भोपाल,देवशयनी एकादशी के साथ ही आज सर्वार्थ सिद्धि योग में चातुर्मास प्रारंभ हो गए। आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष के अवसर पर शास्त्रानुसार विवाह आदि मांगलिक कार्य आज से 4 माह तक पूरी तरह से निषेध रहेंगे। इस दौरान साधू-संतों द्वारा विशेष देव आराधना होगी। राजधानी के ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, सनातन मान्यतानुसार देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार माह तक क्षीर सागर में विश्राम करते हैं। इस दौरान सृष्टि की बागडोर भगवान शिव संभालते हैं। इस साल देवशयनी एकादशी 23 जुलाई (सोमवार) को है। जबकि देवउठनी एकादशी 19 नवंबर को पड़ रही है। देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक का समय ही चातुर्मास कहलाता है। साधकों द्वारा जहां इन चार महीनों में विशेष देव आराधना की जाती है, जबकि विवाह आदि मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं। साधू-संत व सन्यासियों द्वारा इन चार महीनों में एक ही स्थान पर रहकर साधना व तप करते हैं। क्योंकि तीर्थ स्थानों के लिए यात्रा करना इन दिनों में ठीक नहीं माना जाता है। धार्मिक यात्राओं में केवल ब्रज यात्रा ही शुभकारी मानी जाती है।
ब्रज के संबंध में यह मान्यता है कि इन चार मासों में सभी देव एकत्रित होकर ब्रज में ही निवास करते हैं। देवशयनी एकादशी के दिन सुबह घर की साफ सफाई, नित्य कर्म व स्नान आदि करने के बाद घर को गंगा जल से पवित्र कर लें। अब पूजा स्थल पर भगवान श्री कृष्ण की सोने, चांदी, तांबे या पीतल की मूर्ति स्थापित करें। पूजन के लिए धान के ऊपर जलपात्र रखें व उसे लाल रंग से बांध दें। जिसके बाद धूप व दीप व फूलों से श्री हरि की पूजा करना चाहिए। पूजन के दौरान व्रत कथा का पाठन जरूर करें। जिसके बाद सभी को प्रसाद वितरण करें। बेवतीपुराण में भी देवशयनी एकादशी का वर्णन किया गया है। यह एकादशी उपासकों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करती है। लेकिन, इस पौराणिक परंपरा व मान्यता से व्यवहारिक पहलू भी जुड़े हुए हैं। चूंकि हमारा देश कृषि प्रधान है, ऐसे में बारिश के चार महीने खासा महत्वपूर्ण होते हैं। इन दिनों में किसान अपने खेतों में अतिरिक्त परिश्रम करते हैं। ऐसे में अगर मांगलिक कार्य जारी रहेंगे तो मूल मानवीय कर्तव्यों को पूरा कर पाना खासा मुश्किल होगा।