राफेल डील में अनिल अंबानी की एंट्री से पहले मुकेश अंबानी की आरआईएल पार्टनर बनने की कोशिश में थी

नई दिल्ली,फ्रांस के फाईटर राफेल विमान के लेकर सियासी हंगामा देश में बरपा है, पर इस डील के लेकर नए-नए खुलासे हो रहे हैं। राफेल फाइटर जेट डील में अनिल अंबानी के संभावनाएं तलाशने से पहले उनके बड़े भाई मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) यूपीए की पिछली सरकार के दौरान इस डील में दिलचस्पी ले रही थी। राफेल डील में आरआईएल प्राइवेट सेक्टर की प्रमुख पार्टनर बनना चाहती थी। हालांकि, आरआईएल के 2014 के बाद डिफेंस और ऐरोस्पेस बिजनेस से हटने के कारण यह योजना रद्द हो गई थी। शुरुआती डील के अनुसार, राफेल फाइटर जेट बनाने वाली फ्रांस की दसॉ एविएशन ने ऑफसेट दायित्वों में एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का इन्वेस्टमेंट करने की योजना बनाई थी। इस बारे में संपर्क करने पर रिलायंस इंडस्ट्रीज और दसॉ ने कोई टिप्पणी करने से मना कर दिया। राफेल से जुड़ी ऑफसेट डील के लिए 2007 से पार्टनर की खोज करने की कोशिश वाले महत्वपूर्ण मध्यस्थों के साथ बातचीत की।
इसमें किसी समय ऑफसेट्स इंडिया सल्यूशंस नाम की एक दागी फर्म भी शामिल थी। इसके प्रमोटर के कथित तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के जीजा रॉबर्ट वाड्रा के साथ संपर्क थे। सूत्रों ने बताया कि इस फर्म ने इस डील से बिजनेस हासिल करने की कोशिश की थी और इसके लिए ‘दबाव’ भी डलवाया था। ओआईएस के प्रमोटर संजय भंडारी भारत में अपने कारोबार की एक जांच के बाद फरवरी 2017 में लंदन भाग गए थे। इसके बाद से यह फर्म लगभग बंद है। दसॉ के पास अपने प्राइवेट सेक्टर के पार्टनर चुनने की छूट थी, बशर्ते मुख्य प्रॉडक्शन लाइन सरकारी कंपनी हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की ओर से तैयार की जाए। 126 जेट की शुरुआती डील के तहत फ्रांस की कंपनी को भारत में ऑफशेट के तौर पर 1,07,415 करोड़ रुपये का निवेश करना था। दसॉ ने भारत के मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के कॉन्ट्रैक्ट के लिए अपने राफेल जेट को 28 अगस्त, 2007 को दौड़ में उतारा था। ऐसा बताया जाता है कि उस समय दसॉ ने एक पार्टनरशिप के लिए टाटा ग्रुप के साथ बातचीत शुरू की थी। इस डील की वैल्यू का 50 पर्सेंट ऑफसेट था। इस वजह से डील की सभी दावेदारों ने भारत की ऐसी मजबूत प्राइवेट कंपनियों की तलाश की थी जो बड़ी वैल्यू के ऑर्डर ले सकें। डील के दावेदारों में अमेरिका की एयरक्राफ्ट मेकर बोइंग और लॉकहीड मार्टिन भी शामिल थी।
सूत्रों ने बताया कि टाटा ग्रुप के अमेरिकी पार्टनर को चुनने के फैसले के बाद दसॉ ने मुकेश अंबानी की रिलायंस के साथ बातचीत शुरू की थी। इस समय रिलायंस ऐरोस्पेस सेक्टर में उतरने की योजना बना रही थी। इसके लिए 4 सितंबर, 2008 को एक नई कंपनी रिलायंस ऐरोस्पेस टेक्नॉलजीज लिमिटेड (आरएटीएल) बनाई गई थी। राफेल और यूरोफाइटर को वायु सेना की ओर से से शॉर्टलिस्ट किए जाने के कुछ सप्ताह बाद मई 2011 में आरएटीएल ने पार्टनरशिप की तैयारी के मद्देनजर सीनियर एग्जिक्यूटिव्स की हायरिंग भी शुरू कर दी थी। जनवरी 2012 में दसॉ इस कॉन्ट्रैक्ट के लिए सबसे कम बिड करने वाली कंपनी के तौर पर सामने आई थी और उसने डिफेंस मिनिस्ट्री के साथ प्राइस को लेकर मोलभाव शुरू किया था। इसमें ऑफसेट प्लान और एचएएल के साथ कॉन्ट्रैक्ट की शर्तें शामिल थी। दसॉ की ओर से तैयार किए गए ऑफसेट प्लान में कंपोजिट मैन्युफैक्चरिंग का एक सेंटर बनाना, महत्वपूर्ण टेक्नॉलजी का ट्रांसफर और फाल्कन जेट के लिए एक जॉइंट वेंचर करने के साथ ही भविष्य में स्मार्ट सिटीज में इन्वेस्टमेंट करने की योजना भी थी।

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