इसलिए सुहागिनें रखती हैं करवा चौथ का व्रत

(करवा चौथ पर विशेष ) भोपाल,यह तो दुनिया जानती है कि भारतीय महिलाएं करवा चौथ का व्रत अपने पति के लिए रखती हैं और उनकी लंबी आयु की कामना करती हैं। इसके लिए महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और फिर पूजापाठ करती हैं। इस वर्ष 27 अक्टूबर को करवा चौथ है, ऐसे में यहां प्रस्तुत है करवा चौथ व्रत करने के नियम व कुछ सावधानियां। गौरतलब है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। इस दिन महिलाएं जिस मिट्टी के टोटीनुमा पात्र से जल अर्पित करती हैं उसे ही करवा कहा जाता है और चौथ चतुर्थी तिथि को कहते हैं। इस दिन मुख्यरुप से भगवान गणेश, मां गौरी और चंद्रमा की पूजा की जाती है। जहां तक व्रत के नियमों का सवाल है तो इस दिन वही महिलाएं व्रत रखती हैं जो कि विवाहित हैं या जिनका विवाह तय हो चुका है। यह व्रत सूर्योदय से प्रारंभ होता है और चंद्रोदय तक रखा जाता है। पंडितों की मानें तो व्रतधारी महिला सफेद और काले वस्त्र धारण न करें, उनके लिए लाल वस्त्र उत्तम माना गया है। इस दिन महिलाओं को पूर्ण श्रंगार और अच्छा भोजन जरुर करना चाहिए, क्योंकि इससे उनका व्रत भी अच्छा होता है। करवा चौथ की पौराणिक कथा है जिसके अनुसार प्राचीनकाल की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। ये सभी भाई अपनी बहन को स्नेह करते थे। उनका अपनी बहन के प्रति इतना स्नेह था कि वो सभी पहले अपनी बहन को भोजन कराते उसके बाद ही स्वयं ग्रहण करते थे। एक बार की बात है उनकी बहन ससुराल से मायके आई, संध्या काल उसके भाई भी घर आए तो देखा की उनकी बहन कुछ व्याकुल है। सभी भाई अपनी बहन से भोजन का आग्रह करने लगे, तभी उनकी बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह भोजन तभी ग्रहण करेगी जबकि चंद्रमा के दर्शन नहीं कर लेगी। चंद्रमा को अर्घ्‍य देकर ही वह भोजन कर सकती है। काफी समय हो जाने के बाद भी चंद्रमा के दर्शन नहीं होते हैं अत: भूख-प्यास से व्याकुल बहन को देख सबसे छोटा भाई दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत हुआ मानों चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो। यह करने के बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चंद्रमा ने दर्शन दे दिया, अब तुम उसे अर्घ्य देकर भोजन कर सकती हो। बहन खुशी खुशी चंद्रमा के दर्शन कर उसे अर्घ्‍य देती है और उसके उपरांत भोजन करने के लिए बैठ जाती है। वह जैसे ही पहला कौर मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा कौर डालने की कोशिश करती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा कौर मुंह में रखने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह इस अनिष्ट से हैरान-परेशान और दु:खी हो जाती है। इस पर उसकी भाभी उसे संपूर्ण सच्चाई से अवगत करा देती है। तब उसे मालूम चलता है कि करवा चौथ का व्रत नियमानुसार हुआ ही नहीं जिससे देवता उससे नाराज होकर यह सब कर रहे हैं। सत्य जानने के उपरांत करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुन:जीवन दिलवाकर रहेगी। वह एक वर्ष तक अपने पति के शव के पास बैठी उसकी देखभाल करती रही। इस बीच वह सूईनुमा घास को एकत्रित करती जाती है। वर्ष पूर्ण होता है और एक बार फिर करवा चौथ का दिन आ जाता है। उसकी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह अपनी सभी भाभियों से ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ आग्रह करती है, लेकिन एक-एक कर सभी भाभियां उससे अगली वाली भाभी से ऐसा आग्रह करने को कहकर चली जाती हैं। इसी बीच जब छठवें नंबर की भाभी आती है तो करवा उनसे भी यही बात दोहराती है। इस पर भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा अतः उसकी पत्नी में ही यह शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सके। इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। अंत में छोटी भाभी भी करवा के पास आती है तो वह उससे वही बात कहती है। यह सुन भाभी उसकी बात को टालने लगती है, लेकिन करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने पति को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी अपने आपको छुड़ाने के लिए करवा को नोचती-खसोटती है, लेकिन करवा नहीं मानती है। अंतत: उसकी तपस्या और विश्वास को देख उसकी छोटी भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में प्रवेश कराती है। इससे करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार करवा का व्रत भी पूरा होता है और वह अपने प्रढ़ में सफल भी होती है। प्रभु कृपा से वह सुहागिन हो जाती है।
( दशरथ मोरे द्वारा)

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