मूड हमेशा ही बदलता रहा है और कोई भी नेता लंबे समय तक यहां पैर नहीं जमा पाया है। 1990 में यहां से जनता दल के डॉक्टर रमेश ने चुनाव जीता। 1993 में वो बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन कांग्रेस के भेखराम साहू से चुनाव हार गए। लेकिन 1998 में उन्होंने अपनी हार का बदला लेते हुए भेखराम साहू को मात दी। लेकिन 1999 में उनका निधन हो गया और उपचुनाव में उनके भाई परेश बागबहरा ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीता। लेकिन राज्य बनने के बाद उन्होंने अजीत जोगी के प्रभाव में आकर कांग्रेस ज्वाइन कर ली। 2003 में कांग्रेस ने भेखराम साहू को ही यहां से चुनाव मैदान में उतारा लेकिन वो बीजेपी के प्रीतम दीवान से हार गए। 2008 में परेश बागबहरा को कांग्रेस ने मौका दिया और उन्होंने प्रीतम दीवान को मात दी। लेकिन 2013 में बीजेपी के टिकट पर चुन्नीलाल साहू ने परेश बागबहरा को हराया। इस चुनाव में बीजेपी को जहां 58652 वोट मिले वहीं कांग्रेस 52653 वोट ले सकी। इस तरह जीत का अंतर 5999 वोटों का रहा। खल्लारी में मौजूद दुर्गा माता का मंदिर काफी प्रसिद्ध है। इसे खल्लारी माता का मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर की काफी मान्यता है, इसलिए यहां दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते हैं।
महासमुंद विधानसभा
महासमुंद विधानसभा में कोई भी विधायक लगातार लंबे समय तक राज नहीं कर पाया है। हर बार यहां की जनता चुनाव में प्रत्याशियों का चेहरा बदल देती है।इस सीट की खास बात ये है कि यहां किसी एक पार्टी का वर्चस्व नहीं है। बल्कि 2013विधानसभा चुनाव में तो ये सीट निर्दलीय के हाथ लगी थी। पिछले चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़े विमल चोपड़ा ने कांग्रेस के पूर्व विधायक अग्नि चंद्रकर को करीब 5000 वोटों से मात दी थी।2013 विधानसभा चुनाव में डॉ. विमल चोपड़ा, निर्दलीय, को कुल 47416 वोट मिले थे जबकि अग्नि चंद्रकर, कांग्रेस,को 42694 वोट मिले थे वहीँ 2008 विधानसभा चुनाव में अग्नि चंद्रकर, कांग्रेस, को कुल वोट मिले 52667 मोती लाल साहू, बीजेपी, को कुल वोट मिले 47623 मिले। 2003 विधानसभा चुनाव, में पूनम चंद्रकर, बीजेपी, को कुल वोट मिले 41812 ,अग्नि चंद्रकर, कांग्रेस,को कुल 40201 वोट मिले थे।
कांग्रेस का गढ़ रहे महासमुंद में राज परिवार का रहा है दबदबा ,अब होता है उलटफेर केसरिया ब्रिगेड को पिछला प्रदर्शन दोहराने की दरकार
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