अस्पष्ट लिखावट पर कोर्ट ने डॉक्टर को तलब कर पूछा क्या इसे कोई समझ सकता है?

लखनऊ, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने टेढ़ी-मेढ़ी और अस्पष्ट लिखावट न पढ़ पाने पर 28 सितंबर को सीतापुर जिला चिकित्सालय के डॉक्टर को तलब किया है। अदालत ने पूछा है कि क्या कोई उसके द्वारा तैयार की गई मेडिकल रिपोर्ट को पढ़ और समझ सकता है? अगर डॉक्टर अगली तारीख पर टाइप की गई कॉपी के साथ पेश नहीं होते, तो उन पर दस हजार रुपये का हर्जाना किया जाएगा। यह रकम उसके वेतन से वसूली जाएगी। कोर्ट ने अपर शासकीय अधिवक्ता को उस डॉक्टर की उपस्थिति सुनिश्चित करने को कहा है। अदालत ने कहा है कि डॉक्टरों की अस्पष्ट लिखावट से मुकदमों के तुरंत निपटाने में बाधा आती है। दरअसल, जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस संजय हरकौली की बेंच के सामने मंगलवार को हत्या के प्रयास का एक मामला सुनवाई के लिए आया। पप्पू सिंह आदि ने कोर्ट में एक रिट याचिका दायर कर उनके खिलाफ सीतापुर के तम्बौर थाने पर दर्ज हत्या के प्रयास से संबंधित एफआईआर रद्द करने की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क दिया गया कि सूचनाकर्ता की मेडिको लीगल रिपोर्ट घटना के चार दिन बाद की है। उसमें जो चोटें हैं, वह भी साधारण प्रकृति की हैं, जिससे हत्या के प्रयास का मामला नहीं बनता। कोर्ट ने जब इंजरी रिपोर्ट पढ़नी चाही तो वह काफी ज्यादा टेढ़ी-मेढ़ी और अस्पष्ट थी।
इस पर कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि पहले भी आदेश दिया गया था कि मेडिको लीगल रिपोर्ट स्पष्ट होनी चाहिए, लेकिन डॉक्टरों के रवैये में बदलाव नहीं दिख रहा है। कोर्ट ने रिपोर्ट तैयार करनेवाले सीतापुर जिला चिकित्सालय के उस डॉक्टर को तलब किया है। याचिका में सूचनाकर्ता की जिस इंजरी रिपोर्ट का हवाला दिया गया है, उस पर न तो डॉक्टर का नाम और पदनाम दर्ज है, न ही अस्पताल की मुहर लगी है। कोर्ट ने पहले भी मेडिको लीगल रिपोर्ट में डॉक्टरों की अस्पष्ट लिखावट पर आपत्ति जताई थी। इस पर स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवाओं के महानिदेशक ने 8 नवंबर, 2012 को सर्कुलर जारी कर प्रदेश के सभी सीएमओ को निर्देश दिया था कि सभी मेडिको लीगल स्पष्ट तरीके से लिखे होने चाहिए। यह बात सामने आने पर कि सरकारी अस्पतालों में कंप्यूटर आदि की समुचित व्यवस्था नहीं है, कोर्ट ने राज्य सरकार को दिसंबर 2017 में निर्देशित किया था कि अस्पतालों में मेडिको लीगल रिपोर्ट तैयार करने के लिए उचित व्यवस्था की जाए।

 

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