भोपाल,देशभर में हंगामा मचा देने वाले व्यापमं महाघोटाले की जांच को लेकर शुरु से ही जांच एजेंसियों पर सवाल उठते रहे है। इसी दौरान इंदोर में भी महाघोटाले में प्राप्त हार्डडिस्क से छेड़छाड़ के आरोपो को लेकर हंगामा हुआ तो क्राइम ब्रांच के वरिष्ठ अफसर का लैपटाप उनके कार्यालय से ही चोरी हो गया, गौरतलब है कि पीएमटी घोटाले में हुए फर्जी वाड़े की छानबीन का काम क्राइम ब्रांच से ही चला था। शुरुआत में हुई जांच में क्राइम ब्रांच ने 20 आरोपियों को पकड़ते हुए व्यापमं तक की लिंक निकाली थी और इन्हीं साक्ष्यों के आधार पर घोटाले के मास्टर माइंड डा- जगदीश सागर, सुधीर राय, पंकज त्रिवेदी, नितिन महिन्द्रा आदि को गिरफ्तार किया था।
इसी दौरान पीएमटी घोटाले के मास्टर माइंड डा- जगदीश सागर के घर पर मारे गये छापे के दौरान एक डायरी मिली थी, जिसमें एडमिशन संबंधी लेनदेन की जानकारी थी। इसके साथ ही सुधीर राय के घर से हार्डडिस्क जप्त हुई थी, जिसकी पड़ताल में कई रसूखदारों के नामों का खुलासा हुआ था। बाद में आरोप लगे थे कि क्राइम ब्रांच ने कई रसूखदारों को बचाने के लिए डार्डडिस्क में छेड़छाड़ की है। बाद में घोटाले की पड़ताल जांच एजेंसी को दे दी गई। बाद में जब डा- जगदीश सागर और सुधीर राय के पास जप्त रिकार्ड पर कार्यवाही को लेकर जांच एजेंसी पर भी सवाल उठने लगे, तब क्राइम ब्रांच के वरिष्ठ अधिकारी का लैपटाप उनके कार्यालय से ही रहस्यमय ढंग से चोरी हो गया। इसकी रिपोर्ट ग्वालटोली थाने में गुपचुप ढंग से दर्जकराई गई थी। अधिकारी का लैपटाप आफिस से चोरी होने मामले में ऐसा माना जा रहा है कि अधिकारी को लगा कि हाईप्रोफाईल लोगों को बचाने के आरोपो की जांच के चलते उनके लैपटाप की भी फोरेंसिक जांच हो सकती है, इसलिए उसे गायबकर रिपोर्ट दर्ज कराई गई, इसके साथ ही यह भी सामने आया कि
पीएमटी फर्जीवाड़े के सरगना डॉ. जगदीश सागर ने पीएससी में पास कराने के लिए लाखों रुपए लिए, कई अफसरों के बच्चों को भी वह डॉक्टर बनना चुका था। पूछताछ में इस तरह की बातें सामने आई लेकिन एक भी नाम जांच एजेंसियां सामने नहीं ला पाई। ऐसा माना जा रहा था कि बड़ी संख्या में फर्जी तरह से सिलेक्ट हुए परीक्षार्थियों के एडमिशन निरस्त होंगे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो पाया।
गौरतलब है कि जुलाई 2013 को जब पूरा मामला पकड़ा गया था तो यह बात सामने आई कि उस साल की पीएमटी परीक्षा में करीब 300 से ज्यादा फर्जी परीक्षार्थी डॉ. सागर ने बैठाए थे। जब अफसरों ने सख्ती से पूछताछ की तो उसने बताया था कि सालों से यह काम कर रहा है, कई अफसरों के बच्चों का भी सिलेक्शन कराया। निजी कॉलेजों में पढ़ रहे कई पुलिस व प्रशासनिक अफसरों के बच्चों के नाम उसने जांच अधिकारियों के सामने बताए थे। तत्कालीन अफसरों का दावा था कि इन सभी के एडमिशन निरस्त करवाएं जाएंगे। डॉ. सागर की डायरी में भी कई अफसरों के नाम थे लेकिन जांच एजेंसियों ने बाद में इसे दबा दिया। एसआई व सूबेदार परीक्षा में पास कराने के मामले में कई रसूखदार फंसे लेकिन उन अफसरों को बचा लिया गया जिन्होंने डॉ. सागर की मदद से अपने बच्चों का मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन कराया था। इसमें से 2-3 अफसर तो इंदौर में भी पदस्थ रहे थे और उनके बच्चों की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी है।